जल संसाधन-प्रश्न-उत्तर

                                                     CBSE Class 12 भूगोल

एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर
पाठ-6
जल संसाधन


प्र०1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए-

(i) निम्नलिखित में से जल किस प्रकार का संसाधन है?
(क) अजैव संसाधन
(ख) अनवीकरणीय संसाधन
(ग) जैव संसाधन
(घ) चक्रीय संसाधन

उत्तर- (घ) चक्रीय संसाधन


(ii) निम्नलिखित नदियों में से, देश में किस नदी में सबसे ज्यादा पुनः पूर्तियोग्य भौम जल-संसाधन हैं?
(क) सिंधु
(ख) ब्रह्मपुत्र
(ग) गंगा
(घ) गोदावरी

उत्तर- (ग) गंगा


(iii) घन कि०मी० में दी गई निम्नलिखित संख्याओं में से कौन-सी संख्या भारत में कुल वार्षिक वर्षा दर्शाती है?

(क) 2,000
(ख) 3000
(ग) 4000
(घ) 5000

उत्तर- (ग) 4000


(iv) निम्नलिखित दक्षिण भारतीय राज्यों में से किस राज्य में भौम जल उपयोग (% में) इसके कुल भौम जल संभाव्य से ज्यादा है?

(क) तमिलनाडु
(ख) कर्नाटक
(ग) आध्र प्रदेश
(घ) केरल

उत्तर- (क) तमिलनाडु


(v) देश में प्रयुक्त कुल जल का सबसे अधिक समानुपात निम्नलिखित सेक्टरों में से किस सेक्टर में है?

(क) सिंचाई
(ख) उद्योग
(ग) घरेलू उपयोग
(घ) इनमें से कोई नहीं।

उत्तर- (क) सिंचाई


प्र०2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-

(i) यह कहा जाता है कि भारत में जल-संसाधनों में तेज़ी से कमी आ रही है। जल-संसाधनों की कमी के लिए उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए।

उत्तर- भारत तीव्रता से बढ़ती जनसंख्या के कारण जल की प्रतिव्यक्ति उपलब्धता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है।इसके साथ ही उपलब्ध कृषि, जल-संसाधन औद्योगिक, और घरेलू प्रदूषकों से प्रदूषित होता जा रहा है। इस कारण से उपयोगी जल-संसाधनों की उपलब्धता कम होती जा रही हैं।


(ii) पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु राज्यों में सबसे अधिक भौम जल विकास के लिए कौन-से कारक उत्तरदायी हैं?

उत्तर- पंजाब, हरियाणा तथा तमिलनाडु राज्यों में भौम जल विकास सबसे अधिक इसलिए संभव हुआ है क्योंकि इन राज्यों  में कृषि के अंतर्गत उगाई जाने वाली क्रांति का शुभारंभ भी इन्हीं राज्यों से हुआ था। साथ ही भौम जल की मात्रा भी इन राज्यों में सबसे अधिक है।


(iii) देश में कुल उपयोग किए गए जल में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कम होने की संभावना क्यों है?

उत्तर- धीरे-धीरे से भारत में औद्योगिकीकरण का स्तर बढ़ता जा रहा है तथा कृषि क्षेत्र कम होता जा रहा है। नगरों के पास की भूमि पर कृषि के अलावा अनेक आर्थिक गतिविधियों में भूमि उपयोग बढ़ने से कृषि भूमि सिकुड़ती जा रही है। अत: भविष्य में जल का उपयोग भी कृषि की अपेक्षा अन्य आर्थिक गतिविधियों में बढ़ने की संभावना है।


(iv) लोगों पर संदूषित जल/गंदे पानी के उपयोग के क्या संभव प्रभाव हो सकते हैं?

उत्तर- विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों से स्पष्ट देखा जा सकता है कि एक-चौथाई संक्रामक रोग जल जनित हैं। संदूषित जल से उत्पन्न होने वाली बीमारियाँ हैं- पीलिया,अतिसार, हैजा, आँतों के कृमि, रोहा, आदि |


प्र०3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए-

(i) देश में जल-संसाधनों की उपलब्धता की विवेचना कीजिए और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी को निर्धारित करने वाले कारक बताइए।

उत्तर- भारत में जल-संसाधनों की उपलब्धता के चार मुख्य स्रोत हैं-(i)झीलें (ii)नदियाँ (iii)तालाब (iv)तलैया। यह जल वर्षण के विभीन्न रूपों से प्राप्त होता हैं।

देश में एक वर्ष में वर्षण से प्राप्त कुल जलराशि की मात्रा लगभग 4,000 घन कि०मी० है। धरातलीय जल और पुनः पूर्तयोग्य भौम जल से 1,869 घन कि०मी० जल की उपलब्धता है,इसमे केवल 60% अर्थात् 1,122 घन कि०मी० का ही लाभदायक उपयोग किया जा सकता है। भारत में होने वाली वर्षा में अत्यधिक सामयिक व स्थानिक विभिन्नता पाई जाती है। कुल वर्षा का ज्यादातर भाग मानसूनी मौसम तक रहता   है। गंगा, ब्रह्मपुत्र व बराक नदियों के जल ग्रहण क्षेत्रों में अपेक्षाकृत ज्यादा वर्षा होती है जोकि भारत का एक-तिहाई क्षेत्रफल हैं। किंतु यहाँ कुल धरातलीय जल-संसाधनों का 60% जल मिलता हैं।

दक्षिण भारतीय नदियाँ, जैसे- कृष्णा, गोदावरी, व कावेरी में जल प्रवाह का ज्यादातर जबकि गंगा व ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में यह अभी तक संभव नहीं हो पाया है।

नदियों में जल प्रवाह उनके जल ग्रहण क्षेत्र के आकार तथा उनके जल ग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा पर निर्भर करता हैं। भारत में नदियों व उनकी सहायक नदियों की कुल संख्या 10,360 है। इनमें 1,869 घन कि०मी० वार्षिक जल प्रवाह होने का अनुमान है, जिसके केवल 32% अर्थात् 690 घन कि०मी० जल का उपयोग किया जा सकता है।


(ii) जल-संसाधनों का ह्रास सामाजिक द्वंद्वों और विवादों को जन्म देते हैं। इसे उपयुक्त उदाहरणों सहित समझाइए।

उत्तर- जल एक नवीकरणीय चक्रीय प्राकृतिक संसाधन हैं ,जोकि पृथ्वी पर विशाल मात्रा में उपलब्ध है, परन्तु पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का केवल 3% ही अलवणीय अर्थात् मानवोउपयोगी है, शेष 97% जल लवणयुक्त अथवा खरा है, जो केवल नौ संचालन व मछली पकड़ने के अलावा मानव के लिए प्रत्यक्ष उपयोग में नहीं आता।

अलवणीय जल की उपलब्धता भी स्थान और समय के अनुसार अलग-अलग है। इसलिए इस दुर्लभ संसाधन के आवंटन और नियंत्रण को लेकर समुदायों, राज्यों तथा देशों के बीच द्वंद्व, तनाव व लड़ाई-झगड़े तथा विवाद होते रहे हैं, जैसे-

  1. नर्मदा नदी के जल को लेकर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश व गुजरात राज्यों में विवाद।
  2. पंजाब, हरियाण व हिमाचल प्रदेश में बहने वाली नदियों के जल बँटवारे को लेकर विवाद।
  3. कावेरी नदी के जल बँटवारे को लेकर केरल, तमिलनाडु व कर्नाटक राज्यों में विवाद।
    जनसंख्या के बढ़ने के साथ-साथ जल की प्रतिव्यक्ति उपलब्धता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। उपलब्ध जल औद्योगिक, कृषि व घरेलू निस्सरणों से प्रदूषित होता जा रहा है, अत: उपयोगी, शुद्ध जल-संसाधनों की उपलब्धता और सीमित होती जा रही है।

(iii) जल-संभर प्रबंधन क्या हैं? क्या आप सोचते हैं कि यह सतत पोषणीय विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है?

उत्तर- जल-संभर प्रबंधन-जल-संभर प्रबंधन का संबंध मुख्य रूप से धरातलीय तथा भौम जल-संसाधनों के कुशल व दक्ष प्रबंधन से है। इसके अंतर्गत बहते वर्षा जल को अनेक विधियों के द्वारा रोककर अंत:स्रवण, कुओं तथा तालाब, पुनर्भरण आदि के द्वारा भौम जल का संचयन और पुनर्भरण करना शामिल है। जल संभर प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक जल संसाधनों और समाज की जरुरतो  के बीच संतुलन स्थापित करना है।

कुछ क्षेत्रों में जल-संभर विकास परियोजनाएँ पर्यावरण और अर्थव्यवस्था का कायाकल्प करने में सफल रही हैं। जैसे-

  1. हरियाली- यह केंद्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल-संभर विकास परियोजना है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण जनसंख्या को पिने, मत्स्यपालन, सिंचाई और वन रोपण के लिए जल-संभर विधि से जल का संरक्षण किया जाता है। यह परियोजना लोगों के सहयोग से ग्राम पंचायतों द्वारा निरंतर निष्पादित की जा रही है।
  2. तमिलनाडु में घरों में जल संग्रहण संरचना का निर्माण आवश्यक समझा गया है।
  3. महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित रालेगन सिद्धि एक छोटा-सा गाँव है। यह पूरे देश में जल-संभर विकास का एक जीवंत उदाहरण है। देश में लोगों की जल-संभर विकास प्रबंधन के लाभों को बताकर उनमें जागरूकता लाने क लिए  जल की उपलब्धता को सतत पोषणीय विकास से जोड़ा जा सकता है।
  4. नीरू-मीरू (जल और आप)- यह कार्यक्रम आंध्र प्रदेश में तथा अरवारी पानी संसद (अलवर राजस्थान में) लोगों के सहयोग से निस्पादिक हैं, जिनमें जल संग्रहण के लिए संरचनाएँ जैसे तालाब, अंत:स्रवण, ताल (जोहड़) की खुदाई की गई हैं तथा रोक बाँध बनाए गए हैं।