फ़ीचर लेखन - CBSE Test Papers
CBSE Test Paper 01
फ़ीचर लेखन
चुनाव प्रचार का एक दिन पर एक फीचर लिखिए।
चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण विषय पर एक फीचर लिखिए।
जंक फूड की समस्या पर एक फीचर लिखिए।
CBSE Test Paper 01
फ़ीचर लेखन
Solution
चुनाव प्रचार का एक दिन
चुनाव लोकतंत्र के लिए एक त्योहार से कम नहीं है।चुनाव लोकतांत्रिक प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चुनाव प्रक्रिया के माध्यम से ही जनता अपने प्रतिनिधियों का चयन करती है, जो आगे चलकर शासन प्रणाली को सँभालते हैं। सभी प्रतिनिधि अपने प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए चुनाव प्रचार को माध्यम बनाते हैं। चुनाव-प्रचार मतदाताओं को प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाता है। चुनाव प्रचार में लाउडस्पीकर, पोस्टर, पैैंपलेट आदि अन्य प्रकार की सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। चुनाव प्रचार में प्रतिनिधि जोकि भिन्न-भिन्न पार्टियो के उम्मीदवार होते हैं, वह जनता के घर-घर जाकर अपने लिए स्वयं वोट माँगते हैं। चुनाव प्रचार की अनेक प्रक्रियाएँ होती हैं, सब के प्रचार के अपने अलग अलग ढंग होते हैं। अधिकांश लोग चुनाव प्रचार के दौरान नोटों की मदद से वोट खरीदते हैं,तो कुछ लोग ईमानदारी से चुनाव प्रचार करते हैं ,परंतु ईमानदारों की संख्या बहुत कम है।
चुनाव प्रचार की प्रक्रिया चुनाव होने के दो दिन पहले ही बंद हो जाती है। सभी उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्र मे नए-नए तौर तरीकों से जनता को लुभाने का कार्य करते हैं। चुनाव-प्रचार के दौरान बहुत से प्रत्याशी गलत व अनैतिकता का प्रयोग भी करते हैं। चुनाव प्रचार के समय प्रत्याशी अपना वोट पाने के लिए खरीद-फरोख़्त की राजनीति को भी जन्म देते हैं।
चुनाव प्रचार के दो पक्ष हैं, जिसमे पहला यह है कि इसके माध्यम से उम्मीदवार स्वयं को मतदाताओं से परिचित करवाता है और अपने एजेंडा को उन मतदाताओं के सम्मुख प्रस्तुत करता है।
कहा जाए तो इस सकारात्मक तरीके से वह मतदाताओं पर प्रभाव स्थापित कर अपना वोट पक्का करना चाहता है, परंतु इसका दूसरा तरीका अत्यंत बुरा है, जो समाज में कुप्रवृत्तियों को जन्म देता है तथा राजनीति को एक गंदा खेल बनाकर प्रस्तुत करता है। अंत में कहना चाहिए कि चुनाव प्रचार बहुत ही रोमांचकारी प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया को सही रूप से प्रयोग में लाया जाए, तो हम सही प्रत्याशी को चुनकर देश के भविष्य को सुनिश्चित कर सकेंगे।चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण
चुनाव लोकतांत्रिक प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चुनाव के माध्यम से ही जनता अपने प्रतिनिधियों का चयन करती है, जो आगे चलकर शासन प्रणाली को सँभालते हैं। आजकल चुनाव को लेकर लोगों की रुचि अत्यधिक बढ़ गई है। इस बढ़ती रुचि के कारण ही आज चुनाव से पहले सर्वेक्षण किये जाने लगे हैं, जिससे ये पता लग सके कि कौन जितने के कतार में सबसे आगे है।
लोग राजनीतिक दलों एवं नेताओं की वास्तविकता जानने के लिए बहुत व्याकुल रहते हैं। ऐसे में मीडिया चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण करवाकर लोगों की इस मानसिकता का व्यावसायिक लाभ भी उठाती हैं, और एक जागरूक एवं सतर्क मीडिया की भूमिका भी निभाती है।
लेकिन यह सवाल सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है कि क्या चुनाव-पूर्व होने वाले ये सर्वेक्षण विश्वसनीय होते हैं? क्या जनता अपने द्वारा किए जाने वाले मतदान का पहले ही खुलासा कर देती है?
बुद्धिजीवियों का एक वर्ग कहता है कि ऐसे सर्वेक्षण करके राजनीतिक दल जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता बरकरार नहीं रख पाते। जनता स्वयं इस दुविधा में पड़ जाती है कि किसके जीतने की संभावना सर्वाधिक है और वह अपना महत्त्वपूर्ण मत किसे दे? इस उधेड़बुन के कारण सामान्य मतदाता अपने मत का सही उपयोग नहीं कर पाता।
बद्धिजीवियों का दूसरा वर्ग मानता है कि भारत की जनता को पिछले लगभग 66 वर्षों का अनुभव है। अतः ऐसे सर्वेक्षणों से वह प्रभावित नहीं होती और न ही वह अपने मत का दुरुपयोग करती है। वस्तुतः कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि हमारे देश में चुनाव पूर्व होने वाले सर्वेक्षण विश्वसनीय होते हैं।
चुनाव से पूर्व उसके निर्णय का पता लगा पाना अत्यंत मुश्किल है। हाल ही में, एक स्टिंग ऑपरेशन में चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों में पाई गई गड़बड़ियों को देखते हुए इन पर रोक लगाने के लिए चुनाव आयोग ने कानून में संशोधन करने की सिफारिश की है।जंक फूड की समस्या
आधुनिक रहन-सहन और दौड़-धूप से भरी जिंदगी ने मनुष्य के जीवन में कई परिवर्तन किए हैं। आज लोगों के पास समय का अभाव है। इस व्यस्त जिंदगी में सब कुछ फास्ट हो गया है और इसी जल्दबाजी ने मनुष्य को भोजन की एक नई शैली के जाल में फँसा दिया है, जिसे फास्ट फूड या जंक फूड कहते हैं। जंक फूड उस प्रकार के खाने को कहते हैं, जो चंद मिनटों में बन कर तैयार हो जाता है, पर ये स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक होता है। जंक फूड़ के प्रति बच्चों के लगाव ने उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को एक चुनौती के रूप में लाकर देश के सामने खड़ा कर दिया है।
देश में चिकित्सक, शिक्षाविद्, अभिभावक सभी चितिंत हैं क्योंकि जंक फूड के सेवन से बच्चे उन बीमारियों के शिकार हो रहे हैं, जो अधिक उम्र के लोगों में हुआ करती थीं। जंक फूड बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को बुरी तरह से प्रभावित करता है, जिसके कारण उन्हें भविष्य में कई तरह की परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं। जंक फूड के अंतर्गत आलू के चिप्स, स्नैक्स, इंस्टैंट नूडल्स, कॉबनेट-पेय पदार्थ, बर्गर, पिज्जा, मोमोज, फ्राइड चिकन आदि खाद्य पदार्थ शामिल किए जा सकते हैं।
लगभग सभी प्रकार के जंक फूड में कैलोरी की मात्रा बहुत अधिक होती है, जिससे अति पोषण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अधिक कैलोरी के साथ-साथ जंक फूड में नमक, ट्रांस फैट, चीनी, परिरक्षक (प्रिजरवेटिव), वनस्पति घी, सोडा, कैफीन आदि भी अधिक मात्रा में होते हैं, जबकि फाइबर बहुत कम होता है।
इन सभी से मोटापे का खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है और मधुमेह, हृदय रोग, ब्लड प्रेशर, कब्ज, सिरदर्द, पेटदर्द आदि बीमारियाँ बच्चों को छोटी उम्र में ही घेर लेती हैं। जंक फूड के कारण बच्चों का बुद्धिलब्धि स्तर (आई क्यू) कमजोर होने लगता है, जिसका परिणाम मानसिक विकलांगता के रूप में भी सामने आ सकता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जंक फूड का प्रयोग बच्चों के सुनहरे भविष्य में बहुत बड़ी रुकावट बन सकता है। जंक फूड कम से कम अथवा नहीं खाना चाहिए, ये अनेक प्रकार की बीमारियों को आमंत्रित करने का कार्य करता है।