लोकतंत्र और विविधता (PT only) - पुनरावृति नोट्स

 CBSE Class 10 सामाजिक विज्ञान

Revision Notes
पाठ - 3
लोकतंत्र और विविधता


सारांश:-

सामाजिक विभाजन:-- जो विभाजन क्षेत्र, जाति,रंग,नस्ल,लिंग आदि के भेद पर किया जाए उसे सामाजिक विभाजन कहते हैं।

जब किसी सामाजिक समूह के साथ कोई घोर अन्याय किया जाता है तो यह सामाजिक अंतर सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं जैसे अमेरिका में दोनों श्वेत और अश्वेत जातियों के लोग अमेरिका के नागरिकों के रूप में रहते हैं परन्तु यदि अश्वेत- अमेरिकनो से नस्लवाद के आधार पर भेदभाव किया जाता है तो सामाजिक अंतर सामाजिक विभाजन में भी बादल जाते हैं जिसके परिणाम भयंकर हो सकते हैं। सामाजिक अंतर होना तो स्वाभाविक है परन्तु यदि उनके साथ और तत्व जुट जाते हैं तो उन्हें सामाजिक विभाजन का रूप लेते देर नहीं लगती।

अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन(1954-1968):-- घटनाओं और सुधार आंदोलनों का एक सिलसिला जिनका उद्देश्य एफ्रो-अमेरिकन लोगों के विरुद्ध होने वाले नस्ली भेदभाव को मिटाना था।

एफ्रो-अमेरिकी:-- यह शब्द उन अफ्रीकी लोगों के वंशजों के लिए प्रयुक्त होता है जिन्हें  17 वि शताब्दी  से 19 वि शताब्दी की शुरुआत तक गुलाम बनाकर अफ्रीका से लाया गया था। एफ्रो अमेरिकन काले अमेरिकी या काले अफ्रीकियों के वंशज हैं।

अश्वेत शक्ति आंदोलन (1966-1975) :--यह आंदोलन काले अमेरिकी या एस्ट्रो अमेरिकन लोगों ने शुरू किया गया था यह अमेरिका के नस्लभेद को मिटाने के लिए शुरू हुआ था। इस आंदोलन में अश्वेत लोग नस्लवाद को अमेरिका से मिटाने में हिंसा के प्रयोग से भी नहीं हिचकिचा रहे थे।

प्रवासी:-- जो कोई भी व्यक्ति काम के तलाश में या आर्थिक प्रयोजन हेतु किसी एक देश से दूसरे देश में आता है या जाता है उसे प्रवासी कहा जाता है।

समरूप समाज:-- समरूप समाज का अर्थ है एक ऐसा समाज जहाँ पर सांप्रदायिकता, जाति वादिता या नस्ल भेद आदि की जडे ज्यादा गहरी ना हो।

दो एफ्रो-अमेरीकी खिलाड़ी जो नस्लवाद की नीति के विरुद्ध 1968 मैक्सिको में होने वाले ओलंपिक मुकाबलों में अपना विरोध प्रकट कर रहे थे उनके नाम थे टॉमी स्मिथ और जान कार्लोस। ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी पीटर नॉर्मल ने भी प्रॉमिस मिथ और जान कार्लोस के पक्ष में विरोध प्रदर्शन किया।

समानताएँ, असमानताएँ और विभाजन
समाजिक भेदभाव की उत्पत्ति - जन्म के आधार पर - चमड़ी के आधार पर

सामाजिक विभाजनों की राजनीति

  • लोकतंत्र में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के बीच प्रतिद्वंद्विता का माहौल होता है। इस प्रतिद्वंद्विता के कारण कोई भी समाज फूट का शिकार बन सकता है।
  • राजनीतिक दल समाज में मौजूद विभाजनों के हिसाब से राजनीतिक होड़ करने लगे तो इससे सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में बदल सकता है और ऐसे में देश विखंडन की तरफ जा सकता है।
  • सर्वश्रेष्ठ स्थिति तो यह कि समाज में किसी किस्म का विभाजन ही न हो। अगर किसी देश में सामाजिक विभाजन है तो उसे राजनीति में अभिव्यकत ही नही होने देना चाहिए।
  • अधिकतर देशों में मतदान के स्वरूप और सामाजिक विभाजनों के बीच एक प्रत्यक्ष संबंध दिखाई देता है।
  • किसी देश में सामाजिक विभिन्नताओं पर जोर देने की बात को हमेशा खतरा मानकर नहीं चलना चाहिए। यह एक स्वस्थ राजनीति का लक्षण भी हो सकता है।
  • राजनीति में विभिन्न तरह के सामाजिक विभाजनों की अभिव्यक्ति ऐसे विभाजनों के बीच संतुलन पैदा करने का काम भी करती हैं।

प्रश्न:-
1.
 सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं?
2. सामाजिक विभाजन तथा राजनीति किस प्रकार अंतर्सबंधित है? व्याख्या करें।
3. किस प्रकार सामाजिक अंतरों से लोकतंत्र सुदृढ़ होता है?
4. सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणाम तय करने वाले तीन कारकों की चर्चा करें।
5. सामाजिक विभाजन किस तरह से राजनीति को प्रभावित करते हैं? दो उदाहरण भी दीजिए?

उत्तर:--

1. भारत जैसे एक बड़े देश में सामाजिक अंतर का पाया जाना सभा देखी है हम अपने आस पास देखते हैं कि चाहे कोई स्त्री हो या पुरुष छोटा हुई है बड़ा हर एक की चमडी का रंग अलग अलग है उनकी शारीरिक क्षमताएं तथा अक्षमताएं अलग अलग हैं। जन्म के अतिरिक्त इस सामाजिक अंतर का आधार अलग -अलग पेशा ,पढ़ाई के विषय, खेल या सांस्कृतिक गतिविधियों का चुनाव हो सकता है। जो जन्म पर नहीं वरन लोगों की अपनी पसंद पर निर्भर करता है। इन्हीं सामाजिक अंतरों के कारण सामाजिक समूह बनते हैं परन्तु जब किसी सामाजिक समूह के साथ कोई घोर अन्याय किया जाता है तो यह सामाजिक अंतर सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं। जैसे अमेरिका में दोनों श्वेत और अश्वेत जातियों के लोग अमेरिका के नागरिकों के रूप में रहते हैं। परन्तु यदि अश्वेत अमेरिकन से नस्लवाद के आधार पर भेदभाव किया जाता है तो सामाजिक अंतर सामाजिक विभाजन में भी बादल जाते हैं जिसका परिणाम भयंकर हो सकता है सामाजिक अंतर होना तो स्वाभाविक है। परंतु यदि उनके साथ और तत्व जुड़ जाते हैं तो उन्हें सामाजिक विभाजन का रूप लेने में देर नहीं लगती।

2. सामाजिक विभाजन तथा राजनीति निम्नलिखित प्रकार से अतर सम्बंधित हैं 

१.  जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक  विभिन्नताओं से बड़े और ऊपर हो जाते हैं।

२. अमेरिका में श्वेत और अश्वेत के बीच का भारी अंतर सामाजिक विभाजन का मुख्य कारण है।

३. जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य सामाजिक अंतरों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है।

3. राजनीति में विभिन्न तरह के सामाजिक विभाजनों की अभिव्यक्ति ऐसे विभाजनों के बीच संतुलन पैदा करने का काम भी करती हैं।

4. सामाजिक विभाजनों के राजनीतिक तय करने वाले तीन कारक:--

१. पहला फरक है लोगों में राज्य पहचान की भावना के प्रति विश्वास जिसके परिणाम स्वरूप लोग अपने सामाजिक विभाजन को पीछे रखते हुए राष्ट्रीय पहचान को पहले रखते हैं। ऐसे में कोई समस्या पैदा नहीं होती। जैसे बर्जन के लोग अपने आपको डच, फ्रेंच या जर्मन न मांनते हुए अपने आपको बेलजियाइ मानते हैं भले ही वे डच, फ्रेंच या जर्मन भाषा में बोलते हैं ऐसे में कोई समस्या नहीं है ऐसा सोचने मे उन्हें  साथ साथ रहने में मदद मिलेगी।

२. सामाजिक विभाजन की राजनीति को प्रभावित करने वाला दूसरा कारक है राजनीतिक दलों के संविधान के दायरे में रहकर कार्य करना और दूसरे समुदाय को नुकसान पहुंचाने वाली किसी मांग को न उठाना। यदि श्रीलंका की भांति एक ही सामाजिक वर्ग अर्थात सिहलियों के हितों की बात ही की जाएगी और दूसरे सामाजिक वर्ग था तमिलों की अवहेलना की जाएगी तो सदा संघर्ष पूर्ण वातावरण बना रहेगा। ऐसे में राजनीतिक दलों का है कब से है कि वे सभी सामाजिक वर्गों के हितों का ध्यान रखें।

३. तीसरे सामाजिक विभाजन की राजनीति को प्रभावित करने वाला अन्य महत्वपूर्ण कारक यह है कि सरकार विभिन्न सामाजिक वर्गों के प्रति कैसा रूप अपनाती हैं। यदि बेल्जियम की भांति सरकार के सत्ता भागीदारी पर विश्वास रखती है और प्रशासनिक तंत्र में सभी सामाजिक वर्गों को हिस्सेदार बनती है तो कोई समस्या पैदा नहीं होती। परन्तु यदि श्रीलंका या यूगोस्लाविया की भांति सरकारी यदि एक से सामाजिक वर्गों के अतिरिक्त अनेक वर्गों को शासन तंत्र से अलग रखती है तो संघर्ष, कलह, गृहयुद्ध और यहां तक कि देश का बटवारा भी हो सकता है।

5. सामाजिक विभाजन अनेक प्रकार से राजनीति को प्रभावित करते हैं-- यदि सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन बन जाए तो इनका परिणाम बड़ा बेकार सिद्ध हो सकता है। परन्तु यदि ये सामाजिक  विभाजन या उनसे जुडे हुए राजनीतिक दल राष्ट्रीय दायरे में रहे, संविधान की मर्यादाओं को देखते हुए अन्य किसी सामाजिक विभाजन को नुक्सान पहुंचाने की न सोचें और सरकार की भी समाज विभाजनों को सत्ता की भागीदारी के नियमों पर चलते हुए प्रशासनिक ढांचे में सबको साथ ले तो सामाजिक विभाजन सदा ही हानिकारक साबित नहीं होते हैं।

उत्तरी आयरलैंड का उदाहरण- आयरलैंड के उत्तरी भाग में 53% प्रोटेस्टेंट लोग रहते हैं और 44% रोमन कैथोलिक रहते हैं। काफी समय ताकि यहाँ इस बात का झगड़ा चलता रहा कि दक्षिण आई एंड एंड के साथ मिला दिया जाए कि ग्रेट ब्रिटेन के साथ क्योंकि दक्षिण आयरलैंड की अधिकतर आबादी रोमन कैथोलिकों की थी।जबकि ग्रेट ब्रिटेन के लोगो कि अधिकतर अधिकतर आबादी प्रोटेस्टेंट की थी।अनेक लोग आपसी संघर्ष में इस बात पर मारे गए इस प्रभाव सामाजिक विभाजन ने अायरलेैड की राजनीति को काफी समय तक बड़ी गहराई से प्रभावित किया। क्योंकि दो वर्गों के हित आपस में टकराते रहे हितों के टकराव से बर्बादी के सिवाय कुछ न मिला।अंत में जब दोनों पक्षों में 1998 ई. में समझौता हुआ तो हिंसक अनदोलन समाप्त हुआ।

यूगोस्लाविया का उदाहरण हैं --यूगोस्लाविया में समाजिक विभाजनों का अंत कोई सुखद न हुआ क्योंकि वहां राजनीतिक दल अपनी होड में बहुत आगे बढ़ गए और अंत में वह देश देश छह भागों में बंट कर रह गया न किसी ने वहां राजश्री दारी में के अंदर रहने का प्रयत्न किया, न किसी ने देश के संविधान का ध्यान रखा और न ही वहां की सरकार ने सभी वर्गों को सत्ता की भागीदारी में साथ लेने का प्रयत्न किया।