रचनात्मक लेखन - CBSE Test Papers

 CBSE Test Paper 01

रचनात्मक लेखन


  1. बेरोजगारी का दानव विषय पर रचनात्मक लेख लिखिए।

  2. स्वदेश-प्रेम विषय पर रचनात्मक लेख लिखिए।

  3. युवा असंतोष विषय पर रचनात्मक लेख लिखिए।

CBSE Test Paper 01
रचनात्मक लेखन


Solution

  1. बेरोजगारी का दानव

    यहाँ जो समस्याएँ दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ी हैं, इनमें जनसंख्या-वृद्धि, महँगाई, बेरोजगारी आदि मुख्य हैं। इनमें से बेरोजगारी की समस्या ऐसी है जो देश के विकास में बाधक होने के साथ ही अनेक समस्याओं की जड़ बन गई है। किसी व्यक्ति के साथ बेरोजगारी की स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब उसे उसकी योग्यता, क्षमता और कार्य-कुशलता के अनुरूप काम नहीं मिलता, जबकि वह काम करने के लिए तैयार रहता है।बेरोजगारी एक ऐसी समस्या है जो कई सारी कठिनाइयों और समस्याओं को अपने साथ लेकर आती है।

    बेरोजगारी की समस्या शहर और गाँव दोनों ही जगहों पर पाई जाती है। नवीनतम आँकड़ों से पता चला है कि इस समय हमारे देश में ढाई करोड़ बेरोजगार हैं। इस संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। यद्यपि सरकार और उद्यमियों द्वारा इसे कम करने का प्रयास किया जाता है, पर यह प्रयास ऊँट के मुँह में जीरा साबित होता है। हमारे देश में विविध रूपों में बेरोज़गारी पाई जाती है। पहले वर्ग में वे बेरोजगार आते हैं जो पढ़-लिखकर शिक्षित और उच्च शिक्षित हैं। यह वर्ग मज़दूरी नहीं करना चाहता , क्योंकि ऐसा करने में उसकी शिक्षा आड़े आती है।एक वर्ग उन बेरोजगारों का भी है जो ना तो अधिक पढ़े-लिखे हैं और ना ही अधिक मजदूरी कर सकते हैं। और एक वर्ग वे भी हैं जो मजदूरी करना चाहते हैं, पर वे भी हर दिन अपने लिए रोजगार नहीं ढूँढ पाते हैं।

    स्कूली पाट्यक्रमों में श्रम की महिमा संबधी पाठ शामिल किया जाना चाहिए ताकि युवावर्ग श्रम के प्रति अच्छी सोच पैदा कर सके। इसके अलावा एक बार पुनः लघु एवं कुटीर उद्योग की स्थापना एवं उनके विकास के लिए उचित वातावरण बनाने को आवश्यकता है। किसानों को खाली समय में दुग्ध उत्पादन, मधुमक्खी पालन, जैसे कार्यों के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इस काम में सरकार के अलावा धनी लोगों को भी आगे आना चाहिए ताकि भारत बेरोजगार मुक्त बन सके और प्रगति के पथ पर चलते हुए विकास की नई ऊँचाइयाँ छू सके।

  2. स्वदेश-प्रेम

    देश-प्रेम की भावना स्वाभाविक है। मनुष्य अपने देश की हर वस्तु, व्यक्ति, साहित्य, संस्कृति यहाँ तक कि उसके कण-कण से प्यार करता है। यह हृदय की सच्ची भावना है जो केवल सच्चाई व महानता को स्पष्ट करती है।सच्चा देश प्रेम बहुत ही कम देखने को मिलता है, और बढ़ते समय के साथ इसमें गिरावट आ रही है।

    देश-प्रेम की भावना से प्रभावित होकर श्री राम ने सोने की लंका को धूल के समान समझा और विभीषण को लंका का राजा बना दिया। इसी तरह अन्य महान पुरुषों ने अपनी जन्मभूमि भारत के प्रति अपने प्राण न्योछावर करने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई। रानी लक्ष्मीबाई, कुँवर सिंह, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर, वीर सावरकर आदि न जाने कितने देश-प्रेमी थे जो आज हमारे लिए प्रेरणा बने हुए हैं।

    कुछ लोग स्वदेश-प्रेम को स्थूल रूप में लेते हैं। वे भारत माता की मूर्ति की पूजा करते हैं या ‘भारत माता की जय’ बोलने से अपने प्रेम की अभिव्यक्ति मान लेते हैं। यह किसी ढोंग से कम नहीं है,और ये अपने देश के प्रति एक धोखा है। देश-प्रेम सूक्ष्म भाव है जो हम अपने कार्यों से व्यक्त करते हैं। जो देशवासी अपने कर्तव्य देश के प्रति पूर्ण करता है, वही देश-प्रेमी है। स्वदेश-प्रेमी कभी देश के विघटन की बात नहीं करता। वह मानसिक व भौतिक शक्ति में वृद्धि का प्रयास करता है। साथ ही, देश के अन्यायपूर्ण शासनतंत्र को उखाड़ फेंकना भी देश-प्रेमी का कर्तव्य है, देश पर कोई संकट आए तो प्राण न्योछावर करने वाला ही देश-प्रेमी हो सकता है।

  3. युवा असंतोष

    आज चारों तरफ असंतोष का माहौल है। बच्चे-बूढ़े, युवक-प्रौढ़, स्त्री-पुरुष, नेता-जनता सभी असंतुष्ट हैं। युवा वर्ग विशेष रूप से असंतुष्ट दिखता है। घर-बाहर सभी जगह उसे किसी-न-किसी को कोसते हुए देखा-सुना जा सकता है। अब यह प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इसका एक ही कारण नजर आता है नेताओं के खोखले आश्वासन।नेता अपने खोखले वादों से युवाओं को भरमाकर उन्हें बेरोजगारी की ओर धकेल देते हैं। युवा वर्ग को शिक्षा ग्रहण करते समय बड़े-बड़े सब्ज़बाग दिखाए जाते हैं,और जब उनकी शिक्षा पूर्ण होती है, तो वे बेरोजगारी की भीड़ में पीस जाते हैं।

    वह मेहनत से डिग्रियाँ हासिल करता है, परंतु जब वह व्यावहारिक जीवन में प्रवेश करता है तो खुद को पराजित पाता है। उसे अपनी डिग्रियों की निरर्थकता का अहसास हो जाता है। इनके बल पर रोजगार नहीं मिलता। इसके अलावा, हर क्षेत्र में शिक्षितों की भीड़ दिखाई देती है। वह यह भी देखता है कि जो सिफ़ारिशी है, वह योग्यता न होने पर भी मौज कर रहा है वह सब कुछ प्राप्त कर रहा है जिसका वह वास्तविक अधिकारी नहीं है।इस कारण से युवाओं में एक अलग प्रकार का आक्रोश रहता है।

    इनकी शान-शौकत भरी बनावटी जिंदगी आम युवा में हीनता का भाव जगाकर उन्हें असंतुष्ट बना देती है। ऐसे में जब असंतोष, अतृप्ति, लूट-खसोट, आपाधापी आज के व्यावहारिक जीवन का स्थायी अंग बन चुके हैं तो युवा से संतुष्टि की उम्मीद कैसे की जा सकती है? समाज के मूल्य भरभराकर गिर रहे हैं, अनैतिकता सम्मान पा रही है, तो युवा मूल्यों पर आधारित जीवन जीकर आगे नहीं बढ़ सकते।