औद्योगिक क्रांति-पुनरावृति नोट्स

                                                             CBSE कक्षा 11 इतिहास

पाठ-9 औद्योगिक क्रांति
पुनरावृत्ति नोट्स


स्मरणीय तथ्य-

  • ब्रिटेन में 1780 के दशक और 1850 के दशक के बीच उद्योग और अर्थव्यवस्था का जो रूपांतरण हुआ उसे प्रथम औद्योगिक क्रान्ति कहा जाता है।
  • दूसरी औद्योगिक क्रान्ति 1850 के दशक के बाद आई और उसमें रसायन और बिजली जैसे नये औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार।
  • मशीनों तथा तकनीको ने पहले की हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों की तुलना में भारी पैमाने पर माल के उत्पादन को सम्भव बनाया।
  • 1780 के दशक से 1820 के दशक के दौरान कपास और लोहा उद्योग, कोयला खनन, सड़कों और नहरो के निर्माण और विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय प्रगति।
  • औद्योगिक क्रान्ति के प्रतिदृष्टिकोण- इस शब्द का प्रयोग यूरोपीय विद्वानों जैसे जार्जिश मिशले (फ्रांस) और फ्राइड्रिक एंजेल्स जर्मनी द्वारा किया गया। अंग्रेजी में इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम दार्शिनिक एवं अर्थशास्त्री आॅरनाॅल्ड टाॅयनबी द्वारा उन परिवर्तनों का वर्णन करने के लिए किया गया। जो ब्रिटेन के औद्योगिक विकास में 1760 और 1820 के बीच हुए।
  • ब्रिटेन पहला देश था जिसने सर्वप्रथम औद्योगीकरण का अनुभव किया। इसके कारण ब्रिटेन की राजनैतिक व्यवस्था, कानून व्यवस्था, मुद्रा प्रणाली, बाजार व्यवस्था, मुद्रा का प्रयोग।
  • कृषि क्रान्ति- यह क्रान्ति एक ऐसी प्रक्रिया थी जिसके द्वारा बड़े जमींदारों ने अपनी सम्पत्तियों के पास छोटे खेत खरीद लिए और गाँव की सार्वजनिक भूमि को कब्जा लिया और बड़ी-बार भू सम्पदाए बना ली जिससे खाद्य उत्पादन में वृद्धि हुई।
  • ब्रिटेन में औद्योगीकरण के कारण गाँव से आये गरीब लोग नगरों में काम करने के लिए उपलब्ध, उद्योग स्थापना हेतू ऋण राशि उपलब्ध करने के लिए बैंक, अच्छी परिवहन व्यवस्था।
  • ब्रिटेन सत्रहवीं शताब्दी से ही राजनीतिक दृष्टि से सबल और संतुलित राष्ट्र था। पूरे राष्ट्र में एक ही कानून व्यवस्था, एक ही सिक्का (मुद्रा-प्रणाली) तथा एक ही बाजार व्यवस्था थी।
  • अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैंड आर्थिक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा था। इसके अंतर्गत बड़े जमींदारों ने अपनी ही संपत्तियों के समीप छोटे-छोटे खेत खरीदे और गाँव की सार्वजनिक जमीनों को घेर लिया। फलत: इससे खाद्य उत्पादन में वृद्धि हुई।
  • लंदन का महत्त्व- इंग्लैंड, अफ्रीका तथा वेस्टइंडीज के मध्य नव स्थापित त्रिकोणीय व्यापार का केंद्र था। सैंट्रल बैंक ऑफ इंग्लैंड देश की वित्तीय-प्रणाली का आधार था। हालाँकि इसके अतिरिक्त इंग्लैंड में कुल मिलाकर सौ से अधिक प्रांतीय बैंक थे। बडे-बड़े औद्योगिक उद्यम स्थापित करने और संचालन के लिए आवश्यक वित्तीय सहायता इन्हीं बैकों से उपलब्ध कराई जाती थी।
  • अठारहवीं शताब्दी में कुल मिलाकर 26,000 आविष्कार हुए। उनमें से अधिकतर आविष्कार 1782 से 1800 तक की अवधि में ही हुए। इन आविष्कारों के परिणामस्वरूप कई परिवर्तन हुए।
  • 1709 ई० में प्रथम अब्राहम डबी (1677-1717) ने धमनभट्टी का आविष्कार किया था। इसमें कोक का इस्तेमाल कर उच्च तापमान पैदा किया जाता था। इस आविष्कार के कारण पिघला हुआ लोहा निकालना आसान हो गया था।
  • इसी दौरान हेनरी कोर्ट ने बेलम मिल का आविष्कार किया। इसके अंतर्गत शुद्ध लोहे की छड़ें तैयार करने के लिए भाप की ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाने लगा था।
  • 1780 के दशक से कपास उद्योग को अत्यधिक महत्व दिया जाने लगा। कपास पूर्णरूपेण आयात किया जाता था और उससे तैयार कपड़ों को निर्यात कर दिया जाता था।
  • भाप की शक्ति का प्रयोग औद्योगीकरण के उद्देश्य से निर्णायक सिद्ध हुआ। भाप की शक्ति का उपयोग सर्वप्रथम खनन उद्योगों में किया गया।
  • खानों से पानी बाहर निकालने के लिए थॉमस सेवरी ने माइनर्स फ्रेंड (खनक-मिस्त्र) नामक एक भाप के इंजन का मॉडल तैयार किया। यह इंजन कम गहराइयों में धीरे-धीरे काम करने लगा। इसकी सहायता से खनन कार्य आसान हो गया।
  • इंग्लैंड में 1788 से 1796 की अवधि को 'नहरोन्माद' (Canal-mania) के नाम से जाना जाता है। इसका कारण यह था कि इस दौरान अनेक नहरें बनाई गई। उसके बाद अगले 60 वर्षों में 4000 मील के क्षेत्रफल में नहरों का जाल बिछा दिया था।
  • भाप की शक्ति का प्रयोग- ब्रिटेन के उद्योग में शक्ति के एक नए स्रोत के रूप में भाप का व्यापक रूप से प्रयोग से जहाजो और रेलगाड़ियों द्वारा परिवहन की गति काफी तेज हो गई। ब्लचर- 1814 में एक रेलवे इंजीनियर जार्ज स्टीफेन सन द्वारा बनाया गया एक रेल इंजन। भाप की शक्ति का प्रयोग सबसे पहले खनन उद्योग में किया गया।
  • 1761 ई. में जेम्स ब्रिडली द्वारा इंग्लैण्ड में पहली नहर ‘वर्सली कैनाल’ बनाई गई। इस नहर का प्रयोग कोयला भंडारों से शहर तक कोयला ले जाने के लिए किया जाता था। 1788-1796 ई० तक आठ वर्ष की अवधि को ‘नहरोन्माद’ के नाम से पुकारा जाता है। 46 नहरों के निर्माण की नई परियोजना हाथ में ली गई।
  • इन वर्षों के दौरान प्रतिभाशाली व्यक्तियों द्वारा क्रान्तिकारी परिवर्तन- धन, माल, आय, सेवाओं, ज्ञान और उत्पादकता कुशलता के रूप में अचानक वृद्धि होना।
  • औद्योगीकरण से नुकसान- परिवारों में बिखराव, पुराने मौसम में बदलाव, रोजगार के तलाश में गाँवों से शहरों में लोगों का पलायन, शहरों का रूप विकृत होना।
  • ब्रिटेन को औद्योगीकरण की कितनी मानवीय और भौतिक कीमत चुकानी पड़ी- गरीब मजदूर खासकर बच्चों की दुर्दशा, पर्यावरण का क्षय और हैजा तथा तपेदिक की बीमारियाँ।
  • समाजवाद- उत्पादन का एक विशिष्ट सिद्धान्त जिसके अन्तर्गत उत्पादन के साधनों पर सम्मपूर्ण समाज का स्वामित्व कायम रहता है।
    पूँजीवाद- इस व्यवस्था के अन्तर्गत उत्पादन के साधनों पर केवल व्यक्ति का स्वामित्व कायम रहता है।
  • औद्योगिक क्रान्ति के प्रभाव बच्चों तथा औरतों पर नकारात्मक रहे। शैशव अवस्था में बच्चों की मौत, घिनौनी व गन्दी बस्तियों में रहना, कम मजदूरी, काम के घंटो की अधिकता।
  • बच्चों और औरतों की दशा सुधारने के लिए कानून-1833, 1842 खान और कोयला खान अधिनियम (10 वर्ष से कम आयु के स्त्रियों तथा बच्चों से खानों में काम लेने पर प्रतिबन्ध। 1847 का अधिनियम-फील्डर्स फैक्ट्री अधिनियम (18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों व स्त्रियों से 10 घण्टे से अधिक काम लेने पर पाबन्दी)।
  • रेलवे के आविष्कार के साथ ही औद्योगीकरण का दूसरा चरण प्रारंभ हुआ। 1814 ई० में जार्ज स्टीफेनसन (1781-1848) ने एक रेल इंजन तैयार किया। इसे 'ब्लचर' (The Blutcher) कहा जाता था। यह इंजन 30 टन भार लेकर 4 मील प्रति घंटे की रफ्तार से पहाड़ी पर ले जा सकता था।
  • नि:संदेह औद्योगीकरण के फलस्वरूप मनुष्य को अत्यधिक नुकसान भी हुआ। फलत: इससे परिवार बिखर गए और पुराने मौसम भी बदल गए। काम की तलाश में लोगों को नयी जगहों पर बसना पड़ा जिससे शहर का स्वरूप विकृत हो गया।
  • मजदूरों को विकट परिस्थितियों में निर्वाह करना पड़ता था। वहाँ रहने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। मौत अधिकतर उन महामारियों से होती थी जो जल-प्रदूषण से, जैसे हैजा एवं अंत्रशोथ तथा वायु-प्रदूषण जैसे क्षयरोग से होती थी।
  • उद्योगपति पुरुषों की अपेक्षा औरतों तथा बच्चों को काम पर लगाना पसंद करते थे। इसका कारण यह था कि उनकी मजदूरी कम होती थी और काम की घटिया परिस्थितियों के विरुद्ध शिकायत करने से डरे रहते थे।
  • काम के अभिप्राय से कोयले की खानें भी अत्यधिक खतरनाक होती थीं। खानों की छतें प्राय: धंस जाती थीं या वहाँ विस्फोट भी हो जाया करता था। इसके अतिरिक्त खानों में मजदूरों को चोटें लगना साधारण-सी बात थी।
  • इंग्लैंड में काम की कठोर परिस्थितियों के विरुद्ध राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई। लेकिन सरकार ने दमनकारी रुख अपनाकर तथा कानून बनाकर व्यक्तियों से विरोध प्रदर्शन का अधिकार ही छीन लिया।
  • अंत में सरकार ने कुछ कानून बनाकर औरतों तथा बच्चों के काम की परिस्थितियों में सुधार करने की कोशिश की। उदाहरण के लिए, 1833 के एक अधिनियम द्वारा नौ वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों को सिर्फ़ रेशम के कारखानों में काम करने की अनुमति दी गई तथा बड़े बच्चों के लिए काम के घंटे सीमित कर दिए गए।
  • उड़न तुरी करघे (Flying shuttle loom) का आविष्कार जॉन के (1704-64) द्वारा 1733 में बनाए गए फ्लाइंग शटल लूम यानी उड़न तुरी करघे की सहायता से कम समय में अधिक चौड़ा कपड़ा बनाना संभव हो गया। परिणामस्वरूप कताई की तत्कालीन रफ्तार से जितना धागा बनता था उससे कहीं ज्यादा मात्रा में धागे की जरूरत होने लगी।
  • जेम्स हरग्रीव्ज़ (1720-78) द्वारा 1765 में बनाई गई कताई मशीन पर एक अकेला व्यक्ति एक साथ कई धागे कात सकता था। इससे बुनकरों को उनकी आवश्यकता से अधिक तेजी से धागा मिलने लगा।
  • रिचर्ड आर्कराइट (1732-92) द्वारा 1769 में आविष्कृत वॉटर फ्रेम (Water frame) नाम की मशीन द्वारा पहले से अकेले सूती धागे से ही विशुद्ध सूती कपड़ा बनाया जाने लगा।
  • 'म्यूल' एक ऐसी मशीन का उपनाम था जो 1779 में सैम्यूअल क्रॉस्टन (1753-1827) द्वारा बनाई गई थी। इससे कता हुआ धागा बहुत मजबूत और बढ़िया होता था।
  • कपड़ा उद्योग में उन मशीनों के आविष्कार का दौर, जो कताई तथा बुनाई कार्यों के बीच संतुलन बनाने के लिए बनाई जा रही थीं, एडमंड कार्टराइट (1743-1823) द्वारा 1787 में पॉवरलूम यानी शक्तिचालित करघे के आविष्कार के साथ समाप्त हो गया। पावरलूम को चलाना बहुत आसान था। जब भी धागा टूटता वह अपने-आप काम करना बन्द कर देता और इससे किसी भी तरह के धागे से बुनाई की जा सकती थी। 1803 के दशक से, कपड़ा उद्योग में नयी-नयी मशीनें बनाने की बजाय श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ाने पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा।
  • 1795 में ब्रिटेन की संसद ने जुड़वा अधिनियम पारित किये। कार्न लाॅज (अनाज के कानून) का समर्थन। चकबन्दी ने मजदूरों को बेरोजगार बनाया। उन्होंने अपना गुस्सा मशीनों पर निकाला। बहुत बड़े पैमाने पर मशीनों में तोड़फोड़ करना।
  • जनरल नेड लुड के नेतृत्व में लुडिज्म आन्दोलन चलाया गया। इसके अनुनायियों ने न्यूनतम मजदूरी, औरतों तथा बाल मजदूरी पर नियन्त्रण, बेरोजगारों के लिए काम तथा कानूनी तौर पर मजदूर संघ (ट्रेड यूनियन) बनाने के अधिकार की माँग की।
  • औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज में दो प्रकार के वर्गो का निर्माण हुआ।
    (i) मालिक
    (ii) मजदूर वर्ग।
    कुटीर व लघु उद्योग धन्धों का विनाश होने से बेरोजगारी बढ़ी। केवल पूँजीपति वर्ग को लाभ हुआ।