वसंत क्या निराश हुआ जाए - Worksheets
CBSE Worksheet 01
क्या निराश हुआ जाए
क्या निराश हुआ जाए
- क्या निराश हुआ जाए पाठ के आधार पर बताए कि कौन-सी स्थिति चिंताजनक है?
- क्या निराश हुआ जाए में लेखक ने रेलवे स्टेशन पर क्या गलती की थी?
- कौन-सा जीवन मूल्य अभी तक नष्ट नहीं हुए है? क्या निराश हुआ जाए पाठ के आधार पर बताए।
- समाज में सकारात्मक भावों को बढ़ावा मिले, इस हेतु लेखक क्या चाहता है? (क्या निराश हुआ जाए)
- लेखक ने भारत को 'मानन महासमुद्र' क्यो कहा है? (क्या निराश हुआ जाए)
- वर्तमान समय में यह पाठ कितना प्रासंगिक है, स्पष्ट कीजिए।
- शाश्वत मूल्यों को जीवन का आधार क्यों माना जाता है? (क्या निराश हुआ जाए)
- निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये-
इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलानेवाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फ़रेब का रोजगार करनेवाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सचाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था हो हिलने लगी है।- लेखक और पाठ का नाम लिखिए।
- इन दिनों किस प्रकार का माहौल है?
- ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय क्यों समझा जाने लगा है?
- जीवन के महान मूल्यों के प्रति लोगों की आस्था क्यों हिलने लगी है?
- ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय क्यों समझा जाता है?
CBSE Worksheet 01
क्या निराश हुआ जाए
क्या निराश हुआ जाए
Answers
- जब हर आदमी में दोष ढूँढे जाने लगे और उसके गुणों की अनदेखी की जाने लगे, तब वह स्थिति चिंताजनक हो जाती है।
- रेलवे स्टेशन टिकट लेते हुए लेखक ने गलती से दस के बजाये सौ का नोट दे दिया था।
- मनुष्य का दूसरे से प्रेम करना, महिलाओं का सम्मान करना, झूठ-चोरी को गलत समझना ऐसे जीवन-मूल्य है जो अभी तक नष्ट नहीं हुए है।
- लेखक का मत है कि समाज में बुराइयों का पर्दाफ़ाश बहुत अधिक किया जाता है। इससे नकारात्मकता के भाव उत्पन्न होते हैं और लोगों का एक दूसरे पर से विश्वास उठ जाता है। इसके विपरीत यदि समाज में घटित होने वाले अच्छे कार्यों को उजागर किया जाए तो लोगों में सकारात्मक भावों को बढ़ाया जा सकता है।
- भारत की धरती मुनियों और ऋषियों की मानी जाती है और मानवता इसका आधार है। आर्य और द्रविड़, हिंदू और मुसलमान, यूरोपीय और भारतीय आदर्शों की मिलन भूमि है अर्थात् भारत सभी संस्कृतियों का मिलन स्थल है। यह मानवता का विशाल सागर है जो विभिन्न प्रकार की जातीय बूंदों से मिलकर बना है इसलिए लेखक ने भारत को 'मानव महासमुद्र' की संज्ञा दी है।
- वर्तमान समय में भी यह पाठ पूरी तरह प्रासंगिक है। लोगों को दूसरों पर विश्वास नहीं रह गया है। चोर, बेईमान, फ़रेब आदि फल-फूल रहे हैं, ऐसे माहौल में भी मनुष्य को निराश नहीं होना चाहिए।
- शाश्वत मूल्य ऐसे मूल्य जो समाज में सदैव अपना प्रभुत्व बनाए रखते हैं। जैसे-सच, ईमानदारी, दया, करुणा, परोपकार एवं सहयोग के भाव। समाज में कितने ही बदलाव आए या कितनी भी नकारात्मक घटनाएँ क्यों न घटे लेकिन ये भाव अपना स्वरूप कभी नहीं बदलते। नैतिकता के मूल्य इन्हीं भावों पर आधारित होते हैं। यदि समाज में ऐसे भाव न हो तो लोगों का जीना ही कठिन हो जाए। इन्हीं का ही प्रभाव है कि आज भी हमारे समाज में वृद्धाश्रम, अनाथालय, बालगृह, नारी निकेतन आदि निस्वार्थ भावना से चलाए जाते हैं। दुख-सुख में सभी जातीय भावनाओं को भुलाकर लोग एक-दूसरे के सहायक हो जाते है। इन मूल्यों के बिना न कभी समाज का आधार था, न है और न ही होगा।
- लेखक - हजारी प्रसाद द्विवेदी,
पाठ - क्या निराश हुआ जाए - इन दिनों माहौल बड़ा ही विचित्र है। आज ऐसे व्यक्ति जो ईमानदारी से मेहनत करके जीवन निर्वाह करना चाहते हैं, अत्यधिक परेशान हैं। श्रम करके जीवन निर्वाह करने वाले पिस रहे हैं परंतु छल-कपट करके उद्योग-धंधे करने वाले फल-फूल रहे हैं।
- ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है क्योंकि समाज में ईमानदार लोग बहुत कम संख्या में रह गए हैं। यदि वे अपने नियम-कानूनों के आधार पर कोई कार्य करते हैं तो उन्हें मूर्ख माना जाता है।
- आजकल ईमानदारी से काम करने वाले को मूर्ख समझा जाता है। भौर व बेबस अर्थात् डरपोक व लाचार लोग ही सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं। छल-कपटी और चतुर व्यक्ति ईमानदारी तथा सच्चाई की परवाह नहीं करते और खूब फल-फूल रहे हैं। ऐसे वातावरण में जीवन के महान मूल्यों के प्रति लोगों की आस्था कम होना स्वाभाविक है।
- ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय इसलिए समझा गया कि लोग ईमानदारी से कार्य करते हैं तो चालाक लोग उसे मूर्खता समझते हैं।
- लेखक - हजारी प्रसाद द्विवेदी,