गजानन माधव मुक्तिबोध - CBSE Test Papers

 CBSE Test Paper 01

गजानन माधव मुक्तिबोध


  1. टिप्पणी कीजिए- गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल (सहर्ष स्वीकारा है)

  2. सहर्ष स्वीकारा है कविता में कवि प्रकाश के स्थान पर अंधकार की कामना क्यों करता है?

  3. सहर्ष स्वीकारा है कविता में कवि का संबोध्य कौन है? आप ऐसा क्यों मानते हैं?

  4. सहर्ष स्वीकारा है- कविता में कवि क्या कहना चाहता है?

  5. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- (2×2=4)
    ज़िदगी मे जो कुछ है, जो भी है
    सहर्ष स्वीकारा है;
    इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
    वह तुम्हे प्यारा है।
    गरबीली गरीबी यह, ये गभीर अनुभव सब
    यह विचार-वैभव सब

    1. 'गरीबी' के विशेषण का प्रयोग-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
    2. रूपक अलंकार का उदाहरण चुनकर उसके सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।
  6. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- (2×3=6)
    जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
    जितना भी उँड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
    दिल में क्या झरना है?
    मीठे पानी का सोता हैं
    भीतर वह, ऊपर तुम
    मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
    मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!

    1. कवि अपने संबोध्य के साथ रिश्ते को कोई नाम देने में असमर्थ क्यों है?
    2. 'उड़ेलता’ और ‘भर-भर फिर आता है' का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताइए कि कवि की इस विचित्र स्थिति का क्या कारण है?
    3. 'झरना' एवं 'मीठे पानी का सोता' का प्रतीकार्थ बताइए और स्पष्ट कीजिए कि इन दोनों की स्थिति कहाँ है?
  7. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- (2×3=6)
    सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मै, भूलूँ मैं
    तुम्हें भूल जाने की
    दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
    शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
    झेलूँ मै, उसी में नहा लूँ मैं
    इसलिए कि तुम से ही परिवेष्टितु आच्छादित रहने का
    मणीय उजेला सब सहा नहीं जाता है।

    1. कवि के व्यक्तिगत संदर्भ में किसे ‘अमावस्या' कहा गया है?
    2. ‘अमावस्या' के लिए प्रयुक्त विशेषणों का भाव स्पष्ट कीजिए।
    3. ‘रमणीय उजेला' क्या है और कवि उसके स्थान पर अंधकार क्यों चाह रहा है?

CBSE Test Paper 01
गजानन माधव मुक्तिबोध


Solution

    • गरबीली गरीबी - कवि गरीब होते हुए भी स्वभिमानी है। उसे अपनी गरीबी पर ग्लानि या हीनता नहीं होती, बल्कि गर्व है।
    • भीतर की सरिता - कवि के हृदय में बहने वाली कोमल भावनाएँ नदी की लहरों के समान हिलोरें लेती रहती हैं।
    • बहलाती सहलाती आत्मीयता - किसी व्यक्ति के अपनत्व के कारण हृदय को मिलनेवाली प्रसन्नता अर्थात उसके मन में अपने प्रिय के लिए गहरी आत्मीयता है।
    • ममता के बादल - ममता का अर्थ है - अपनत्व। कवि प्रेयसी के स्नेह से पूरी तरह भीग गया है।  उसका मन अपने प्रिय के प्रति पूर्णत: समर्पित है।
  1. सहर्ष स्वीकारा है कविता में कवि प्रकाश के स्थान पर अंधकार की कामना इसलिए करता है क्योंकि उसे यह महसूस होता है कि उसकी 'प्रिय' ने उसके जीवन मे चाँद की तरह अपनी रोशनी बिखेर दी है, जिसके प्रकाश से वह प्रकाशित रहता है। उसकी 'प्रिय' के अतिशय स्नेह एवं सुरक्षा के घेरे ने उसकी क्षमता को कम कर दिया है। उसकी योग्यता क्षीण पड़ रही है। वह अपनी योग्यता का विस्तार करना चाहता है, जिससे वह अपनी क्षमता एवं योग्यता का अधिकतम विकास कर सके।

  2. सहर्ष स्वीकारा है कविता में कवि का संबोध्य कविता का 'तुम' है और यह 'तुम' कवि का सर्वाधिक 'प्रिय' एक अज्ञात व्यक्तित्व है। यह कवि की प्रेयसी भी हो सकती है या कवि की माँ भी, लेकिन जो भी है, वह कवि के लिए अत्यधिक प्रेरणादायक एवं कवि के संपूर्ण व्यक्तित्व का एकमात्र निर्माता है।
    मेरी दृष्टि में कविता का 'तुम' कवि की प्रेयसी हो सकती है, जिसके साथ के संबंध को कवि कोई नाम देना नहीं चाहता, लेकिन इस 'अनाम' संबंध की गहराई को वह स्वयं महसूस करता है। कवि कहता है कि उसके प्रिय का प्रेम उस अनंत निर्झर के समान है, जिसका मीठा पानी बार-बार उसे पूरी तरह भिगोता रहता है।

  3. कवि ने इस कविता में अपने जीवन के समस्त खट्टे-मीठे अनुभवों, कोमल-तीखी अनुभूतियों और सुख-दुख की स्थितियों को इसलिए स्वीकारा है क्योंकि वह अपने किसी भी क्षण को अपने प्रिय से न केवल जुड़ा हुआ अनुभव करता है, अपितु हर स्थिति को उसी की देन मानता है।

    1. 'गरबीली गरीबी' में 'गरीबी' शब्द के लिए 'गरबीली' विशेषण का प्रयोंग किया है। इसका अभिप्राय ऐसी गरीबी से है, जो गर्व से युक्त है क्योंंकि यह कवि के स्वाभिमान की रक्षक है। यह गरीबी स्वाभिमानिनी है, स्वाभिमान प्रदायिनी है। यह प्रयोग अत्यंत व्यापक एवं सूक्ष्म चितन का प्रमाण है, जो इसके रचयिता मुक्तिबोध जैसे कवि के यहाँ ही संभव है।
    2. प्रस्तुत काव्यांश मे 'भीतर की सरिता' पद मे रूपक अलंकार प्रयुक्त हुआ है। इसमे भीतर अर्थात् मन, अतःस्थल, हृदय तथा सरिता के बीच एकात्मकता स्थापित की गई है। सरिता और कोमल भावनाओंं से भरे हृदय मे कोई भिन्नता नही रह गई है इसीलिए कवि ने 'भीतर की सरिता' पद का प्रयोंग किया है। इसके माध्यम से कवि ने हृदय में निरंतर  प्रवाहमान आंतरिक गहन भावनाओं एव अनुभूतियों की तरलता को अभिव्यक्त किया है। ये अनुभूतियाँ एव भावनाएँ ‘सरिता' की तरह तरल एवं गतिशील है, साथ ही कोमल भी। कवि का व्यक्तित्व बाहर से दृढ़, लेकिन अंदर से संवेदनशील एव कोमल है।
    1. कवि स्वयं एवं अपने 'प्रिय' के बीच के संबंध को 'अनकहा' संबंध मानता है। वह इसे कोई नाम नहीं दे पाता। इस 'अनाम' संबंध की गहराई को वह स्वयंं महसूस करता है और कहता है कि उसके प्रिय का प्रेम उस अनंत निर्झर के समान है, जिसका मीठा पानी बार-बार उसे पूरी तरह भिगोता रहता है।
    2. ‘उड़ेलता और भर-भर फिर आता है' का अर्थ स्पष्ट करते हुए कवि कहता है कि मेरे दिल मे संभवतः मीठे पानी का कोई अनंत स्रोत है, कोई झरना है, जिससे मै प्रेम को, स्नेह को, आत्मीयता को जितना अधिक उड़ेलता जाता हूँ, वह फिर से बार-बार भर जाता है। कवि अपने मन के भावों को कविता के रूप में बाहर उड़ेलता है, परन्तु उसका हृदय रिक्त नही हो पाता। उसके हृदय में प्रिय की स्मृति फिर उभर आती है। उसका हृदय भावों से तुरंत भर जाता है।
    3. झरना का अर्थ प्रेम का आधिक्य है तथा ‘मीठे पानी का सोता' का अर्थ मधुर भावनाओं की अधिकता से है। कवि के प्रेमपूर्ण हृदय से मधुर भावनाएँ निरंतर प्रकट होती रहती है।
    1. कवि ने प्रेयसी के वियोग को अमावस्या कहा है। दुःख, निराशा व प्रेयसी का बिछोह उसके जीवन में अमावस्या के समान है।
    2. अमावस्या के लिए दक्षिण-ध्रुवी विशेषण का प्रयोग किया गया है। यह विशेषण अंधकार की गहनता को प्रदर्शित करता है। अमावस्या की गहन रात्रि में दक्षिणी ध्रुव में जितना गहरा अंधकार होता है, कवि उसे अपने जीवन में धारण करना चाहता है। वह उस अदृश्य प्रेरणा शक्ति की पूर्ण विस्मृति चाहता है।
    3. 'रमणीय उजेला' प्रिय के व्यक्तित्व से उत्पन्न मनोरम उजाला है। कवि उसके स्थान पर अंधकार इसलिए चाह रहा है, क्योंकि कवि अपने चारों ओर व्याप्त 'प्रिय' के व्यक्तित्व से उत्पन्न उजाले को सहन नहीं कर पा रहा है क्योंकि उसे लगता है कि उसका व्यक्तित्व, उसका अस्तित्व कहीं विलीन हो गया है।