अतीत में दबे पाँव - CBSE Test Papers

 CBSE Test Paper 01

अतीत में दबे पाँव


  1. कला की दृष्टि से हड़प्पा सभ्यता समृद्ध थी-पाठ के आधार पर सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

  2. डायरी के पन्ने पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि ऐन फ्रैंक बहुत प्रतिभाशाली तथा परिपक्व थी?

  3. सिंधु-सभ्यता में खेती का उन्नत रूप भी देखने को मिलता है, स्पष्ट कीजिए।

  4. अतीत में दबे पाँव पाठ के आधार पर शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।

  5. पुरातत्त्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि- "सिंधु-सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।"

  6. सिन्धु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्यबोध है जो राजपोषित न होकर समाज-पोषित था। ऐसा क्यों कहा गया है?

  7. सिंधु-सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था। ऐसा क्यों कहा गया?

  8. ऐन की डायरी के माध्यम से हमारा मन सभी युद्ध पीड़ितों के लिए कैसा अनुभव करता है? डायरी के पन्ने कहानी के आधार पर बताइए।

CBSE Test Paper 01
अतीत में दबे पाँव


Solution

  1. कला की दृष्टि से हड़प्पा सभ्यता अत्यंत समृद्ध थी। इस सभ्यता के लोगों में कला के प्रति समृद्ध दृष्टि तत्कालीन मनुष्यों की दैनिक प्रयोग की वस्तुओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है; जैसे-वहाँ की वास्तुकला तथा नियोजन, धातु एवं पत्थर की मूर्तियाँ, मिट्टी के बर्तन एवं उन पर बने चित्र, वनस्पति एवं पशु-पक्षियों की छवियाँ, मुहरें, उन पर उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण, सुघड़ लिपि आदि तत्कालीन समय मे विद्यमान हड़प्पा सभ्यता के सौंदर्यबोध को व्यक्त करती हैं। वहाँ भव्य राजमहल, मंदिरों या समाधियों के अवशेष नहीं मिलते। भवनों में आकार की विशालता एवं भव्यता मौजूद नहीं थी तथा मूर्तिशिल्प भी छोटे-छोटे मिले हैं। कोई भी ऐसी मूर्ति या चित्र उपलब्ध नहीं हुआ है, जिसमें प्रभुत्व या दिखावे के तेवर व्याप्त हों। कहने का आशय यह है कि हड़प्पा सभ्यता कला की दृष्टि से अत्यधिक समृद्ध तो थी, लेकिन यह कला-सौदर्य राजपोषित या धर्मपोषित न होकर समाज-पोषित थी।
  2. ऐन फ्रैंक की प्रतिभा और धैर्य का परिचय हमें उसकी डायरी से मिलता है। उसमें किशोरावस्था की झलक कम और सहज शालीनता अधिक देखने को मिलती है। ऐन ने अपने स्वभाव और अवस्था पर नियंत्रण पा लिया था। उसकी अवस्था के अन्य किसी बच्चे में इतनी परिपक्वता देखने को नहीं मिलती। वह एक सकारात्मक, परिपक्व और सुलझी हुई सोच के साथ आगे बढ़ रही थी। उसमें कमाल की सहनशक्ति थी। अनेक बातें जो उसे बुरी लगती थीं, उन्हें वह शालीन चुप्पी के साथ बड़ों के सम्मान करने के लिए सहन कर जाती थी।
    पीटर के प्रति अपने अंतरंग भावों को भी वह सहेज कर केवल डायरी में व्यक्त करती थी। अपनी इन भावनाओं को वह किशोरावस्था में भी जिस मानसिक स्तर से सोचती थी वह वास्तव में सराहनीय है। परिपक्व सोच का ही परिणाम था कि वह अपने मन के भाव, उद्गार, विचार आदि डायरी में ही व्यक्त करती थी। यदि ऐन में ऐसी सधी हुई परिपक्वता न होती तो हमें युद्ध काल की ऐसी दर्द भरी कहानी पढ़ने को नहीं मिल सकती थी।
  3. सिंधु-सभ्यता की खोज की शुरूआत में यह माना जा रहा था कि इस घाटी के लोग अन्न नहीं उपजाते थे। वे अनाज संबंधी जरूरतें आयात से पूरा करते थे, परंतु नयी खोजों से पता चला कि यहाँ उन्नत खेती होती थी। अनाज रखने के लिए यहाँ कोठार भी मिले हैं तथा फसलों की ढुलाई के लिए बैलगाड़ी के साक्ष्य मिले हैं। अब कुछ विद्वान इसे मूलतः खेतिहर व पशुपालक सभ्यता मानते हैं। खेती में ताँबे व पत्थर के उपकरण प्रयोग में लाए जाते थे। यहाँ रबी की फसल-गेहूँ, कपास, जौ, सरसों व चने की खेती होती थी। इनके सबूत भी मिले हैं। कुछ विद्वानों का विचार है कि यहाँ ज्वार, बाजरा और रागी की उपज भी होती थी। लोग खजूर, खरबूजे और अंगूर उगाते थे।
  4. अतीत में दबे पाँव लेखक के वे अनुभव हैं, जो उन्हें सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों को देखते समय हुए थे। इस पाठ में लेखक सभ्यता के अतीत में झाँककर वहाँ के निवासियों और क्रियाकलापों को अनुभव करता है। वहाँ की एक-एक स्थूल चीज से मुखातिब होता हुआ लेखक चकित रह जाता है। वे लोग कैसे रहते थे? यह अनुमान आश्चर्यजनक था। वहाँ की सड़कें, नलियाँ, स्तूप, सभागार, अन्न भंडार, विशाल स्नानागार, कुएँ, कुंड और अनुष्ठान गृह आदि के अतिरिक्त मकानों की सुव्यवस्था देखकर लेखक महसूस करता है कि जैसे अब भी वे लोग वहाँ हैं। उसे सड़क पर जाती हुई बैलगाड़ी से रुनझुन की ध्वनि सुनाई देती है। किसी खंडहर में प्रवेश करते हुए उसे अतीत के निवासियों की उपस्थिति महसूस होती है। रसोईघर की खिड़की से झाँकने पर उसे वहाँ पक रहे भोजन की गंध भी आती है। यदि इन लोगों की सभ्यता नष्ट न हुई होती तो उनके पाँव प्रगति के पथ पर निरंतर बढ़ रहे होते और आज भारतीय उपमहाद्वीप महाशक्ति बन चुका होता, मगर दुर्भाग्य से ये प्रगति की ओर बढ़ रहे सुनियोजित पाँव अतीत में ही दबकर रह गए इसलिए ‘अतीत में दबे पाँव’ शीर्षक पूर्णतः सार्थक और सटीक है।
  5. हड़प्पा संस्कृति में न भव्य राजप्रासाद मिले हैं, न मंदिर, न राजाओं, महंतों की समाधियाँ। यहाँ के मूर्तिशिल्प छोटे हैं और औज़ार भी। मुअनजो-दड़ो 'नरेश' के सिर पर रखे मुकुट से छोटे सिरपेंच की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। दूसरी जगहों पर राजतंत्र या धर्मतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले महल, उपासना-स्थल, मूर्तियाँ और पिरामिड आदि मिलते हैं। यहाँ आम आदमी के काम आने वाली चीजों को सलीके से बनाया गया है। नगरयोजना, वास्तुकला, मुहरों, ठप्पों, जल-व्यवस्था, साफ-सफाई और सामाजिक व्यवस्था आदि में एकरूपता देखने मिलती है। शक्ति के प्रतीक के रूप में सैन्य हथियार के अवशेष कहीं नहीं मिलते, ऐसे कोई भी चिह्न नहीं मिले जिससे पता चले कि वे असभ्य या हथियार प्रेमी थे, इन आधारों पर विद्वान यह मानते है कि 'सिंधु-सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा स्वयं अनुशासित सभ्यता थी।'
  6. सिन्धु सभ्यता में औजार तो बहुत मिले हैं, परंतु हथियारों का भी प्रयोग होता रहा होगा इसका कोई प्रमाण नहीं है। वहां की नगर योजना, वास्तुशिल्प, मुहरों-ठप्पों, पानी या साफ़-सफ़ाई जैसी व्यवस्थाओं में एकरूपता थी। वे लोग अनुशासन प्रिय थे परन्तु यह अनुशासन किसी ताकत के बल के द्वारा कायम नहीं किया गया, बल्कि लोग अपने मन और कर्म से ही अनुशासन प्रिय थे। मुअनजो-दड़ो की खुदाई में एक दाढ़ी वाले नरेश की छोटी मूर्ति मिली है परन्तु यह मूर्ति किसी राजतंत्र या धर्मतंत्र का प्रमाण नहीं कही जा सकती। विश्व की अन्य सभ्यताओं के साथ तुलनात्मक अध्ययन से भी यही अनुमान लगाया जा सकता है कि सिन्धु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्यबोध है जो कि समाज पोषित है, राजपोषित या धर्मपोषित नहीं है।
  7. सिंधु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का भरपूर ज्ञान एवं समझ थी, जिसकी छवि उनके दैनिक जीवन से संबंधित वस्तुओं से मिलती है। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मृद्-भांड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता की तकनीकि-सिद्धि से ज्यादा कला-सिद्ध ज़ाहिर करता है। अन्य सभ्यताओं में राजतंत्र और धर्मतंत्र की ताकत को दिखाते हुए भव्य महल, मंदिर ओर मूर्तियाँ बनाई गईं किंतु सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई में छोटी-छोटी मूर्तियाँ, खिलौने, मृद-भांड, नावें मिली हैं। 'नरेश' के सिर पर रखा मुकुट भी छोटा है। इसमें प्रभुत्व या दिखावे के तेवर कहीं दिखाई नहीं देते।
    अतः सिन्धु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्यबोध है जो समाज के द्वारा पोषित है, राजपोषित या धर्मपोषित नहीं है।
  8. ऐन की डायरी में युद्ध पीड़ितों की सूक्ष्म पीड़ाओं का ऐसा सजीव वर्णन अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। इससे पीड़ितों के प्रति हमारा मन करुणा और दया से भर जाता है। मन में हिंसा और युद्ध के प्रति घृणा का भाव आता है। युद्ध, विजेता और पराजित दोनों पक्ष के लिए ही आघात और पीड़ा देनेवाला होता है। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए भी नागरिकों के नन्हे बच्चों की कितना भटकना पड़ता है, यह पीड़ा की पराकाष्ठा है। यदि ऐन के साथ ऐसा बुरा व्यवहार न हुआ होता तो उसकी इस तरह अकाल मृत्यु न हुई होती। ऐन के परिवार के साथ जैसा हुआ वैसा न जाने कितने लोगों के साथ हुआ होगा। इसलिए वे लोग जो युद्ध का कारण बनते हैं वे ऐन की डायरी पढ़कर उसे अपने प्रति अनुभव करके देखें।