सिल्वर वेडिंग - CBSE Test Papers
CBSE Test Paper 01
सिल्वर वेडिंग
समहाउ इंप्रापर वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रांरभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है?
वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी (सिल्वर वेडिंग) से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं ?
किशनदा का बुढ़ापा सुखी क्यों नहीं रहा? सिल्वर वैडिंग पाठ के सन्दर्भ में उत्तर दीजिए।
यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा और कैसे?
सिल्वर वैडिंग कहानी के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश देने का प्रयास किया है?
यशोधर बाबू की पत्नी मुख्यतः पुराने संस्कारों वाली थीं, फिर किन कारणों से वे आधुनिक बन गई? सिल्वर वैडिंग पाठ के आधार पर बताइए।
क्या पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को सिल्वर वैडिंग कहानी की मूल संवेदना कहा जा सकता है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
सिल्वर वैडिंग वर्तमान युग में बदलते जीवन-मूल्यों की कहानी है। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
CBSE Test Paper 01
सिल्वर वेडिंग
Solution
यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रांरभ में 'समहाउ इंप्रापर' शब्द का उपयोग तकिया कलाम की तरह करते हैं। उन्हें जो अनुचित लगता है, तब अचानक यह वाक्य कहते हैं।
पाठ में 'समहाउ इंप्रापर' वाक्यांश का प्रयोग निम्नलिखित संदर्भो में हुआ है-इन सन्दर्भों से यह स्पष्ट हो जाता है कि यशोधर बाबू सिद्धांतवादी हैं। यशोधर बाबू आधुनिक परिवेश में बदलते हुए जीवन-मूल्यों और संस्कारों के विरूद्ध हैं। वे उन्हें अपनाना नहीं चाहते, इसी आदत के कारण प्रायः परिवार से उनका मनमुटाव बना रहता है और असहजता एवं अस्वाभाविक स्थिति में यह वाक्यांश उनके मुॅंह से निकल पड़ता है।
- दफ़्तर में सिल्वर वैडिंग की पार्टी देने की मांग पर
- साधारण पुत्र को असाधारण वेतन मिलने पर
- स्कूटर की सवारी पर
- पत्नी एवं पुत्री के पहनावे पर
- डीडीए फ्लैट का पैसा न भरने पर
- खुशहाली में रिश्तेदारों की उपेक्षा करने पर
- छोटे साले के ओछेपन पर
- केक काटने की विदेशी परंपरा पर आदि
इस पाठ के माध्यम से पीढ़ी के अंतराल का मार्मिक चित्रण किया गया है। आधुनिकता के दौर में, यशोधर बाबू परंपरागत मूल्यों को हर हाल में जीवित रखना चाहते हैं। उनका उसूलपसंद होना दफ्तर एवम घर के लोगों के लिए सिरदर्द बन गया था। यशोधर संस्कारों से जुड़ना चाहते हैं और संयुक्त परिवार की संवेदनाओं को अनुभव करते हैं जबकि उनके बच्चे अपने आप में जीना चाहते हैं। वे पुरानी मान्यताओं को नहीं मानते हैं। इन सब वजहों से उनके और उनके परिवार के बीच हमेशा मतभेद बना रहता है।
अतः मेरे मत से पुरानी-पीढ़ी को कुछ आधुनिक होना पड़ेगा और नई-पीढ़ी को भी पुरानी परंपराओं और मान्यताओं का ख्याल रखना होगा,ये तभी संभव है जब दोनों पक्ष एक दूसरे का सम्मान करेंगे एवं सुख-सुविधा का ख्याल रखेंगे।बाल-जती किशनदा का बुढ़ापा सुखी नहीं रहा। उनके तमाम साथियों ने हौजखास, ग्रीनपार्क, कैलाश कहीं-न-कहीं ज़मीन ली, मकान बनवाया, लेकिन उन्होंने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। रिटायर होने के छह महीने बाद जब उन्हें क्वार्टर खाली करना पड़ा तब उनके द्वारा उपकृत लोगों में से एक ने भी उन्हें अपने यहाँ रखने की पेशकश नहीं की। स्वयं यशोधर बाबू उनके सामने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रख पाए क्योंकि उस समय तक उनकी शादी हो चुकी थी और उनके दो कमरों के क्वार्टर में तीन परिवार रहा करते थे। किशनदा कुछ साल राजेंद्र नगर में किराए का क्वार्टर लेकर रहे और फिर अपने गाँव लौट गए जहाँ साल भर बाद उनकी मृत्यु हो गई। बुढ़ापे में उनकी देखभाल के लिए नहीं कोई नहीं था। विचित्र बात यह है कि उन्हें कोई भी बीमारी नहीं हुई। बस रिटायर होने के बाद मुरझाते-सूखते ही चले गए। अकेलेपन ने उनके अंदर की जीवनशक्ति को समाप्त कर दिया था।
यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। मेरे जीवन को दिशा देने में मेरी बड़ी बहन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वे पढ़ाई-लिखाई, खेल-कूद सभी में हमेशा आगे रहती थीं। उन्हें देखकर मुझे भी आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती थी। वे समय-समय पर मुझे मार्गदर्शन भी देती रही तथा मेरी कमजोरियों को दूर करने में मेरी पूरी सहायता की। इन सबके अतिरिक्त उन्होंने मुश्किल घड़ी में मेरी सहायता भी किया जिससे मैं अपनी मंजिल तक पहुँच सका ।
(उपर्युक्त के अतिरिक्त स्वयं के अनुभव के आधार पर अन्य उत्तर भी लिखा जा सकता है)इस कहानी में ‘पीढ़ी का अंतराल’ सबसे प्रमुख है। यही मूल संवेदना है क्योंकि कहानी में प्रत्येक कठिनाई इसलिए आ रही है कि यशोधर बाबू अपने पुराने संस्कारों, नियमों व कायदों से बँधे रहना चाहते हैं और उनका परिवार, उनके बच्चे वर्तमान में जी रहे हैं जो ऐसा कुछ गलत भी नहीं है। यदि यशोधर बाबू थोड़े-से लचीले स्वभाव के हो जाते, तो उन्हें बहुत सुख मिलता और जीवन भी खुशी से व्यतीत करते। अतः इस कहानी के माध्यम से लेखक यह सन्देश देना चाहता है कि हमें अपना जीवन सुख से बिताने के लिए सामंजस्य एवं समन्वय की भावना रखनी होगी। साथ ही युवा पीढ़ी के लिए यह संदेश दिया है कि उन्हें अपने बुजुर्गों की इच्छा का सम्मान करते हुए उनकी इच्छा एवं विचारों को समझते हुए जीवन के महत्त्वपूर्ण निर्णय लेना चाहिए।
यशोधर बाबू की पत्नी अपने मूल संस्कारों से किसी भी तरह आधुनिक नहीं है, पर अब बच्चों का पक्ष लेने की मातृ सुलभ मजबूरी ने उन्हें आधुनिक बना दिया है। वे बच्चों के साथ खुशी से समय बिताना चाहती हैं। अतः किसी प्रकार का मतभेद होने पर बच्चों का साथ देना ही उन्हें अच्छा लगता है। इसके अतिरिक्त उनके मन में इस बात का भी बड़ा मलाल था कि जब विवाह करके इस घर में आई थीं, तो संयुक्त परिवार में उन पर बहुत कुछ थोपा गया और उनके पति यशोधर बाबू ने कभी भी उनका पक्ष नहीं लिया। युवावस्था में ही उन्हें बुढ़िया बना दिया गया। अब तो कम-से-कम बच्चों के साथ रहकर कुछ मन की कर लें।
सिल्वर वैडिंग कहानी में युवा पीढ़ी को पाश्चात्य रंग में रंगा हुआ दिखाया गया है। इस पीढ़ी की नजर में भारतीय मूल्य व परंपराओं के लिए कोई स्थान नहीं है। वे रिश्तेदारी, रीति-रिवाज, वेशभूषा आदि सबको छोड़कर पश्चिमी रूप को अपना रहे हैं, परंतु यह कहानी की मूल संवेदना नहीं है, वास्तव में कहानी की मूल संवेदना 'पीढ़ी का अंतराल' है। कहानी के पात्र यशोधर पुरानी परंपराओं को जीवित रखे हुए हैं, भले ही उन्हें घर में अकेलापन सहन करना पड़ रहा हो। वे अपने दफ्तर व घर में विदेशी परंपरा पर टिप्पणी करते रहते हैं। इससे तनाव उत्पन्न होता है। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पीढ़ी अंतराल के कारण ज्यादा रहता है।
सिल्वर वैडिंग कहानी वर्तमान युग में बदलते जीवन-मूल्यों की कहानी है। इस कहानी में यशोधर पंत प्राचीन मूल्यों के प्रतीक हैं। इसके विपरीत उनकी संतान नए युग का प्रतिनिधित्व करती है। दोनों पीढ़ियों के अपने-अपने जीवन मूल्य हैं। यशोधर के बच्चे वर्तमान समय के बदलते जीवन-मूल्यों की झलक दिखलाते हैं। नई पीढ़ी जन्म-दिन, सालगीरह आदि पर केक काटने में विश्वास रखती है। नई पीढ़ी तेज़ी से आगे बढ़ना चाहती है। इसके लिए वे परंपरागत व्यवस्था को छोड़ने में संकोच नहीं करते।
यशोधर बाबू परंपरा से जुड़े हुए हैं। वे सादगी का जीवन जीना चाहते हैं। संग्रह वृत्ति, भौतिक चकाचौंध से दूर, वे आत्मीयता, सामूहिकता के बोध से युक्त हैं। इन सबके कारण वे भौतिक संसाधन नहीं एकत्र कर पाते। फलतः वे घर में ही अप्रासांगिक हो जाते हैं। उनकी पत्नी बाहरी आवरण को बदल पाती है, परंतु मूल संस्कारों को नहीं छोड़ पाती। बच्चों की हठ के सम्मुख वह मॉडर्न बन जाती है। समय के साथ-साथ मूल्य भी बदलते जा रहे हैं।