उमाशंकर जोशी (Not for Exams) - CBSE Test Papers
CBSE Test Paper 01
उमाशंकर जोशी
उमाशंकर जोशी के अनुसार अलौकिक रस की धारा कब फूटती है?
छोटा मेरा खेत कविता में कवि ने रस के अक्षय पात्र से रचनाकर्म की किन विशेषताओं का संकेत किया है? स्पष्ट कीजिए।
बीज गल गया निःशेष’ से क्या तात्पर्य है?
छोटे चौकोने खेत को कागज़ का पन्ना कहने में क्या अर्थ निहित है?
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- (2×2=4)
छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।- काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
- मनोभावों की तुलना किससे की गई है?
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- (2×3=6)
छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज बहाँ बोया गया।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया निःशेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।
झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फुटतीं
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना।- कवि और कविता का नाम लिखिए।
- कवि इन पंक्तियों में खेत से किसकी तुलना कर रहा है?
- लुटते रहने से भी क्या काम नहीं होता और क्यों?
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- (2×3=6)
छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया निःशेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।- कविता की रचना-प्रक्रिया समझाइए।
- खेत अगर कागज हैं तो बीज क्षय का विचार, फिर पल्लव-पुष्प क्या हैं?
- मूल विचार को क्षण का बीज क्यों कहा गया है? उसका रूप-परिवर्तन किन रसायनों से होता है?
CBSE Test Paper 01
उमाशंकर जोशी
Solution
जब कोई विचार रूपी बीज अंकुरित होकर कविता का रूप धारण कर लेती है तो उसमें से आनंद की बहुत-सी धाराएँ फूटती रहती है। यह धाराएँ अनंतकाल तक बहती जाती है। यह आनंद पाठकों को चिरकाल तक खुशी देता है। इसलिए यह रस अलौकिक है।
कविता 'छोटा मेरा खेत में ' रस के अक्षय पात्र के रूप में कवि की अभिव्यक्ति अर्थात उसके काव्य रचना की ओर संकेत किया गया है । जिस प्रकार अक्षयपात्र में निहित सामग्री कभी समाप्त नहीं होती और पात्र सर्वदा सभी को संतुष्टि प्रदान करता है उसी प्रकार कवि की कविता का रस एवं भाव सौन्दर्य अनंतकाल तक अपने पाठकों और श्रोताओं को आनंद देता रहता है।
इसका अर्थ है कि जब तक कवि के मन में कविता का मूल भाव पूर्णतया समा नहीं जाता, तब तक निजता से मुक्त नहीं हो सकता। कविता तभी सफल मानी जाती है, जब वह समग्र मानव जाति की भावना को व्यक्त करती है। कविता को सार्वजनिक बनाने के लिए कवि का अहंकार नष्ट होना आवश्यक है।
कवि अपने कवि - कर्म को किसान के कृषि कर्म जैसा ही बताता है। कवि कहते हैं कि मैं भी एक प्रकार का किसान हूँ। किसान के खेत के समान उसके पास चौकोर कागज का पन्ना है। जैसे किसान जमीन पर बीज, खाद,जल डालता है उसी प्रकार मैं कागज़ पर शब्द,भाव बोता हूँ। उसके बाद अनाज,फल -फूल की तरह कविता पुष्पित पल्लवित होती है,इस प्रकार कवि काव्य-रचना रूपी खेती के लिए कागज़ के पन्ने को अपना चौकोना खेत कहते हैं।
- प्रस्तुत काव्यांश में खेती के कार्यों के रूपकों के जरिए कवि ने अपने रचना-कर्म को व्याख्यायित किया है। जिस प्रकार खेत में बीज बोया जाता है, वैसे ही कवि मनोभावों और विचारों के बीज बोता है। इस बीजारोपण से शब्द रूपी अंकुर फूटते हैं और साहित्यिक कृति रूपी फसल विकसित होती है। इसके माध्यम से कवि ने साहित्य की जीवंतता और अनंतकाल तक उसके अस्तित्व में बने रहने की बात कही है।
- मनोभावों की तुलना 'अंधड़' से की गई है क्योंकि भावना एवं विचार आँधी की तरह मन में आते हैं तभी तीव्र मनोभावों की उत्पत्ति द्वारा काव्य-सृजन होता है।
- कवि का नाम - उमाशंकर जोशी, कविता का नाम - छोटा मेरा खेत
- कवि ने इन पंक्तियों में खेत की तुलना कागज के उस चौकोर पन्ने से की है, जिस पर उसने कविता लिखी है। इसका कारण यह है कि इसी कागजरूपी खेत पर कवि ने अपने भावों-विचारों के बीज बोए थे जो फसल की भाँति उगकर आनंद प्रदान करेंगे।
- साहित्य का आनंद अनंत काल से लुटते रहने पर भी कम नहीं होता क्योंकि सभी पाठक अपने-अपने ढंग से रस का आनंद उठाते हैं।
- कविता की रचना-प्रक्रिया फसल उगाने की तरह होती है। सबसे पहले कवि के मन में भावनात्मक आवेग उमड़ता है। फिर वह भाव क्षण-विशेष में रूप ग्रहण कर लेता है। वह भाव कल्पना के सहारे विकसित होकर रचना बन जाता है तथा अनंत काल तक पाठकों को रस देता है।
- खेत अगर कागज है तो बीज क्षण का विचार, फिर पल्लव-पुष्प कविता हैं। यह भावरूपी कविता पत्तों व पुष्पों से लदकर झुक जाती है।
- मूल विचार को ‘क्षण का बीज’ कहा गया है क्योंकि भावनात्मक आवेग के कारण अनेक विचार मन में चलते रहते हैं। उनमें कोई भाव समय के अनुकूल विचार बन जाता है तथा कल्पना के सहारे वह विकसित होता है। कल्पना व चिंतन के रसायनों से उसका रूप-परिवर्तन होता है।