विष्णु खरे (Not for Exams) - CBSE Test Papers

 CBSE Test Paper 01

विष्णु खरे


  1. चार्ली चैप्लिन का व्यक्तित्व कैसा था?

  2. चार्ली चैप्लिन की सावभौमिकता का क्या कारण है?

  3. विष्णु खरे लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों? क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण दे सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथ आए हों?

  4. चैप्लिन ने न सिर्फ़ फ़िल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने का और वर्ण-व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?

  5. चार्ली चैप्लिन यानी हम सब पाठ का प्रतिपाद्य बताइए।

  6. चार्ली सबसे ज्य़ादा स्वयं पर कब हँसता है?

  7. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए : (2x3=6)
    उनकी फ़िल्में भावनाओं पर टिकी हुई हैं, बुद्धि पर नहीं। ‘मेट्रोपोलिस’, ‘दी कैबिनेट ऑफ़ डॉक्टर कैलिगारी’, ‘द रोवंथ सील', 'लास्ट इयर इन मारिएनबाड', 'द सैक्रिफाइस' जैसी फ़िल्में दर्शक से एक उच्चतर अहसास की माँग करती हैं। चैप्लिन का चमत्कार यही है कि उनकी फ़िल्मों को पागलखाने के मरीज़ों, विकल मस्तिष्क लोगों से लेकर आइंस्टाइन जैसे महान प्रतिभा वाले व्यक्ति तक कहीं एक स्तर पर और कहीं सूक्ष्मतम रसास्वादन के साथ देख सकते हैं। चैप्लिन ने न सिर्फ फ़िल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग-व्यवस्था को तोड़ा। यह अकारण नहीं है कि जो भी व्यक्ति, समूह या तंत्र गैर बराबरी नहीं मिटाना चाहता वह अन्य संस्थाओं के अलावा चैप्लिन की फ़िल्मों पर भी हमला करता है। चैप्लिन भीड़ का वह बच्चा है जो इशारे से बतला देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है जितना मैं हूँ और भीड़ हँस देती है। कोई भी शासक या तंत्र जनता का अपने ऊपर हँसना पसंद नहीं करता।

    1. चार्ली चैप्लिन कौन था? उसका चमत्कार क्या है?
    2. कला को लोकतांत्रिक बनाया' से लेखक का क्या आशय है?
    3. चैप्लिन की फ़िल्मों पर हमले क्यों होते रहे हैं?

CBSE Test Paper 01
विष्णु खरे


Solution

  1. चार्ली चैप्लिन का व्यक्तित्व सुलझा हुआ था। वह हँसमुख आदमी था। दूसरों को हँसाना बहुत आसान है लेकिन खुद पर हँसना उतना ही मुश्किल। चार्ली ने ऐसा कठिन कार्य भी कर दिखाया। वह फ़िल्मों में गंभीर से गंभीर विषय पर स्वयं पर ही हँसता था। करुणा कब हास्य में बदल जाती, पता ही न चलता।

  2. चार्ली चैप्लिन की कला की सार्वभौमिकता के कारणों की जाँच अभी होनी है, परंतु कुछ कारण स्पष्ट हैं, जैसे वे सदैव युवा जैसे दिखते हैं तथा दूसरोंं को अपने लगते हैं।

  3. लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में रस को श्रेयस्कर माना है। इसका कारण यह है कि किसी भी कलाकृति में एक साथ कई रसों के आ जाने से कला और अधिक समृद्धशाली और रुचिकर बनती है। रस मानवीय भावों का दर्पण होता है जो किसी भी कला के माध्यम से दर्शकों एवं श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत होकर उसे आस्वादन के योग्य बनाता है. उदाहरण स्वरुप नायिका का चोरी से प्रेम-पत्र पढ़ते समय उसके चेहरे के प्रेमभाव (श्रृंगार रस) और उसी समय पिता द्वारा उसकी चोरी पकड़े जाने पर डर के भाव (भय रस) का आना,सीमा पर लड़ते हुए शहीद हो चुके जवान के चेहरे पर वीर रस और शांत रस का भाव आना।

  4. फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाने का अर्थ है कि उसे सभी के लिए लोकप्रिय बनाना और वर्ग और वर्ण-व्यवस्था को तोड़ने का आशय है - समाज में प्रचलित अमीर-गरीब, वर्ण,जातिधर्म के भेदभाव को समाप्त करना। चार्ली ने दर्शकों की वर्ग और वर्ण व्यवस्था को तोड़कर उसे आम  लोगों से जोड़ा, इससे पहले लोग किसी जाति, धर्म, समूह या वर्ण विशेष के लिए फ़िल्म बनाते थे। कुछ कलात्मक फ़िल्में भी बनती थी जिनका दर्शक वर्ग विशिष्ट होता था, परंतु चार्ली ने ऐसी फ़िल्में बनाई जिनको देखकर आज भी आम आदमी आनंद का अनुभव करता है।
    चैप्लिन का चमत्कार यह है कि उन्होंने फिल्मकला को बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों तक पहुँचाया। चार्ली ने अपनी फ़िल्मों में आम आदमी को स्थान दिया, उनकी फिल्मों ने भौगोलिक और सांस्कृतिक सीमाओं को लाँघ कर सार्वभौमिक लोकप्रियता हासिल की। चार्ली ने यह सिद्ध कर दिया कि कला स्वतन्त्र होती है, जो किसी एक परिवेश में न बॅंध कर अपने सिद्धांत स्वयं बनाती है। उन्होंने कला के एकाधिकार को समाप्त कर उसे नयी परिभाषा दी।

  5. हास्य फाइलों के महान अभिनेता व निर्देशक चार्ली चैप्लिन पर लिखे इस पाठ में उनकी कुछ विशेषताओं को लेखक ने बताया है। चार्ली की सबसे बड़ी विशेषता करुणा और हास्य के तत्वों का सामंजस्य है। भारत जैसे देश में सिद्धांत व रचना-दोनों स्तरों पर हास्य और करुणा के मेल की कोई  परंपरा नहीं है, इसके बावजूद चार्लीं  चैप्लिन की लोकप्रियता यह बताती है कि कला स्वतंत्र होती है, बँधती नहीं। दुनिया में एक-से-एक हास्य कलाकार हुए, पर वे चैप्लिन की तरह हर देश, हर उम्र और हर स्तर के दर्शकों की पसंद नहीं बन पाए।उनके चरित्र वास्तविकता से जुड़े होने के कारण लोगों के ज्यादा निकट है। 

  6. चार्ली सबसे ज्य़ादा स्वयं पर तब हँसता है, जब वह स्वयं को गर्वोन्नत, आत्म-विश्वास से भरपूर, सफलता, सभ्यता- संस्कृति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्य़ादा स्वयं को शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ समझने वाले को असहाय अवस्था में, अपने 'वज्रादपि कठोराणि' अथवा 'मृदुनि कुसुमादपि' क्षण में देखता है।विषम परिस्थितियों में प्राप्त सफलता की स्थिति में स्वयं को सहज अनुभव करता है. 

    1. चार्ली चैप्लिन हास्य फिल्मों का महान अभिनेता और निर्देशक था। उसका चमत्कार यह था कि पागलखाने के मरीज से लेकर आईंस्टाइन जैसे महान प्रतिभा संपन्न व्यक्ति भी उसकी फिल्मों को कहीं एक स्तर पर और कहीं सूक्ष्मतम रसास्वादन के साथ देख सकते थे।
    2. कला को लोकतांत्रिक बनाने से आशय यह है कि उनकी फिल्में किसी एक वर्ग, जाति, समूह वर्ण के लिए नहीं; विश्व के सभी वर्ग के लोगों के लिए उनकी फिल्में थीं।
    3. चैप्लिन की फ़िल्मों पर हमले के निम्नलिखित कारण थे-   
    • प्रभुत्व संपन्न लोगों द्वारा समानता न चाहना।
    • संपन्न लोगों की एकाधिकार की भावना के कारण।