कुंवर नारायण - CBSE Test Papers

 CBSE Test Paper 01

कुंवर नारायण


  1. कविता के बहाने कविता के कवि को क्या आशंका है और क्यों?

  2. भाषा को सहूलियत से बरतने से क्या अभिप्राय है? (बात सीधी थी पर)

  3. व्याख्या करें-
    ज़ोर ज़बरदस्ती से
    बात की चूड़ी मर गई
    और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।

  4. बात सीधी थी पर कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

  5. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- (2×2=4)
    कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने
    कविता की उड़ान भुला चिड़िया क्या जाने
    बाहर-भीतर
    इस घर, उस घर
    कविता के पंख लगा उड़ने के माने
    चिड़िया क्या जाने?

    1. काव्यांश के भाषा-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
    2. काव्यांश की अलंकार योजना के बारे में लिखिए।
  6. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- (2×3=6)
    आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
    जोर ज़बरदस्ती से बात की चूड़ी मर गई
    और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।
    हारकर मैंने उसे कील की तरह
    उसी जगह ठोंक दिया।
    ऊपर से ठीक ठाक
    पर अंदर से
    न तो कसाव था
    न ताकत।
    बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
    मुझसे खेल रही थी,
    मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा-
    "क्या तुमने भाषा को
    सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?"

    1. ‘बात की चूड़ी मरना' कथन को स्पष्ट कीजिए।
    2. कवि को किस बात का डर था और अंततः क्या हुआ?
    3. बात को कील की तरह ठोंकने से क्या तात्पर्य है? उसका क्या परिणाम हुआ?
  7. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- (2×3=6)
    कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने
    कविता की उड़ान भुला चिड़िया क्या जाने
    बाहर-भीतर
    इस घर, उस घर
    कविता के पंख लगा उड़ने के माने
    चिड़िया क्या जाने?
    कविता एक खिलना है फूलों के बहाने,
    कविता का खिलना भूला फूल क्या जाने!
    बाहर-भीतर
    इस घर, उस घर
    बिना मुरझाए महकने के माने
    फूल क्या जाने?

    1. कवि ने कविता की उड़ान को चिड़िया की उड़ान के समानांतर क्यों बताया है?
    2. चिड़िया कविता के पंख लगाकर क्यों नहीं उड़ सकती?
    3. कविता के खिलकर महकने और फूल के खिलकर महकने के अंतर को समझाइए।

CBSE Test Paper 01
कुंवर नारायण


Solution

  1.  कवि को कविता के अस्तित्व  या भविष्य  के बारे में संदेह है। उसे आशंका है कि औद्योगीकरण के कारण मनुष्य यांत्रिक होता जा रहा है। उसके पास भावनाएँ व्यक्त करने या सुनने का समय नहीं है। प्रगति की अंधी दौड़ से मानव की कोमल भावनाएं समाप्त होती जा रही हैं। वह मशीन बनता जा रहा है, कविता का भाव समझने का वक्त ही उसके पास नहीं है, मनुष्य ने स्वयं को सीमित कर लिया है जबकि कविता के लिए मुखर होने की आवश्यकता होती है अतः कवि को कविता का अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है।

  2. भाषा को सहूलियत से बरतने का आशय है- सीधी, सरल एवं सटीक भाषा के प्रयोग से है। भाव के अनुसार उपयुक्त भाषा का प्रयोग करने वाले लोग ही बात के धनी माने जाते हैं। आडंबर रहित, सरलता और बिना किसी लाग -लपेट के कही गयी बात श्रोताओं एवं पाठकों दोनों को प्रभावित करने में सफल होती है।   

  3. कवि कहते हैं कि एक बार वह सरल कथ्य की अभिव्यक्ति करते समय भाषा को अलंकृत करने के चक्कर में ऐसा फँस गया कि वह अपनी मूल बात को प्रकट ही नहीं कर पाया। जिस प्रकार जोर -जबरदस्ती करने से कील की चूड़ी मर जाती है और तब चूड़ीदार कील को चूड़ीविहीन कील की तरह ठोंकना पड़ता है उसी प्रकार कथ्य के अनुकूल भाषा के अभाव में कथन का प्रभाव नष्ट हो जाता है और अर्थ का अनर्थ हो जाता है।

  4. इस कविता में कवि ने कथ्य और माध्यम के द्वंद्व को उकेरा है तथा भाषा की सहजता की बात कही है। हर बात के लिए कुछ ख़ास शब्द नियत होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हर पेंच के लिए एक निश्चित खाँचा होता है। इसलिए कवि का कहना है कि भाषा का प्रदर्शन नहीं करना चाहिये। घूमा-फिरा कर आलंकारिक रूप से कही गयी बात साधारण लोगों को एक बार में समझ नहीं होती।     

    1. काव्यांश की भाषा सहज एव प्रवाहयुक्त है। 'चिडिया क्या जाने' मे कवि ने प्रश्नालकार का प्रयोग किया है। भाषा मे तुकबदी, जैसे- बहाने, माने, जाने तथा युग्म-शब्दो, जैसे-'इस घर-उस घर’ ‘बाहर-भीतर' आदि के प्रयोग से एक विशिष्ट सौदर्य आ गया है। साहित्यिक खड़ी बोली में भी सामान्य रूप से प्रचलित होने वाले शब्दो के प्रयोग के कारण कविता अपने उद्देश्य मे सफल हुई है। इसमे पाठक को अर्थ के स्तर पर कविता को समझने में आसानी होती है।
    2. प्रस्तुत काव्यांश मे 'चिड़िया क्या जाने'? पद में प्रश्नालकार है। 'कविता' के उड़ने के अर्थ मे मानवीकरण किया गया है, अतः यहाँ मानवीकरण अलकार है। 'बाहर-भीतर,' 'इस घर-उस घर' में 'र' वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलकार है। 
    1. भाषा के साथ जबरदस्ती करने का परिणाम यह हुआ कि उसकी वास्तविक अभिव्यक्ति की धार कम हो गई। भाषा को तोड़ने-मरोड़ने से मूलभाव का प्रभाव ही नष्ट हो गया, उसकी व्यंजना की मारक क्षमता समाप्त हो गई। कविता भाषा के खेल मे भावहीन एवं संवेदनहीन बनकर रह गई। उसकी जीवतता एवं सार्थकता नष्ट हो गई।
    2. कवि को इस बात का डर था कि उसकी बात श्रोता पर अपेक्षित प्रभाव नही डाल पाएगी। किसी बात को जब तोड़-मरोड़़ कर कहा जाता है अथवा किसी पर जबरदस्ती थोपा जाता है, तो वह शक्तिहीन हो जाती है। अंततः वही हुआ जिसके विषय मे कवि आशंकित था। उसकी बात श्रोता को प्रभावित नहीं कर सकी।
    3. बात का अर्थ है-भाव। भाषा उसे प्रकट करने का माध्यम है। दोनों के बीच अन्योन्याश्रित संबंध है, कितु कभी-कभी भाषा के चक्कर मे सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। इसका कारण यह है कि जो बात सीधी, सरल शब्दावली मे कही जा सकती है, उसे अधिक प्रभावपूर्ण बनाने हेतु पेचीदे शब्दजाल मे व्यक्त करने का प्रयास किया जाता है। और परिणामस्वरूप इससे सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है।
    1. जिस प्रकार चिड़िया आकाश में उड़ती है, उसी प्रकार कविता भी उड़ान भरती है। कवि की कल्पना की पहुँच दूर तक होती है और यही कल्पना भाषा का आश्रय लेकर कविता का रूप धारण करती है। कवि धरती तो क्या आकाश में स्थित सूर्य, चाँद, नक्षत्रो पर भी कविता की रचना कर सकता है।
    2. चिड़िया कविता के पंख लगाकर नही उड़ सकती क्योकि कविता की उड़ान चिड़िया की उड़ान से कही अधिक ऊँची और विस्तृत है। कल्पना के पंखो से उड़ने वाली इस उड़ान को चिड़िया कभी नही जान सकती क्योकि यह असीम है।
    3. कविता और फूल दोनों ही खिलते है, लेकिन फूल जहाँ एक बार खिलकर मुरझा जाते हैं, नष्ट हो जाते है; वही कविता एक बार खिलने अर्थात् शब्दो के रूप मे अभिव्यक्ति प्राप्त कर लेने के बाद निरतर नया अर्थग्रहण करके विकसित होती रहती है। वह कभी नष्ट नही होती, अपितु समय बीतने के साथ और भी व्यापक अर्थग्रहण करके अमर एवं अमिट हो जाती है।