भारत की खोज युगों का दौर - Worksheets
CBSE Worksheet 01
खोज युगों का दौर
खोज युगों का दौर
- जावा क्या होता है?
- युगों का दौर पाठ के अनुसार भारतीय सभ्यता ने अपनी जड़ें कहाँ से कहाँ तक जमाई?
- युगों का दौर पाठ के अनुसार नाटक शैली का ह्रास कब हुआ।
- युगों का दौर पाठ के अनुसार भारतीय रसायनशास्त्र ने कैसे उन्नति की?
- भारतीय उपनिवेशों का काल कब से कब तक माना जाता है ?
- युगों का दौर पाठ के अनुसार ब्राह्मणवाद या हिंदूवाद से आप क्या समझते हैं?
- युगों का दौर पाठ के अनुसार भारतीय गणित ने विदेशों में विस्तार कैसे पाया?
- युगों का दौर पाठ के अनुसार रवींद्रनाथ ठाकुर ने भारत के विषय में क्या लिखा?
CBSE Worksheet 01
खोज युगों का दौर
खोज युगों का दौर
Solution
- जावा स्पष्ट रूप से यवद्वीप अर्थात जौ का टापू होता है। यह आज भी एक अन्न का नाम है।
- भारतीय सभ्यता ने अपनी जड़ें दक्षिण से पूर्वी एशिया के देशों में जमाई।
- नाटक शैली का ह्रास उन्नीसवीं शताब्दी में हुआ।
- भारतीय रसायनशास्त्र का विकास दूसरे देशों की तुलना में भारत में अधिक हुआ। फौलाद, लोहे व दूसरी धातुओं की भारतीयों को अत्यधिक पहचान थी। फौलाद व लोहे के अत्यधिक अस्त्र शस्त्र बनाए गए व धातुओं को मिलाकर औषध विज्ञान ने भी उन्नति की।
- भारतीय उपनिवेशों का काल ईसा की पहली या दूसरी शताब्दी से शुरू होकर पंद्रहवीं शताब्दी के अंत तक माना जाता है अर्थात यह समय लगभग तेरह सौ साल या इससे कुछ अधिक पहले का है।
- विदेशी शासकों के निरंतर प्रभाव से भारतीय ब्राह्मण वर्ग चिंतित हो उठा। धर्म और दर्शन इतिहास और परंपरा रीति-रिवाज व सामाजिक ढाँचा जिसके व्यापक घेरे में उस समय के भारतीय जीवन के सभी पहलू आते थे सभी विदेशियों से प्रभावित थे। लोगों में राष्ट्रीय भावना जगाना ही राष्ट्रीय धर्म था। इसे ही ब्राह्मणवाद या हिंदूवाद का नाम दिया गया।
- आठवीं शताब्दी में खलीफ़ा अल्मसूर के काल के कई विद्वान बगदाद गए। वे अपने साथ खगोलशास्त्र व गणित की पुस्तकें भी लेकर गए। भारतीय गणित की पुस्तकों ने अरबी जगत को प्रभावित किया। वहाँ भारतीय अंक प्रचलित हो गए। धीरे-धीरे अरबी अनुवादों के माध्यम से यह गणितशास्त्र मध्य एशिया से स्पेन तक फैल गया। स्पेन के विश्वविद्यालयों के माध्यम से यूरोपीय देशों तक पहुँचा। 1490 में ब्रिटेन में भी भारतीय गणित के अंकों का प्रयोग किया गया।
- रवींद्रनाथ ठाकुर ने लिखा कि मेरे देश को जानने के लिए उस युग की यात्रा करनी होगी जब भारत ने अपनी आत्मा को पहचानकर अपनी भौतिक सीमाओं का अतिक्रमण किया।
अर्थात् उनका यह मानना था कि भारत देश की वास्तविकता को यदि हम परखना चाहते हैं तो हमें उसके उस काल को देखना होगा जब यह अपने-आप में पूर्ण था और इससे बाहर के देशों में अपने उपनिवेश कायम कर व्यापार और धर्म को बढ़ाया।