अंतरा - सुमित्रानंदन पंत (Not for Exams) - पुनरावृति नोट्स

 CBSE कक्षा 11 हिंदी (ऐच्छिक)

अंतरा काव्य खण्ड
पाठ-5 सुमित्रानंदन पंत (संध्या के बाद)
पुनरावृत्ति नोट्स


जीवन परिचय-

  • छायावादी काव्यधारा के मूर्धन्य कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में हुई तथा उच्च शिक्षा इलाहाबाद के ‘म्योर कॉलेज’ में हुई।
    पंत जी ने ‘लोकायतन’ संस्था की स्थापना की। ये लम्बे समय तक आकाशवाणी के परामर्शदाता रहें 28 दिसम्बर 1977 में इनका निधन हो गया।

रचनाएँ व सम्मान-

  • ‘वीणा’, ‘पल्लव’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘ग्रन्थि’, ‘स्वर्णकिरण’, ‘गुंजन’ एवं ‘उत्तरा’।
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (1960 कला व बूढ़ा चाँद) ज्ञानपीठ पुरस्कार (1969 चिदम्बरा) पाने वाले हिन्दी के प्रथम कवि हैं।
  • पद्मभूषण (1961) सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार।

काव्यगत विशेषताएँ एवं भाषा-शैली-

  1. सुमित्रानंदन पंत की आरंभिक कविताओं में प्रकृति प्रेम एवं रहस्यवाद झलकता है। इसके बाद के चरण की कविताएँ मार्क्स व गाँधी से प्रभावित है अगले चरण की कविताओं पर अरविन्द दर्शन का प्रभाव नजर आता है।
  2. पंतजी प्रकृति के चितेरे (चित्रकार) कवि हैं।
  3. प्रकृति के कोमल रूप का चित्रण एवम् उसके पल-पल परिवर्तनशील सौन्दर्य का चित्रात्मक वर्णन इनकी विशेषता है।
  4. तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है।
  5. मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय एवम् ध्वन्यार्थ व्यंजना जैसे नवीन अलंकारों के साथ उपमा, रूपक एवम् उत्प्रेक्षा जैसे परम्परागत अंलकारों का प्रयोग।
  6. अमूर्त के माध्यम से मूर्त का वर्णन उनकी प्रमुख विशेषता है।

संध्या के बाद

मूलभाव-

  • प्रस्तुत कविता छायावाद के प्रमुख आधार-स्तम्भ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ‘ग्राम्या’ में संकलित हैं।
    कविता में संध्या के समय होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों, ग्रामीण जीवन के दैनिक क्रियाकलापों के वर्णन के साथ-साथ मानवता एवं संवदेनशीलता का भी संदेश दिया हैं कवि ने एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की आवश्यकता पर बल दिया है। जो शोषणमुक्त हो, जिसमें दरिद्रता न हो एवम् कर्म तथा गुणों के आधार पर साधनों व अर्थ की प्राप्ति हो, गाँव में दरिद्रता, उत्पीड़न एवम् निराशा व्याप्त है। व्यक्ति इनको प्रकट करने में असमर्थ है। कवि ने समस्त पापों का कारण दरिद्रता माना है। दरिद्रता के लिए कोई व्यक्ति-विशेष दोषी नहीं है। बल्कि सामाजिक व्यवस्था दोषी है।
    गाँव के बनिये के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि व्यक्ति अपनी कथनी और करनी में समानता द्वारा सामाजिक व्यवस्था में तभी परिवर्तन ला सकता है। जब व्यक्ति की सोच और आचरण समान हो।

काव्य-सौंदर्य- सिमटा पंख साँझ...............................................निर्झर।

प्रसंग- कवि- सुमित्रानंदन पंत / कविता- संध्या के बाद

संदर्भ-

  • उपर्युक्त पंक्तियों में कवि सांझ की जाती हुई लाली के विविध प्राकृतिक चित्र प्रस्तुत कर रहा है। इन पंक्तियों में संध्याकालीन सौंदर्य को चित्रित किया गया है।

व्याख्या-

  • कवि संध्या को एक पक्षी के रूप में चित्रित करते हुए बताता है कि संध्या रूपी पक्षी अपने पंखों को समेटकर, लाली के साथ पेड़ की शाखाओं पर जा बैठता है अर्थात् सूर्य धीरे-धीरे अस्त होने जा रहा है, सांझ की लाली सिमटनी शुरू हो गई है। अब ये लाली पेड़ की ऊपर की फुनगियों पर ही दिखाई दे रही है जिसके कारण पेड़ के पत्ते ताम्र रंग के दिखाई दे रहे हैं। ताँबें के रंग के पत्तों के समान सैकड़ों मुख वाले झरने सुनहरी धाराओ में बह रहे हैं। झरनों के जल पर पीला प्रकाश होने के कारण वे ताम्र वर्ण के दिखाई दे रहे हैं। सूरज छुपने का यह दृश्य पूरी तरह से मन को हरने वाला लग रहा है।

विशेष (कला पक्ष)-

  1. संध्याकालीन प्रकृति का मनोहारी चित्रण किया गया है।
  2. संध्या का पक्षी रूप में चित्रण होने के कारण मानवीकरण अलंकार है।
  3. संस्कृत निष्ठ, तत्सम् प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
  4. वृक्षों के पत्तों का लालिमा से ताम्र वर्ण का होना, झरनों की स्वर्णिम आभा का भावपूर्ण वर्णन है।
  5. मुक्त छंद की कविता है।
  6. चित्रात्मकता तथा सुंदर बिंब विधान है।