अंतरा - नरेंद्र शर्मा (Not for Exams) - पुनरावृति नोट्स

 CBSE कक्षा 11 हिंदी (ऐच्छिक)

अंतरा काव्य खण्ड
पाठ-7 नरेन्द्र शर्मा (नींद उचट जाती है)
पुनरावृत्ति नोट्स


कवि परिचय-

  • श्री नरेन्द्र शर्मा का जन्म 1923 में उ.प्र. के बुलंदशहर जिले में हुआ। प्रांरभिक शिक्षा यही से प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने इलाहाबाद से एम.ए. किया। इन्होंने फिल्म जगत में भी लेखन कार्य किया। 1984 में इनकी मृत्यु हो गई।

रचनाएँ-

  • ‘प्रभात फेरी’, ‘पलाशवन’, ‘प्रीति कथा’, ‘कामिनी’, ‘मिट्टी के फूल’, हंसमाला', 'रक्त चंदन', 'कदली वन', 'द्रौपदी', 'प्यासा निर्झर', 'उत्तर जय’ आदि अनेक रचनाएँ लिखी।

काव्यगत विशेषताएँ-

  • इन्होंने आम जन-जीवन से जुड़ी कहानियाँ, कविताएँ लिखी। समाज की बुराईयों, विषमताओं को इन्होंने अपनी कविताओं में उठाया है। इन्होंने छायावादी, प्रगतिवादी दोनों प्रकार की रचनाएँ रची।
  • श्री नरेन्द्र शर्मा की भाषा सरल, सहज व मधुर है। इनकी भाषा में प्रेरक तत्व की प्रधानता मिलती हैं जो पढ़ने वालों को दृढ़ निश्चयी बनाती है। इनकी भाषा में कोमलता व कठोरता दोनों भाव विद्यमान है।

पाठ परिचय-

  • कवि नरेन्द्र शर्मा द्वारा रचित कविता ‘नींद उचट जाती है’ एक व्यक्ति और समाज के भीतर अवसाद बेचैनी, निराशा, सन्नाटा, चिन्ताओं के भावों की कविता है। यहाँ कवि ने इस सभी नकारात्मक भावों को व्यक्त करने के लिए रात, अंधेरे, नींद न आना आदि शब्दों को प्रतीक रूप में लिया है। कवि ने कविता में जिस अंधेरे की बात की है वह दो स्तर पर है। एक व्यक्ति के स्तर पर और दूसरा समाज के स्तर पर। व्यक्ति पर यह अंधेरा, उसकी निराशा, चिन्ता, बुरे सपने, बेचैनी आदि के रूप में है। जो समाज के अंधेरे के रूप में प्रतिबिम्बित हुई है। अर्थात् समाज में अंधेरे के रूप में विषमता, चेतना व जागृति का अभाव, विकास न होना, शोषण, छल, कपट विद्यमान हैं जिसके फलस्वरूप समाज में विसंगति बढ़ती जा रही है। और इन्हीं विसंगति के परिणामस्वरूप समाज के व्यक्ति की नींद उचट जाती है। कवि जीवन में दोनों स्तरों के अंधेरों को दूर करने की बात करता है। वह चाहता है कि समाज में जागृति, चेतना फैले और सभी के जीवन से अंधेरा दूर हो जाए।

मूलभाव/व्याख्या बिंदु-

  • कविता में एक ऐसी बात का कवि वर्णन करता है जब अचानक बुरे और डरावने सपने देखने के कारण कवि की नींद खराब हो जाती है नींद खराब होने के बाद रात लंबी हो जाती है। नींद उचट जाने के बाद कवि यह अनुभव करता है हृदय में जो डर है उससे अधिक भयानक बाहर का अंधेरा है। बार-बार सुबह होने को है ऐसा लगता है, लेकिन हर बार, यह आभास ही होता है। बाहर के अंधेरे को देखकर मन में दुश्चिता घर कर लेती है, कुत्ते, गीदड़ की आवाज वातावरण को और भयानक बना रही है। सामाजिक व्यवस्था व कुरीति के बारें में सोच-सोच कर कवि फिर सोना चाहता है। परन्तु जब तक धरती पर अंधेरा व्याप्त है। उन्हें न तो उस करवट नींद आ रही है, न दूसरी करवट नींद आ रही है। अर्थात् बहुत बेचैनी है।
  • वह रात भर करवटें बदलते हैं, किंतु अँधेरा करवट नहीं बदलता अर्थात् सुबह नहीं होती। लगातार जगने से एक पागलपन-सा छा गया है। समय रुकता-सा प्रतीत हो रहा है। सिर्फ इसी आशा में सांस अटकी है, कि बस सुबह होने को है।
  • कवि रात भर जागने को जागरण जागृति नहीं मानते अपितु इसे नींद न आने की समस्या कहते हैं उनका मानना है कि जब तक इस धरती पर अंधेरा व्याप्त है प्रकाश इसके चारों तरफ चक्कर काट रहा है। पर वह पास नहीं आ रहा है। इसी प्रकार कवि के अंतर की आँखो के आगे चट्टान (अंधेरे) की है। अर्थात् समाज का अंधेरा अभी दूर नहीं हुआ हैं।