संस्कृति तथा समाजीकरण - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 11 समाजशास्त्र
पाठ-4 संस्कृति तथा समाजीकरण
पुनरावृत्ति नोट्स

स्मरणीय बिन्दु :
  • सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से संस्कृति सीखी जाती है एवं इसका विकास होता है।
    टायरल के अंतर्गत, "संस्कृति  वह जटिल पूर्णता है जिसके अंतर्गत ज्ञान, विशवास, कला नीति, कानून, प्रथा और अन्य क्षमताएँ व आदतें सम्मिलित हैं जिन्हें मनुष्य समाज के सदस्य के रूप में ग्रहण करता है।"
  • संस्कृति :
    1. सीखा हुआ व्यवहार है।
    2. सीखी हुई चीजों का एक भण्डार है।
    3. सामाजिक नींव है जोकि व्यक्ति अपने समूह से प्राप्त करता है।
    4. बार-बार घट रही समस्याओं के लिए मानवकृत दिशाओं का एक समुच्चय है।
    5. सोचने, अनुभव करने तथा विशवास करने का एक तरीका है।
    6. लोगों के जीने का एक संपूर्ण तरीका है।
    7. व्यवहार का सारांश है।
    8. व्यवहार के मानकीय नियमितिकरण हेतु साधन है।
  • जीवन एवं संस्कृति के विभिन्न परिवेश का उद्गम विभिन्न व्यवस्था की वजह है।
  • आधुनिक विज्ञान तथा तकनीक तक पहुँच होने से आधुनिक सांस्कृतिक द्वीपों में रहने वाली जनजातियों की संस्कृति से अच्छी नहीं हो जाती।
  • संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ :
    • संस्कृति सीखी जाती है एवं यह अर्जित व्यवहार हैं।
      पशु समाज- ज़्यादातर व्यवहार प्रवृत्तिमूलक होते हैं। वंशानुगत तथा जैविक रूप से गढ़े गए व्यवहार प्राणियों के सभी सदस्यों  में एक जैसे पाए जाते हैं।
      मानव समाज- ज़्यादातर व्यवहार अर्जित हैं। व्यवहार समाज के विशिष्ट समूहों को विशिष्टता प्रदान करता हैं।
    • समाज के सदस्यों के बीच इसका आदान-प्रदान तथा संचार होता है। व्यक्ति इसे अलग से प्राप्त नहीं कर सकते हैं। यह समाज के सदस्यों को निरंत्रित करती हैं।
    • संस्कृति में बदलाव होते रहते हैं। यह लगातार परिवर्तनशील होती है तथा यह सभी समाजो और समूहो को विशिष्टता प्रदान करता है।
  • संस्कृति के आयाम :
    1. मानवीय पक्ष- मानवीय पक्ष में प्रथाएँ, परिपाटियाँ, लोकरीतियाँ, लोकाचार और कानून सम्मिलित हैं। यह मूल्य या नियम है जो अनेक संदर्भों में सामाजिक व्यवहार को दिशा निर्देश देते है। सभी सामाजिक मानकों के साथ स्वीकृतियों मानकों के साथ स्वीकृतियाँ होती है जो कि अनुरूपता को बढ़ावा देती है।
    2. संस्कृति के भौतिक पक्ष- भौतिक पक्ष तकनीकों, भवनों, औजारों या यातायात के साधनों के साथ ही उत्पादन तथा संप्रेषण के उपकरणों से संदर्भित है।
    3. संस्कृति संज्ञानात्मक पक्ष- संज्ञानात्मक का संबंध इस बात से है कि हम अपने वातावरण से प्राप्त होने वाली सूचना का कैसे इस्तेमाल करते हैं।
  • संस्कृति के दो मुख्य आयाम है :
    1. भौतिक- भौतिक आयाम उत्पादन बढ़ाने और जीवन स्तर को ऊपर उठाने हेतु आवश्यक हैं।
      उदाहरण- यंत्र, भवन, औजार, तकनीकी और यातायात के साधन आदि।
    2. अभौतिक- संज्ञानात्मक एवं मानकीय पक्ष अभौतिक है।
      उदाहरण- प्रथाएँ आदि।
  • संस्कृति के एकीकृत कार्यों के लिए भौतिक एवं अभौतिक आयामों को एकजुट होकर काम करना चाहिए।
  • भौतिक आयाम तीव्रता से परिवर्तित होते हैं तो मूल्यों तथा मानकों की दृष्टि से अभौतिक पक्ष पीछे छूट सकते हैं। इससे संस्कृति के पिछड़ने की स्थिति [पैदा हो सकती है।
    भौतिक संस्कृतिअभौतिक संस्कृति
    1. भौतिक संस्कृति मूर्त होती है जिसे हम देख सकते है छू सकते हैं। जैसे- किताब, पैन, कुर्सी आदि।1. अभौतिक संस्कृति अमूर्त होती है जिसे हम देख व हू नहीं सकते महसूस कर सकते हैं। जैसे- विचार, आदर्श इत्यादि।
    2. भौतिक संस्कृति को हम गुणात्मक रूप में माप सकते हैं।2. अभौतिक संस्कृति को हम गुणात्मक रूप से आसानी से नहीं माप सकते हैं।
    3. भौतिक संस्कृति में परिवर्तन तेजी से आते हैं क्योंकि संसार में परिवर्तन तेजी से आते हैं।3. अभौतिक संस्कृति में परिवर्तन धीरे-धीरे आते हैं क्योंकि लोगों के विचार धीरे-धीरे बदलते हैं।
    4. भौतिक संस्कृति में किसी नई चीज का आविष्कार होता है। तो इसका लाभ कोई भी व्यक्ति व समाज ले सकता है।4. अभौतिक संस्कृति के तत्त्वों का लाभ सिर्फ उसी समाज के सदस्य उठा सकते हैं।
    5. भौतिक संस्कृति के तत्त्व आकर्षक होते हैं इसलिए हम इसे आसानी से स्वीकार कर लेते हैं।5. अभौतिक संस्कृति के तत्त्व आकर्षक नहीं होते इसलिए हम इसमें आने वाले परिवर्तनों को आसानी से स्वीकार नहीं करते।
  • कानून एवं प्रतिमान में अंतर :
    1. कानून सरकार के माध्यम से नियम के अनुसार परिभाषित औपचारिक स्वीकृति है।
    2. सम्पूर्ण समाज पर कानून लागू होते हैं एवं कानूनों का उल्लंघन करने पर जुर्माना तथा सजा हो सकती है।
    3. मानदंड अस्पष्ट नियम हैं जबकि कानून स्पष्ट नियम है।
    4. कानून सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत किए जाते हैं, जबकि मानक समाजिक परिस्थिति के अनुसार।
  • विरासत समाज को इनके दूसरे व्यक्तियों के साथ संबंधों से प्राप्त होती, यह व्यक्ति को पहचान से नहीं मिलती है।
  • आधुनिक समाज में सभी व्यक्ति बहुविध भूमिकाएँ अदा करता है।
  • किसी भी संस्कृतिक की अनेक उपसंस्कृतियाँ हो सकती है, जैसे संभ्रांत तथा कामगार वर्ग के युवा। उपसंस्कृतियों की पहचान शैली, रुचि तथा संघ से होती है।
  • नृजातीयता:
    • नृजातियता का अभिप्राय : अपने सांस्कृतिक मूल्यों का अन्य संस्कृतियों के लोगों के व्यवहार और आस्थाओं का मूल्यांकन करने हेतु इस्तेमाल करने से है। जब संस्कृतियाँ एक दूसरे के संपर्क में आती है तभी नृजातीयता का उदय होता है।
    • नृजातीयता विश्वबंधुता के विपरीत है जोकि संस्कृतियों को उनके अंतर के कारण महत्त्व देती है।
    • विश्वबंधुता पर्यवेक्षण अन्य व्यक्तियों के मूल्यों एवं आस्थाओं का मूल्यांकन अपने मूल्यों तथा आस्थाओं के अंतर्गत नहीं करता।
    • एक आधुनिक समाज सांस्कृतिक विविधता का प्रशंसक होता है।
    • एक विश्वव्यापी पर्यवेक्षण सभी व्यक्तियों को अपनी संस्कृति प्रभावों के माध्यम से सशक्त करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
  • सामाजिक परिवर्तन:
    •  यह एक ऐसा तरीका है जिसके माध्यम से समाज अपनी संस्कृति के प्रतिमानों का परिवर्तन करता है। सामाजिक परिवर्तन आंतरिक एवं बाहरी हो सकते हैं:
      • आंतरिक- कृषि या खेती करने की नई पद्धतियाँ।
      • बाहरी- हस्तक्षेप जीत या उपनिवेशीकरण के रूप में हो सकते हैं।
    • प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन अन्य संस्कृतियों से संपर्क या अनुकूलन की प्रक्रियाओं के माध्यम से सांस्कृतिक परिवर्तन हो सकते हैं।
    • क्रांतिकारी परिवर्तनों का आरम्भ राजनीतिक हस्तक्षेप तकनीकी खोज परिस्थितिकीय रूपांतरण की वजह से हो सकती है उदाहरण- इलेक्ट्रॉनिक, फ्रांसीसी क्रांति ने राजतंत्र को समाप्त किया प्रचार तंत्र तथा मुद्रण।
  • सामाजिक मूल्य :
    •  ये वे मानक हैं जिनके द्वारा यह परिभाषित किया जाता हैं कि समाज में क्या अच्छा, वांछनीय एवं उचित है। ये आवश्यक सिद्धांत हैं जी पसंद और कार्यों के माध्यम से प्रभावित होते हैं।
    • प्रभावकारी मूल्यों के विरुद्ध किसी भी कार्य की निंदा की जाती है।
      • मूल्य :
        • साधारणतः सामान्य दिशा-निर्देश हैं।
        • भारतीय समाज में ज्येष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करना मूल्य है तथा इससे ज्येष्ठों के लिए अपेक्षित व्यवहार सें संबंधित विभिन्न प्रतिमान उन्हें प्रश्रम नाम लेकर नहीं पुकारना इत्यादि।
        • उदाहरण-वयस्कों का आदर करना (पैरों को स्पर्श करना)।
      • प्रतिमान :
        • प्रतिमान कार्यों के दिशा-निर्देश हैं, जो विशिष्ट परिस्थितियों में लागू होते हैं।
        • अनेक विशिष्ट प्रतिमान किसी खास मूल्य का प्रतिबिम्ब हैं।
        • उदाहरणार्थ-किसी आयोजन के लिए पोशाक-संहिता प्रतिमान है।
  • प्रतिमान और मूल्य के महत्त्व :
    1. मूल्यों एवं प्रतिमानों का आदान-प्रदान समाज के सदस्यों के दृष्टिकोण में समानता पैदा करता हैं एवं उन्हें एक-दूसरे के साथ बाँधता है।
    2. यह सामाजिक जीवन को व्यवस्थित एवं पूर्वसूचनीय बनाता है। उदाहरण, आदर्श के अभाव में हमें इस बात की जानकारी नहीं हो सकती हैं कि किसी अजनबी व्यक्ति के साथ हाथ मिलाया जाए या उसे प्यार भर धक्का दिया जाए।
    3. आदर्श महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे समाज के सदस्यों या समूहों का व्यवहार नियंत्रित करते हैं। आदेश के अभाव में अस्तव्यस्तता तथा अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होना अनिवार्य है।
  • संज्ञानात्मक आयाम :
    • संज्ञानात्मक आयाम का सरोकार वैसे विचारों से हैं जिनमें समाज में प्रचलित झूठा विचार, अंधविश्वास, विश्वास, ज्ञान इत्यादि सम्मिलित रहते हैं।
  • संस्कृति के भौतिक परिदृश्य :
    • इसका संबंध स्पर्शयोग्य एवं ठोस उत्पादन से है जो समाज के सदस्यों के पास होता हैं और इसका प्रयोग करते हैं। उदाहरण: यंत्र, भवन, जेवरात, यातायात के साधन, तकनीकी उपकरण इत्यादि।
  • नृजातीयता/नृजातिकेंद्रवादऔर विश्ववाद :
    • नृजातीयता/नृजातिकेंद्रवाद- इसका संदर्भ अपनी संस्कृति के परिपेक्ष्य में दूसरों का अवमूल्यन करने की प्रवृत्ति,  विभिन्नता की अधम समझना तथा दूसरों की संस्कृति का मूल्यांकन करने से है।
      विश्ववाद-यह नृजातिकेंद्रवाद विपरीत पहलु  है। यह दूसरों की संस्कृति तथा उनके विचारों को समायोजित करता हैं।
  • समाजीकरण :
    • एक एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति समाज का सदस्य बनना सीखते हैं।
    • यह जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है।
  • समाजीकरण की विशेषताएँ ;
    1. सांस्कृतिक आत्मसात करने की विधि/ प्रक्रिया
    2. समाज के क्रियाशील सदस्य बनने की प्रक्रिया
    3. सांस्कृतिक संचार की प्रक्रिया
    4. सीखने की प्रक्रिया
    5. जीवन-पर्यंत प्रक्रिया
  • समाजीकरण की प्रक्रिया ;
    समाजीकरण के चार चरण है:
    • मौखिक अवस्था
    1. प्रच्छन्नता/अव्यक्तता अवस्था
    2. शैशवावस्था
    3. किशोरावस्था
  • समाजीकरण की प्रक्रिया के कारक/घटक
  • सीखने की प्रक्रिया के चार घटक / कारक हैं। वे इस प्रकार है:
    1. अनुसरण करना, 2. सुझाव, 3. पहचान, 4. भाषा
  • समाजीकरण का महत्त्व :
    • यह पीढ़ियों के मध्य संस्कृति का संचार करता है।
    • यह व्यक्तियों कों उसकी सामाजिक प्रस्थिति को निभाने में मदद करता हैं।
    • यह व्यक्तियों को जीव-विज्ञान संबंधी प्राणियों से सामाजिक प्राणियों में रूपांतरित करता हैं।
  • प्रारंभिक तथा द्वितीयक समाजीकरण :
    • प्राथमिक समाजीकरण- बच्चे का प्राथमिक समाजीकरण उसके शिशुकालऔर बचपन में आरम्भ होता है। यह बच्चे का सबसे महत्वपूर्ण एवं निर्णायक स्तर होता है। बच्चा अपने बचपन में ही इस स्तर मूलभूत व्यवहार सीख जाता है।
    • द्वितीयक समाजीकरण- द्वितीयक समाजीकरण बचपन की आखरी अवस्था से शुरू होकर जीवन में परिपक्वता आने तक चलता है।
  • समाजीकरण क्र प्रमुख अभिकरण : समाजीकरण की प्रक्रिया बहुत जटिल है, जिसमें विभिन्न संस्थाओं या अभिकरणों का सहयोग होता है समाजीकरण के प्रमुख अभिकरण इस तरह है-
    • परिवार- समाजीकरण करने वाली संस्था या अभिकरण के रूप में परिवार का महत्त्व वास्तव में असाधारण है। बच्चा पहले परिवार में जन्म लेता है, और इस रूप में वह परिवार की सदस्यता ग्रहण करता है।
    • समकक्ष, समूह मित्र या क्रीडा समूह- बच्चों के मित्र या उनके साथ खेलने वाले समूह भी एक आवश्यकता प्राथमिक समूह होते हैं। इस वजह से बच्चों के समाजीकरण की प्रक्रिया में इनका अत्यंत प्रभावशाली स्थान होता है।
    • अन्य समाजीकरण अभिकरण- सभी संस्कृतियों में कार्यस्थल एक ऐसा आवश्यक स्थान है जहाँ समाजीकरण की प्रक्रिया चलती है।
      धर्म, समाजिक जाति / वर्ग आदि।
    • विद्यालय- विद्यालय एक औपचारिक संगठन है। औपचारिक पाठ्यक्रम के साथ-साथ बच्चों को सिखाने के लिए कुछ अप्रत्यक्ष पाठ्यक्रम भी होता है।
    • जन्म-माध्यम- जन माध्यम हमारे दैनिक का ए अभिन्न अंग बन चुके हैं। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम और मुद्रण माध्यम का महत्त्व भी लागातार बना हुआ है। जन माध्यमों के द्वारा सूचना ज्यादा लोकतांत्रिक ढ़ंग से पहुँचाई जा सकती है।