महादेवी वर्मा - CBSE Test Papers

 CBSE Test Paper 01

महादेवी वर्मा


  1. महादेवी जी ने भक्तिन के बारे में क्या लिखा है?

  2. लेखिका ने भक्तिन को समझदार क्यों माना है?

  3. भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा पति थोप देने की घटना के विरोध में टिप्पणी लिखिए।

  4. लछमिन के पैरों के पंख गाँव की सीमा में आते ही क्यों झड़ गए?

  5. भक्तिन की बेटी के मामले में जिस तरह का फ़ैसला पंचायत ने सुनाया, वह आज भी कोई हैरतअंगेज बात नहीं है। अखबारों या टी. वी. समाचारों में आनेवाली किसी ऐसी ही घटना को भक्तिन के उस प्रसंग के साथ रखकर उस पर चर्चा करें।

  6. लछमिन ससुरालवालों से अलग क्यों हुई? इसका क्या परिणाम हुआ?

  7. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- (2×3=6)
    इस दंड-विधान के भीतर कोई ऐसी धारा नहीं थी, जिसके अनुसार खोटे सिक्कों की टकसाल-जैसी पत्नी से पति को विरक्त किया जा सकता। सारी चुगली-चबाई की परिणति, उसके पत्नी-प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी। जिठानियाँ बात-बात पर धमाधम पीटी-कूटी जातीं; पर उसके पति ने उसे कभी उँगली भी नहीं छुआई। वह बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था। उसके अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी और पति के प्रति रोम-रोम से सच्ची पत्नी को वह चाहता भी बहुत होगा, क्योंकि उसके प्रेम के बल पर ही पत्नी ने अलगौझा करके सबको अँगूठा दिखा दिया। काम वही करती थी, इसीलिए गाय-भैंस, खेत-खलिहान, अमराई के पेड़ आदि के संबंध में उसी का ज्ञान बहुत बढ़ा-चढ़ा था।

    1. भक्तिन और उसके पति के संबंध की विशेषता बताइए।
    2. लेखिका किस दंड-विधान की चर्चा कर रही है और क्यों?
    3. भक्तिन की जिठानियों और उसमें क्या अंतर था?

CBSE Test Paper 01
महादेवी वर्मा


Solution

  1. महादेवी वर्मा भक्तिन के बारे में लिखती हैं- सेवक धर्म में हनुमान जी से स्पर्धा करने वाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या है। नाम है लछमिन अर्थात् लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृधि भक्ति के कपाल की कैंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी।

  2. भक्तिन अपना 'लक्ष्मी' नाम किसी को नहीं बताती क्योंकि इस नाम की गुणवत्ता का असर उसके जीवन में कहीं भी दिखाई नहीं देता। लेखिका के अनुसार जीवन में प्रायः सभी को अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है, परंतु भक्तिन अपना वास्तविक नाम किसी को नहीं बताती इसलिए वह भक्तिन को समझदार समझती है।

  3. भक्तिन की बेटी पर पंचायत के द्वारा पति के थोपे जाने की घटना विकृत न्याय व्यवस्था पर कठोर प्रहार करती है जहाँ स्त्रियों की इच्छा- अनिच्छा की कोई आवश्यकता समझी ही नहीं जाती है, उनके साथ पशु तुल्य व्यवहार किया जाता है। ऐसी व्यवस्था का विरोध करते हुये ऐसे निर्णय देने वालों के खिलाफ दंडनात्मक कार्यवाही होनी चाहिए।

  4. लछमिन की सास का व्यवहार सदैव कटु रहा। जब उसने लछमिन को मायके यह कहकर भेजा की तुम बहुत दिन से मायके नहीं गई हो, जाओ देखकर आ जाओ तो यह उसके लिए अप्रत्याशित था। उसके पैरों में पंख से लग गए थे। ख़ुशी-ख़ुशी जब वह मायके के गाँव की सीमा में पहुँची तो लोगों ने फुसफुसाना प्रारंभ कर दिया कि हाय! बेचारी लछमिन अब आई है। लोगों की नजरों से सहानुभूति झलक रही थी। उसे इस बात का अहसास नहीं था कि उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है या वे गंभीर बीमार थे। विमाता ने उसके साथ अन्याय किया था इसलिए वह हतप्रभ थी। उसकी तमाम ख़ुशी समाप्त हो गई।

  5. आज भी हमारे समाज में विवाह के संदर्भ में पंचायत का रुख बड़ा ही क्रूर, संकीर्ण और रुढ़िवादी है। आज भी विवाह संबंधी निर्णय पंचायत में लिए जाते हैं। पंचायत अपनी रुढ़िवादी विचारधाराओं से प्रभावित होकर कभी-कभी अमानवीय फैसले दे देती है। आज भी पंचायतों का तानाशाही रवैया जारी है। अखबारों तथा टी.वी में आए दिन इस प्रकार की घटनाएँ सुनने को मिलती है कि पंचायत ने पति-पत्नी को भाई-बहन की तरह रहने पर मजबूर कर दिया, शादी हो जाने के बाद भी पति-पत्नी को अलग रहने पर मजबूर किया और उनकी बात न मानने पर उनकी हत्या कर दी गई या उन्हें समाज से निष्कासित कर दिया गया।

  6. लछमिन मेहनती थी। तीन लड़कियों को जन्म देने के कारण सास व जेठानियाँ उसे सदैव प्रताड़ित करती थीं। वह व उसके बच्चे घर, खेत व पशुओं का सारा काम करते थे, परंतु उन्हें खाने तक में भेदभावपूर्ण व्यवहार का समाना करना पड़ता था। लड़कियों को दोयम दर्जे का खाना मिलता था। उसकी दशा नौकरों जैसी थी। अतः उसने ससुरालवालों से अलग होकर रहने का फैसला किया।
    अलग होते समय उसने अपने ज्ञान के कारण खेत, पशु, घर आदि में अच्छी चीजें ले ली। परिश्रम के बलबूते आर उसका घर समृद्ध हो गया।

    1. भक्तिन का पति उससे बहुत प्रेम करता था। वह उसके गुणों के कारण उसे प्रेम करता था। वह उसे कभी मारता-पीटता नहीं था। भक्तिन की बात स्वीकार कर वह संयुक्त परिवार से अलग भी हो गया था। वह भक्तिन को बुद्धिमती मानता था, उसकी कभी अवहेलना नहीं करता था।
    2. भक्तिन की जिठानियाँ और सास प्रायः भक्तिन के पति के सामने उसकी चुगली यानी शिकायत किया करती थीं कि उसकी पत्नी केवल बेटियां पैदा कर रही है, परिवार मे बेटियों को बोझ समझा जाता था। ऐसी स्थिति में बेटी पैदा करने वाली स्त्रियों की पिटाई होना तथा तिरस्कार किया जाना सामान्य-सी बात थी। लेखिका इसी दंड विधान की बात कर रही है।
    3. भक्तिन की जिठानियाँ और सास प्रायः भक्तिन के पति के सामने उसकी शिकायत करती थीं। भक्तिन की जिठानियों की पिटाई होती थी। वे चाहती थीं कि भक्तिन की भी पिटाई हो, परंतु भक्तिन के पति पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता था। वह भक्तिन को और अधिक चाहने लगता था। वह उसका सम्मान करता था।