अंतरा - देव (Not for Exams) - पुनरावृति नोट्स

 CBSE कक्षा 11 हिंदी (ऐच्छिक)

अंतरा काव्य खण्ड
पाठ-3 देव (हँसी की चोट, सपना, दरबार)
पुनरावृत्ति नोट्स


कवि परिचय-

  • रीतिकालीन रीतिबद्ध कवि देव का पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। इनका जन्म सन् 1673 ई. में उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ। ये एक दरबारी कवि थे। इन्होंने अनेक आश्रयदाता बदलें। इनके प्रमुख आश्रयदाता भोगीलाल थे। कवि देव सन् 1767 ई. तक जीवित रहे।

प्रमुख रचनाएँ-

  • ‘भाव विलास’, ‘भवानी विलास', 'कुशल विलास', 'रस विलास', 'काव्य रसायन', 'प्रेम तरंग', 'प्रेम चन्द्रिका’ आदि।

काव्यगत विशेषताएँ-

  • कवि देव प्रेम और सौंदर्य के कवि थे। इनके काव्य में शृंगार के उदात्त रूप का चित्रण है। अनुप्रास, और यमक इनके पसंदीदा अलंकार है।
  • कवि देव के काव्य की भाषा कोमलकान्त पदावली युक्त ब्रज भाषा है। भाषा में प्रवाह और लालित्य है। प्रचलित मुहावरों का भी खूब प्रयोग किया है।

हँसी की चोट
साँसनि ही सौं ................ हरि जू हरि।।

प्रसंग- कवि: देव, कविता: हँसी की चोट

संदर्भ-

  • प्रस्तुत सवैये में प्रिय (श्रीकृष्ण) की हँसी से घायल गोपी के विरह का वर्णन है। उसी विरह के कारण पंच भौतिक। तत्वों (वायु, जल, अग्नि, भूमि एवं आकाश) से बने शरीर से एक-एक तत्व निकलता जा रहा है।

व्याख्या-

  • कवि कहते हैं कि जिस दिन से श्रीकृष्ण गोपी के सामने से एक बार हँसते हुए मुख फेरकर चले गए उसी दिन से नायिका विरह में व्याकुल हो गई है। ऐसा करते हुए श्रीकृष्ण जैसे उसका हृदय ही चुरा कर ले गए हैं, तभी से गोपी के शरीर से पाँच तत्वों में से एक-एक तत्व विदा होते चले जा रहे हैं। विरहावस्था में तेज-तेज सांसे छोड़ने से वायु तत्व, आँसू बहने के कारण जल तत्व, शरीर की गर्मी के द्वारा तेज (अग्नि) तत्व, विरह के दुख में दुखी होने के कारण शरीर की कमजोरी के कारण भूमि तत्व चला गया है। इतना सब होने पर भी गोपी ने श्रीकृष्ण से मिलने की आशा में आकाश तत्व को बनाए रखा है। वह तो श्रीकृष्ण से मिलने की आशा पर ही जीवित है। जिस दिन से श्रीकृष्ण ने गोपी की तरफ से मुँह फेर लिया है तभी से उसका दिल उन के साथ चला गया है और गोपी के मुख की हँसी गायब हो गयी है। वह कृष्ण को ढूँढ़-ढूँढ़ कर थक चुकी है।

कला पक्ष/ शिल्प सौंदर्य-

  1. संपूर्ण सवैये में अतिशयोक्ति अलंकार दृष्टव्य है। गोपी के विरह का बढ़ा-चढ़ाकर (अतिशयोक्ति पूर्ण) वर्णन किया गया है।
  2. शृंगार रस के वियोग पक्ष का वर्णन है।
  3. ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
  4. सवैये में लयात्मकता तथा गेयता विद्यमान है।
  5. माधर्य गुण है।
  6. सवैया छंद है।
  7. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है-सांसनि ही सौं समीर, तन की तनुजा आदि।
  8. हरि जू हरि में यमक अलंकार है।
  9. मुँह फेर लेना मुहावरे का प्रयोग किया गया है।

सपना
झहरि—झहरी.......................................वा जमन में।

प्रसंग- कवि - ‘देव’- रीतिकालीन प्रमुख कवि / कविता - सपना

भावपक्ष-

  • प्रस्तुत पंक्तियों में स्वप्न और उसके टूटने के माध्यम से कवि ने शृंगार रस के दोनों पक्षों अर्थात् संयोग व वियोग को बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। कवि के अनुसार गोपियाँ हर अवस्था में (स्वप्न व जागृत) श्री कृष्ण का सान्निध्य चाहती हैं। उनके लिए श्री कृष्ण का वियोग असह्य है।

शिल्प सौंदर्य-

  1. कोमल कान्त पदावली युक्त ब्रज भाषा का प्रयोग।
  2. शृंगार के दोनों पक्षों (संयोग व वियोग) को एक साथ प्रस्तुत किया है।
  3. भाषा में चित्रात्मकता व तुकान्तता है। गेयता का गुण विद्यमान है।
  4. कवित्त छंद का प्रयोग है।
  5. ‘झहरि-झहरि’ तथा ‘घहरि-घहरि’ में पुनरुक्ति प्रकाश ‘झहरि-झहरि झीनी’ व ‘निगोड़ी नींद’ में अनुप्रास तथा ‘सोए गए भाग मेरे’ में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग है।
  6. ‘फूला न समाना’ मुहावरे का प्रयोग है।
  7. माधुर्य गुण है।
  8. नींद का खुलना और भाग्य का सोना विरोधाभास से गोपी की पीड़ा अभिव्यक्त हुई है।

दरबार

प्रसंग- कवि-देव / कविता-दरबार

काव्य-सौंदर्य
भाव-पक्ष-

  • प्रस्तुत सवैये में कवि देव ने अपने समय के दरबारी तथा सामंती वातावरण पर करारी चोट करते हुए उसके प्रति अपने असंतोष को प्रकट किया है। कवि का कहना है कि भोगविलासिता से पूर्ण वातावरण में काव्य और कला का कोई मोल नहीं है। सभी लोग मात्र चाटुकारिता व अपने स्वार्थ सिद्धि में ही लगे हुए हैं।

शिल्प-सौंदर्य-

  1. सवैया छंद का प्रयोग हैं।
  2. लालित्यपूर्ण ब्रज भाषा प्रयुक्त हुई है।
  3. ‘रुचि राच्यों’, ‘निसि नाच्यों’, ‘निबरेनट’ मसाहिब मूक, रंग-रीझ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. भोगविलास के कारण अकर्मण्यता है तथा उनकी बिगड़ चुकी है।
  5. प्रसाद गुण है।