हजारी प्रसाद द्विवेदी (Not for Exams) - महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

 सीबीएसई कक्षा -12 हिंदी कोर

महत्वपूर्ण प्रश्न
पाठ – 17

हजारी प्रसाद द्विवेदी (शिरीष के फूल)


महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

1. कालिदास ने शिरीष की कोमलता और द्विवेदी जी ने उसकी कठोरता के विषय में क्या कहा है? ‘शिरीष के फूल’ पाठ के आधार पर बताइए।

उत्तर- कालिदास और संस्कृत साहित्य ने शिरीष को बहुत कोमल माना है। कालिदास का कथन कि “पदं सहेत भ्रमरस्य पेलवं शिरीष पुष्पं न पुनः पतत्रिणाम्” -शिरीष पुष्प केवल भौंरों के पदों का कोमल दबाव सहन कर सकता है, पक्षियों का बिलकुल नहीं। लेकिन इससे हज़ारी प्रसाद द्विवेदी सहमत नहीं हैं। उनका विचार है कि इसे कोमल मानना भूल है। इसके फल इतने मज़बूत होते हैं कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते। जब तक नए फल-पत्ते मिलकर, धकियाकर उन्हें बाहर नहीं कर देते, तब तक वे डटे रहते हैं। वसंत के आगमन पर जब सारी वनस्थली पुष्प-पत्र से मर्मरित होती रहती है, तब भी शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं।

2. शिरीष के अवधूत रूप के कारण लेखक को किस महात्मा की याद आती है और क्यों?

उत्तर- शिरीष के अवधूत रूप के कारण लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी को हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की याद आती है। शिरीष तरु अवधूत है, क्योंकि वह बाह्य परिवर्तन-धूप, वर्षा, आँधी, लू सब में शांत बना रहता है और पुष्पित पल्लवित होता रहता है। इसी प्रकार महात्मा गाँधी भी मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर के बवंडर के बीच स्थिर रह सके थे। इस समानता के कारण लेखक को गाँधी जी की याद आ जाती है, जिनके व्यक्तित्व ने समाज को सिखाया कि आत्मबल, शारीरिक बल से कहीं ऊपर की चीज़ है। आत्मा की शक्ति है। जैसे शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल, इतना कठोर हो सका है, वैसे ही महात्मा गाँधी भी कठोर-कोमल व्यक्तित्व वाले थे। यह वृक्ष और वह मनुष्य दोनों ही अवधूत हैं।

3. शिरीष की तीन ऐसी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए जिनके कारण आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने उसे ‘कालजयी अवधूत’ कहा है।

उत्तर- आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने शिरीष को ‘कालजयी अवधूत’ कहा है। उन्होंने उसकी निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं-

(i) वह संन्यासी की तरह कठोर मौसम में जिंदा रहता है।

(ii) वह भीषण गरमी में भी फूलों से लदा रहता है तथा अपनी सरसता बनाए रखता है।

(iii) वह कठिन परिस्थितियों में भी घुटने नहीं टेकता।

(iv) वह संन्यासी की तरह हर स्थिति में मस्त रहता है।

4. लेखक ने शिरीष के माध्यम से किस द्वंद्व को व्यक्त किया है ?

उत्तर- लेखक ने शिरीष के पुराने फलों की अधिकार-लिप्सु खड़खड़ाहट और नए पत्ते-फलों द्वारा उन्हें धकियाकर बाहर निकालने में साहित्य, समाज व राजनीति में पुरानी व नयी पीढ़ी के द्वंद्व को बताया है। वह स्पष्ट रूप से पुरानी पीढ़ी व हम सब में नएपन के स्वागत का साहस देखना चाहता है।

5. ‘शिरीष के फूल’ पाठ का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- यह ‘निबन्ध ‘कल्पलता’ से उद्धत है। इसमें लेखक, आँधी, लू और गरमी की प्रचंडता में भी अवधूत की तरह अविचल होकर कोमल पुष्पों का सौन्दर्य बिखेर रहे शिरीष के माध्यम से मनुष्य की अजेय जिजीविषा और तुमुल कोलाहल कलह के बीच धैर्यपूर्वक, लोक के साथ चिंतारत, कर्तव्यशील बने रहने को महान मानवीय मूल्य के रूप में स्थापित करता है। ऐसी भावधारा में बहते हुए उसे देह-बल के ऊपर आत्मबल का महत्त्व सिद्ध करने वाली इतिहास-विभूति गाँधी जी की याद हो आती है तो वह गाँधीवादी मूल्यों के अभाव की पीड़ा से भी कसमसा उठता है।

निबन्ध की शुरुआत में लेखक शिरीष पुष्प की कोमल सुंदरता के जाल बुनता है, फिर उसे भेदकर उसके इतिहास में और फिर उसके जरिए मध्यकाल के सांस्कृतिक इतिहास में पैठता है, फिर तत्कालीन जीवन व सामंती वैभव-विलास को सावधानी से उकेरते हुए उसका खोखलापन भी उजागर करता है वह अशोक के फूल के भूल जाने की तरह ही शिरीष को नज़रअंदाज किए जाने की साहित्यिक घटना से आहत है। इसी में उसे सच्चे कवि का तत्व-दर्शन भी होता है। उसका मानना है कि योगी की अनासक्त शुन्यता और प्रेमी की सरस पूर्णता एक उपलब्ध होना सत्कवि होने की एकमात्र शर्त है। ऐसा कवि ही समस्त प्राकृतिक और मानवीय वैभव में रमकर भी चुकता नहीं और निरंतर आगे बढ़ते जाने की प्रेरणा देता है।

6. कालिदास-कृत शकुंतला के सौंदर्य वर्णन को महत्त्व देकर लेखक ‘सौंदर्य’ को स्त्री को एक मूल्य के रूप में स्थापित करता प्रतीत होता है। क्या यह सत्य है? यदि हाँ, तो क्या ऐसा करना उचित है?

उत्तर- लेखक ने शकुंतला के सौंदर्य का वर्णन कर उसे एक स्त्री के लिए आवश्यक तत्व स्वीकार किया है। प्रकृति ने स्त्री को कोमल भावनाओं से युक्त बनाया है। स्त्री को उसके सौंदर्य से ही अधिक जाना गया है, न कि शक्ति से। यह तथ्य आज भी उतना ही सत्य है। स्त्रियों का अलंकारों व वस्त्रों के प्रति आकर्षण भी यह सिद्ध करता है। यह उचित भी है क्योंकि स्त्री प्रकृति की सुकोमल रचना है। अत: उसके साथ छेड़छाड़ करना अनुचित है।

7. ‘ऐसे दुमकारों’ से तो लँडूरे भले’- इसका भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- लेखक कहता है कि दुमदार अर्थात् सजीला पक्षी कुछ दिनों के लिए सुंदर नृत्य करता है, फिर दुम गवाकर कुरूप हो जाते हैं। यहाँ लेखक मोर के बारे में कह रहा हैं। वह बताता है कि सौंदर्य क्षणिक नहीं होना चाहिए। इससे अच्छा तो पूँछ कटा पक्षी ही ठीक है। उसे कुरूप होने की दुर्गति तो नहीं झेलनी पड़ेगी।

8. विज्जिका ने ब्रह्मा, वाल्मीकि और व्यास के अतिरिक्त किसी को कवि क्यों नहीं माना है?

उत्तर- कर्णाट राज की प्रिया विज्जिका ने केवल तीन ही को कवि माना है। ब्रह्मा ने वेदों की रचना की जिसमें ज्ञान की अथाह राशि है। वाल्मीकि ने रामायण की रचना की जो भारतीय संस्कृति के मानदंडों को बताता है। व्यास ने महाभारत की रचना की। यह अपनी विशालता व विषय-व्यापकता के कारण विश्व के सर्वश्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक है। भारत के अधिकतर साहित्यकार इनसे प्रेरणा लेते हैं। अन्य साहित्यकारों की रचनाएँ प्रेरणास्रोत के रूप में स्थापित नहीं हो पाई। अतः उसने किसी और व्यक्ति को कवि नहीं माना।

पाठ पर आधारित अन्य प्रश्नोत्तर

1. सिद्ध कीजिए कि शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता के मंत्र का प्रचार करता है ?

उत्तर- शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता के मंत्र का प्रचार करता है। जब पृथ्वी अग्नि के समान तप रही होती है वह तब भी कोमल फूलों से लदा लहलहाता रहता है। बाहरी गरमी, धूप, वर्षा आँधी, लू उसे प्रभावित नहीं करती। इतना ही नहीं वह लंबे समय तक खिला रहता है। शिरीष विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्यशील रहने तथा अपनी अजेय जिजीविषा के साथ निस्पृह भाव से प्रचंड गरमी में भी अविचल खड़ा रहता है।

2. आरग्वध (अमलतास) की तुलना शिरीष से क्यों नहीं की जा सकती ?

उत्तर- शिरीष के फूल भयंकर गरमी में खिलते हैं और आषाढ़ तक खिलते रहते हैं जबकि अमलतास का फूल केवल पन्द्रह-बीस दिनों के लिए खिलता है। उसके बाद अमलतास के फूल झड़ जाते हैं और पेड़ फिर से ठूँठ का ठूँठ हो जाता है। अमलतास अल्पजीवी है। विपरीत परिस्थितियों को झेलता हुआ ऊष्ण वातावरण को हँसकर झेलता हुआ शिरीष दीर्घजीवी रहता है। यही कारण है कि शिरीष की तुलना अमलतास से नहीं की जा सकती।

3. शिरीष के फलों को राजनेताओं का रूपक क्यों दिया नया है ?

उत्तर- शिरीष के फल उन बूढ़े, ढीठ और पुराने राजनेताओं के प्रतीक हैं जो अपनी कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते। अपनी अधिकार-लिप्सा के लिए नए युवा नेताओं को आगे नहीं आने देते। शिरीष के नए फलों को जबरदस्ती पुराने फलों को धकियाना पड़ता है। राजनीति में भी नई युवा पीढ़ी, पुरानी पीढ़ी को हराकर स्वयं सता सँभाल लेती है।

4. काल देवता की मार से बचने का क्या उपाय बताया गया है ?

उत्तर- काल देवता कि मार से बचने का अर्थ है- मृत्यु से बचना। इसका एकमात्र उपाय यह है कि मनुष्य स्थिर न हो। गतिशील, परिवर्तनशील रहे। लेखक के अनुसार जिनकी चेतना सदा ऊर्ध्वमुखी (आध्यात्म की ओर) रहती है, वे टिक जाते हैं।

5. गाँधीजी और शिरीष की समानता प्रकट कीजिए।

उत्तर- जिस प्रकार शिरीष चिलचिलाती धूप, लू वर्षा और आँधी में भी अविचल खड़ा रहता है, अनासक्त रहकर अपने वातावरण से रस खींचकर सरस, कोमल बना रहता है, उसी प्रकार गाँधी जी ने भी अपनी आँखों के सामने आजादी के संग्राम में अन्याय, भेदभाव और हिंसा को झेला। उनके कोमल मन में एक ओर निरीह जनता के प्रति असीम करुणा जागी वहीं वे अन्यायी शासन के विरोध में डटकर खड़े हो गए।

गद्यांश आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

गद्यांश संकेत- पाठ-शिरीष के फूल (पृष्ठ १४७)

काली दास सौंदर्य के .................... वह इशारा है।

(क) कालिदास की सौंदर्य दृष्टि की क्या विशेषता थी ?

उत्तर- कालिदास की सौंदर्य-दृष्टि बहुत सूक्ष्म, अंतर्भेदी और संपूर्ण थी। वे केवल बाहरी रूप-रंग और आकार को ही नहीं देखते थे बल्कि अंतर्मन की सुंदरता के भी पारखी थे। कालिदास की सौंदर्य शारीरिक और मानसिक दोनों विशेषताओं से युक्त था।

(ख) अनासति का क्या आशय है ?

उत्तर- अनासति का आशय है- व्यक्तिगत सुख-दुख और राग-द्वेष से परे रहकर सौंदर्य के वास्तविक मर्म को जानना।

(ग) कालिदास , पंत और रवींद्रनाथ टैगोर में कौन सा गुण समान था?

उत्तर- महाकवि कालिदास, सुमित्रानंदन पंत और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर तीनों स्थिरप्रज्ञ और अनासक्त कवि थे। वे शिरीष के समान सरस और मस्त अवधूत थे।

(घ) रवींद्रनाथ राजोद्यान के सिंहद्वार के बारे में क्या संदेश देते हैं ?

उत्तर- राजोद्यान के बारे में रवींद्रनाथ कहते हैं राजोद्यान का सिंहद्वार कितना ही सुंदर और गगनचुम्बी क्यों ना हो, वह अंतिम पड़ाव नहीं है। उसका सौंदर्य किसी और उच्चतम सौंदर्य की ओर किया गया संकेत मात्र है कि असली सौंदर्य इसे पार करने के बाद है अतः राजोद्यान का सिंहद्वार हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।