विचारक विश्वास आरै इमारतें-पुनरावृति नोट्स
पाठ – 04 विचारक, विश्वास आरै इमारतें (सांस्कृतिक विकास)
(लगभग 600 ईसा पूर्व से संवत् 600 ईसा तक)
पुनरावृत्ति नोट्स
स्मरणीय बिन्दु-
- महान दार्शनिकों के विचार मौखिक लिखित परंपराओं में संग्रहित हुए तथा स्थापत्य और मूर्तिकला के माध्यम से अभिव्यक्त हुए।
- वैदिक धर्म, जैनमत, वैष्णव सम्प्रदाय, शैवमत और बौद्धधर्म प्राचीन भारत के प्रमुख धर्म।
- बौद्ध धर्म के विश्वासों और विचारों को जानने का प्रमुख स्रोत है साँची का स्तूप।
- 19 वीं शताब्दी में अंग्रेज़ व फ्रांसीसियों ने साँची के स्तूप में विशेष दिलचस्पी दिखाई।
- आरम्भ में स्तूप वस्तुतः टीले होते थे। यह पवित्र बौद्ध स्थल है यहां आंगन के बीच चबूतरों पर बुद्ध से जुड़े अवशेषों को गाड़ा जाता था।
- सांची के स्तूप, समूह के संरक्षण में भोपाल की शासक शाहजहाँ बेगम और सुलतान जहाँ बेगम का बहुत योगदान था।
- शाहजहाँ बेगम ने यूरोपियनों को केवल स्तूप के तोरण द्वार की प्लास्टर प्रतिकृति ही ले जाने डी, सुल्तानजहाँ ने रखरखाव के लिए धन दिया, संग्रहालय व अतिथिशाला बनवाई।
- ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी में जीवन के रहस्यों को समझाने के लिए जरथुस्त्र, खुंगत्सी, सुकरात, प्लेटो, अरस्तु, महावीर, बुद्ध आदि चिंतकों का उदय हुआ।
- पूर्व वैदिक परम्परा में ऋग्वेद में अग्नि, इन्द्र आदि कई देवताओं की स्तुति है तथा यज्ञों का विशेष महत्व।
- बुद्ध और महावीर जैसे चिंतकों ने वेदों पर प्रश्न उठाया और जीवन का अर्थ तथा पुनर्जन्म आदि के बारे में जानने का प्रयास किया।
- बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन त्रिपिटक में है। (सुत्तपिटक, विनयपिटक, अभिधम्म पिटक)
- बौद्ध धर्म भारत से बाहर चीन, कोरिया, जापान, श्रीलंका, म्याँमार, थाईलैंड व इंडोनेशिया में फैला।
- जैन विद्वानों ने प्राकृत, संस्कृत, तमिल भाषाओं में साहित्य का सृजन किया।
- बुद्ध के संदेश सैकड़ों वर्षों के दौरान पूरे उपमहाद्वीप में और उसके बाद मध्य एशिया होते हुए चीन, कोरिया और जापान, श्रीलंका से समुद्र पार कर म्यांमार, थाइलैंड और इंडोनेशिया तक फैले।
- बुद्ध के शिष्यों के दल ने संघ की स्थापना की। बुद्ध के अनुयायी कई सामाजिक वर्गों से थे परंतु संघ में आपने पर सब बराबर माने जाते थे।
- बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गौतमी संघ में आने वाली प्रथम भिक्खुनी बनी। ऐसी स्त्रियाँ जो संघ में आई वे धम्म की उपदेशिकाएँ बनी। भविष्य में वे थेरी बनी, जिसका अर्थ है ऐसी महिलाएं जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया हो।
- बोद्ध संघ में समहित होने पर सभी को बराबर माना जाता था क्योंकि भिक्खू और भिक्खूनी बनने पर उन्हें अपनी पुरानी पहचान का त्याग देना पड़ता था।
- बौद्ध धर्म में 'निर्वाण' का अर्थ है, अहं और इच्छा का समाप्त होना।
- प्रारंभिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया।
- साँची के स्तूप में शालभंजिका की मूर्ति इस बात का इंगित करती है कि जो लोग बौद्ध धर्म में आए उन्होंने बुद्ध-पूर्व और बौद्ध धर्म से इतर दूसरे विश्वासों, प्रथाओं और धाराओं से बौद्ध धर्म को समृद्ध किया।
- वैष्णव धर्म हिंदु धर्म की वह परंपरा थी जिसमें विष्णु को सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवता माना जाता था।
- शैव परंपरा में शिव की सर्वोच्च परमेश्वर माना गया।
- महिलाएं और शूद्र वैदिक साहित्य पढ़ने-सुनने से वंचित थे जबकि वे पुराणों को सुन सकते थे।
- बौद्ध दर्शन के अनुसार विश्व अनित्य है तथा निरंतर बदल रहा है।
- स्तूप का ऊपरी ढांचा जो प्रायः एक छज्जे जैसा होता है उसे हर्मिका कहते हैं।
- स्तूप की हर्मिका के ऊपर जो मस्तूल बनाया जाता था उसे यष्टि कहते कहते थे।
- साँची और भरहुत के प्रारंभिक स्तूप बिना अलंकरण के हैं। उनमें केवल पत्थर की वेदिकाएँ तथा तोरणद्वार हैं।
- जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर ने अवधारणा प्रस्तुत की कि सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है। उन्होंने अहिंसा के सिद्धांत का प्रतिपादन किया व अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति बताया।
- जैन धर्म के पांच प्रमुख व्रत हैं- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य।
महत्वपूर्ण बिन्दु
- बौद्व धर्म का इतिहास -सांची स्तूप पर बल
- विस्तृत संदर्भ -वैदिक धर्म, जैन धर्म, वैषणवमत, शैवमत, बौद्व धर्म पर बल
- सांची स्तूप की खोज, सांची की मूर्तिया
- धार्मिक वाद -विवाद बौद्व धर्म की पुर्नरचना
- प्राचीन वैदिक धर्म, जैन, बौद्व, वैषणव, शैल
- महावीर, सिद्वार्थ, वैदिककाल की उपासना रीति
- हीनयांन, महायान (बौद्व धर्म), श्वेतांम्बर, दिगम्बर (जैन धर्म)
- त्रिपिटक, जातक पिटक, उपनिषद -लिखित स्त्रोत
- जैन, बौद्व धर्म का प्रचार प्रसार, मथुरा -गांधार मूर्तिकलाएं
- बिहार, चौत, स्तूप, आष्टांगिक मार्ग, बौद्व के चार आर्य सत्य