तुलसीदास - CBSE Test Papers

 CBSE Test Paper 01

तुलसीदास


  1. व्याख्या करें - ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।

  2. धूत कहौ... वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखलाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं? (कवितावली)

  3. लक्ष्मण के मुर्च्छित होने पर राम क्या सोचने लगे?

  4. तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत क्यों समझी? (कवितावली)
    धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ / काहू की बेटी सों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ।
    इस सवैया में काहू के बेटा सों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता?

  5. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- (2×2=4)
    किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाट,
    चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।
    पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरि,
    अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।

    1. काव्यांश का भाव-सौंदर्य अपने शब्दों में लिखिए।
    2. काव्यांश के शिल्प-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  6. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- (2×3=6)
    उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी।।
    अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायऊ।।
    सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ। बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ।।
    मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।।
    सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।।
    जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू।।

    1. राम लक्ष्मण की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख कर रहे हैं?
    2. "सो अनुराग कहाँ अब भाई" कथन का कारण स्पष्ट कीजिए।
    3. "यह मुझे पहले ज्ञात होता तो मैं पिता की आज्ञा नहीं मानता" -क्या ऐसा संभव था? पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
  7. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- (2×3=6)
    धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ,
    जोलाहा कहौ कोऊ।
    काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब,
    काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।
    तुलसी सरनाम गुलामु है राम को,
    जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।
    माँगि कै खैबो, मसीत को सोइबो,
    लैबोको एकु न दैबको दोऊ।

    1. तुलसीदास ने समाज पर अपना क्षोभ किन शब्दों में व्यक्त किया है?
    2. 'काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब' के द्वारा 'तुलसी' समाज के लोगों से क्या कहना चाहते हैं?
    3. तुलसीदास राम के कैसे भक्त हैं? काव्यांश के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

CBSE Test Paper 01
तुलसीदास


Solution

  1. तुलसीदास जी ने समाज में व्याप्त आर्थिक विषमताओं का वर्णन करते हुए कहा है कि पेट भरने की समस्या से मजदूर, किसान, नौकर, भिखारी आदि सभी परेशान थे। अपनी भूख मिटाने के लिए सभी अनैतिक,अधार्मिक कार्य कर रहे हैं। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए लोग अपनी संतान तक को बेच रहे हैं। पेट भरने के लिए मनुष्य कोई भी पाप कर सकता है।

  2. हम इस बात से सहमत है कि तुलसी स्वाभिमानी भक्त हृदय व्यक्ति है क्योंकि 'धूत कहौ...' वाले छंद में भक्ति की गहनता और सघनता में उपजे भक्त हृदय के आत्मविश्वास का सजीव चित्रण है, जिससे समाज में व्याप्त जाति-पाँति और दुराग्रहों के तिरस्कार का साहस पैदा होता है। वे कहते हैं कि उन्हें संसार के लोगों की चिन्ता नहीं हैं कि वे उनके बारे में क्या सोचते हैं। तुलसी राम में एकनिष्ठा एवं समर्पण भाव रखकर समाज में व्याप्त दूषित रीति-रिवाजों का विरोध करते है तथा अपने स्वाभिमान को महत्त्व देते हैं।

  3. लक्ष्मण  शक्तिबाण लगने से मूर्च्छित हो गए थे और यह देखकर राम भावुक हो गए तथा सोचने लगे कि पत्नी के बाद अब भाई को भी खोने जा रहे हैं। केवल एक स्त्री के कारण उनका भाई आज मृत्यु की गोद में जा रहा है। यदि स्त्री खो जाए तो कोई बड़ी हानि नहीं होगी क्योंकि जीवन में एक स्त्री के जाने से उसका स्थान कोई और ले सकता है, वे नारी की तुलना में छोटे भाई की क्षति को ज्यादा बड़ा मानते हैं।

  4. तुलसी इस सवैये में यदि अपनी बेटी की शादी की बात करते तो सामाजिक संदर्भ में अंतर आ जाता क्योंकि विवाह के बाद बेटी को अपनी जाति छोड़कर अपनी पति की जाति अपनानी पड़ती है। दूसरे यदि तुलसी अपनी बेटी की शादी न करने का निर्णय लेते तो इसे भी समाज में गलत समझा जाता और तीसरे यदि किसी अन्य जाति में अपनी बेटी का विवाह संपन्न करवा देते तो इससे भी समाज में एक प्रकार का जातिगत या सामाजिक संघर्ष बढ़ने की संभावना पैदा हो जाती।

    1. उपर्युक्त काव्यांश में कवि ने 'पेट की आग' को संसार के समस्त अच्छे-बुरे कर्मों का यथार्थ बताया है। गोस्वामी तुलसीदास का मानना है कि मजदूर, किसान, व्यापारी, भिखारी, भाट, नौकर-चाकर, नट सब अपने कार्यों में अपने पेट की वजह से ही संलग्न है। स्थिति विषम है, उन्हें अपने लिए भोजन तक का उपाय करना कठिन हो रहा है। इसी कारण ऊँचे-नीचे कर्म करने से भी लोग नही चूक रहे हैं। लोग पेट के कारण धर्म-अधर्म का ख्याल भी नहीं कर रहे। इनकी स्थिति इतनी भयावह है कि उन्हें बेटा-बेटी बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। अंत में गोस्वामी जी इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि 'पेट की आग' 'समुद्र की आग' से भी अधिक भयावह है अतः एक राम ही ऐसे बादल हैं, जो अपने कृपा रूपी जल से इस आग को बुझा सकते हैं। ।
    2. काव्यांश में अवधी भाषा अपने चरम सौष्ठव पर है। भावों की अभिव्यक्ति में सक्षम तथा मध्यकालीन कविता की प्रमुख भाषा होने पर भी तुलसीदास की कविता में प्रयुक्त होने पर उसमें एक विशेष अर्थ गौरव आ जाता है। यहाँ कवि के मन में सामाजिक दुर्दशा को देखकर उपजी पीड़ा की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। काव्यांश में अलंकारों का प्रयोग एवं उससे उत्पन्न सौंदर्य सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। किसबी, किसान–कुल तथा ‘बेचत बेटा-बेटकी' में अनुप्रास एवं 'राम-घनश्याम' में रूपक तथा 'आगि बड़वागिते बड़ी है आगि पेटकी' में व्यतिरेक अलंकार विद्यमान है।
    1. राम ने लक्ष्मण की निम्नलिखित विशेषताएं बताते हैं- 
    • वे राम को अत्यधिक स्नेह करते हैं तथा कभी उन्हें दुःखी नहीं देख सकते हैं।
    • वे कोमल स्वभाव के हैं।
    1. राम जी व्याकुल होकर कह रहे हैं कि "लक्ष्मण तुम तो मुझे बहुत प्रेम करते हो, मुझे कभी दुःखी नहीं देख सकते थे। मेरी यह स्थिति देखकर भी तुम चुपचाप पड़े हो। तुम शीघ्र चैतन्य होकर मेरी पीड़ा दूर कर दो।"
    2. ऐसा संभव नहीं था कि श्री राम अपने पिता की आज्ञा का पालन नहीं करते। वे लक्ष्मण से बहुत प्रेम करते हैं। अतः भावावेश में कह रहे हैं कि "यदि उन्हें ऐसी स्थिति की कल्पना होती, तो वे पिता के आदेश का पालन नहीं करते।" प्रभु राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। वे मर्यादा की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
    1. तुलसीदास ने समाज के प्रति अपना क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा है कि चाहे कोई मुझे धूर्त कहे, अवधूत योगी कहे, राजपूत या जुलाहा कहे अर्थात किसी भी वर्ग या जाति से जोड़कर देखे, मुझे उसकी कोई फिक्र नहीं है क्योंकि न तो मुझे किसी की बेटी से अपने बेटे का विवाह करना है और न ही उसकी जाति-बिरादरी में शामिल होकर उसे बिगाड़ना है। वास्तव में, तुलसीदास यहाँ जाति-पाँति पर आधारित सामाजिक व्यवस्था के पोषकों पर गहरा व्यंग्य करते हैं।
    2. तुलसीदास उपर्युक्त कथन के माध्यम से बताना चाहते हैं कि वे संत हैं, जिसकी कोई समाज निर्मित जाति नहीं होती। उनकी जाति और धर्म केवल मनुष्य एवं मनुष्यता है। जाति की शुद्धता की बात करने वाले परंपरा के ठेकेदारों पर, जिन्होंने समाज को इन संकीर्णताओ के आधार पर बाँट रखा है, यह एक तल्ख टिप्पणी है।
    3. तुलसीदास राम के अनन्य भक्त हैं, वे स्वयं को राम का गुलाम अर्थात् दास बताते हैं और कहते है कि मेरी प्रसिद्धि राम के गुलाम या दास के रूप में ही इस संसार में है। मुझे और किसी से कुछ भी लेना-देना नहीं है। जिसे जो समझ में आए, वह कहे।