अंतरा - भारतेंदु हरिश्चंद्र (Not for Exams) - पुनरावृति नोट्स

 CBSE कक्षा 11 हिंदी (ऐच्छिक)

अंतरा गद्य-खण्ड
पाठ-9 भारत वर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?
पुनरावृत्ति नोट्स


विधा- निबन्ध (ददरी मेले में दिया गया भाषण का अंश)
कहानीकार- भारतेन्दु हरिशचन्द्र

जीवन-परिचय-

  • आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रवर्तक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र माँ सरस्वती की आराधना में जीवन भर लगे रहे। 34 वर्ष की अल्प आयु में उनका स्वर्गवास हो गया।

मुख्य रचनाएँ-

  • नाटक- ‘नील देवी’, ‘अंधेरनगरी’, 'वैदिकी हिंसा-हिंसा न भवति', 'भारत दुर्दशा', 'चंद्रावली', 'मुद्राराक्षस’, ‘सत्य हरिश्चन्द्र', 'पाखण्ड विडम्बना', ‘विद्यासुन्दर’, ‘धनंजय विजय’ आदि।
  • काव्य-संग्रह- 'प्रेम फुलवारी', 'प्रेममाधुरी', 'प्रेममालिका’।
  • पत्र-पत्रिकाएँ- 'कवि वचन सुधा', 'हरिश्चन्द्र मैगजीन’, 'बालाबोधिनी' आदि।

भाषा-शैली-

  1. विचारात्मक एवं व्यंग्यात्मक शैली
  2. सरलता सहजता एवं बोधगम्यता
  3. तत्सम, तद्भव, देशज एवं विदेशी शब्दावली
  4. मुहावरे एवं लोकोक्तियों का प्रयोग
  5. पुनरूत्थानवादी एवं आधुनिकतावादी शैली

पाठ-परिचय-

  • पाठ में दिया गया आलोचनात्मक निबन्ध भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी ने ददरी मेले के अवसर पर बलिया में एक उत्साहवर्द्धक भाषण एवं व्याख्यान के रूप में प्रस्तुत किया था। इस निबंध में साहित्यकार ने भारतीय दुर्दशा के लिए अंग्रेजी औपनिवेशिक साम्राज्यवाद को जिम्मेदार माना है। तो दूसरी तरफ भारतीय नागरिकों में विद्यमान आलस्य, अशिक्षा, अकर्मण्यता एवं दिशा हीनता को भी जिम्मेदार माना है। इस निबन्ध में भारतेन्दु ने भारतीयों में भारतीय अस्मिता को स्थापित करने के लिए ललकारा है।

स्मरणीय बिन्दु-

  • भारतेन्दु ने भारतवासियों में नेतृत्व क्षमता को विकसित करना चाहा है। कई दशकों की गुलामी ने हमारी नेतृत्व क्षमता को हतोत्साहित किया है। इसलिए हम अंग्रेजों के पिछलग्गू बन गये हैं भारत को सांस्कृतिक स्वतंत्रता तभी मिलेगी जब हम अपना नेतृत्व स्वयं करना सीख लें। इस सृजनात्मक विचार धारा का सकारात्मक परिणाम हमें गाँधी, सुभाषचन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरू, पटेल एवं अम्बेडकर आदि के लोकतांत्रिक नेतृत्व में दृष्टि गोचर होता है।
  • भारतेन्दु जी अंग्रेजों के विरोधी तो थे लेकिन पाश्चात्य आधुनिकतावादी संस्कृति के नहीं। उन्होंने बलिया के कलेक्टर राबर्ट साहब की खुलकर प्रशंसा की है, साहित्यकार ने अकबर, बीरबल, टोडरमल की धार्मिक सहिष्णुता, तीक्ष्ण नेतृत्व क्षमता एंव भूराजस्व नीतियों के कारण, उनकी सराहना की है। भारतेन्दु ने भारतवासियों की तुलना रेलगाड़ी के डिब्बों से की है। इसका तात्पर्य यह है कि हम भारतवासी बिना नेतृत्व के चल ही नहीं सकते। वे धार्मिक, पौराणिक उदाहरणो द्वारा सिद्ध करते हैं कि अगर भारतीयों को कोई बल एवं पराक्रम याद दिला दे तो ये सभी कार्य सम्पन्न कर सकते हैं।
  • भारतेन्दु इतिहास के मर्मज्ञ चित्रक है। इन्हें इतिहास की गतिशील नब्ज की पहचान थी। भारत गुलाम क्यों हुआ? भारत के विभाजित होने के कारण क्षेत्रवाद, अकर्मण्यता, धर्मभीरुता एवं आलस्य आदि कुप्रवृत्तियों के कारण ही भारतीय अस्मिता खतरे में पड़ी। इसके अतिरिक्त जमींदारी प्रथा एवं सामन्तवाद, जैसी भयावह कुरीतियों ने भी भारतीय राजनीतिक प्रशासनिक व्यवस्था को चकनाचूर किया।
  • भारतेन्दु पुनरुत्थानवादी, साहित्यकार हैं। इनके विचारों में आधुनिकतावाद के साथ ही भारतेन्दु जी पुनरूत्थानवादी, समाज-सुधारक, साहित्यकार हैं। उनके समय में आम जनता अपने देश भारत के अतीत का गौरव भूल-सी ही गई थी। ये सब जान बूझकर नहीं हुआ था बल्कि अंग्रेजी शासन उनका भय, आतंक, दमनकारी रवैया और भारतीयों का अशिक्षित होना इसके लिए जिम्मेदार था। अतः भारतेन्दु जी के सामने सबसे मुख्य प्रश्न था। समस्या यही थी कि भारतीयों का पुनर्जागरण किया जाए अर्थात् भारत के लोग जो अतीत का गौरव भारत का महान इतिहास भूल गए हैं उसे नाटकों रंगमंचीय कला के माध्यम से बताया जाए। अतः वे अपने नाटकों का कथ्य चयन भी इसी प्रकार का रखते थे। तभी इनके विचारों में आधुनिकतावाद के साथ अतीतोन्मुखी परम्परा का बोध मिलता है। वे भारतीयों को विश्वस्तर पर उनका योगदान याद दिलाते हैं। वे बताते हैं कि भारतीयों ने खगोलशास्त्र, गणितीय प्रणाली, चिकित्सा शास्त्र एवम् रसायनशास्त्र, दर्शन, अध्यात्मवाद, संस्कृति आदि क्षेत्र में विश्वस्तर पर योगदान दिया है। इसी कारण भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता है। अतः आज हमें फिर से अपने योगदान अपने ज्ञान, ताकत को याद करने की जरूरत है। अपने पौरुष को पहचानने की आवश्यकता है। वे आगे यह बताते हैं कि भारत विश्व विकास की दौड़ में इसी अज्ञानता की वजह से पिछड़ रहा है। और हम अपनी पुरातन रूढ़ियों की वजह से विकास की दौड़ में पिछड़ गए है।
  • भारतेन्दु के अनुसार मानव जीवन अत्यन्त दुर्लभ एवं अति महत्वपूर्ण है। मनुष्य को कायरों की भाँति जीवन नहीं व्यतीत करना चाहिए। बल्कि उसको समग्र सम-विषय अवसरों का लाभ उठाना चाहिए। इस विचारधारा का तात्पर्य यह है कि सम्पूर्ण भारतवासियों को भारतवर्ष के समग्र विकास एवं उन्नति हेतु प्रयत्नशील रहना चाहिए। भारतेन्दु जी ने राष्ट्र हित के लिए व्यक्तिगत हित को महत्व नहीं दिया। यह साहित्यकार का प्रगतिशील दृष्टिकोण है।
  • भारतेन्दु जी ने भारतीय संस्कृति की अस्मिता के उद्वार हेतु निवृत्तिमूलक एवं पलायनवादी विचारों के स्थान पर प्रवृत्ति मूलक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने पर बल दिया। उनके अनुसार भारत में जितना कोई निकम्मा होता है उसे उतना ही बड़ा अमीर समझा जाता है हालांकि इस कुप्रवृत्ति ने आज भी भारत को तोड़ने का प्रयास किया है हमारे यहाँ मानसिक श्रम की अपेक्षा शारीरिक परिश्रम को कम महत्व दिया जाता है। लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने मानसिक एवं शारीरिक दोनों प्रकार के श्रम को समान महत्व देकर श्रमजीवी संस्कृति को समेकित धरातल प्रदान किया है। भारतेन्दु जी भारतवासियों को समय के साथ चलने के लिए कहते हैं। वे चाहते थे कि भारतवासी अपनी आवश्यकताओं के लिए किसी दूसरी ताकतों का मोहताज न रहे।
  • भारतेन्दु जी ने भारतवासियों में उत्साह का संचार करने के लिए ऐतिहासिक, धार्मिक एवं पौराणिक साक्ष्यों को प्रस्तुत किया है। भारतेन्दु जी इतिहास की गम्भीर अवधारणा की जानकारी रखते थे। उपर्युक्त तथाकथित सन्दर्भों का प्रयोग भारतेन्दु जी ने सांस्कृतिक राष्ट्रीय चेतना को समेकित रूप में किया है। भारतेन्दु जी भारत के कण-कण में उन्नति एवं अभ्युत्थान देखना चाहते थे। वे चाहते थे कि भारत का सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, मानवीय, धार्मिक एवं आर्थिक आदि क्षेत्रों में सर्वांगीण विकास सम्पन्न हो। भारतेन्दु जी ने भारतीय समस्याओं का बहुत सूक्ष्म विचार विश्लेषण किया है। वे समस्या मुक्त भारतीयता के हिमायती थे।
  • वे धर्मनीति के समर्थ हिमायती थे। लेकिन वे धर्माधंता, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद आदि तात्कालिक दोषों से मुक्त होने की तरफ भी इशारा करते हैं। भारतेन्दु के विचारों में देशभक्ति के साथ ही साथ राजभक्ति की प्रार्थना आखिल भारतीय राष्ट्रवादियों के लिए खटकती है। वे तीज-त्योहार की नैतिक, मानवीय एवं वैज्ञानिक व्याख्या के हिमायती थे। वे नारी शोषण, दलित शोषण किसी भी कुप्रवृत्ति के खिलाफ थे। भारतेन्दु सौहार्द साम्प्रदायिक के कारण ही मुसलमानी-संस्कृति को पूर्ण तार्किकता एवं आधुनिकता से जोड़ना चाहते थे। वे भारतीय जनता को किसी भी प्रकार के कृपा पात्र के मोहताज नहीं रखना चाहते थे।