क्ति सूफी परंपराएँ धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ-पुनरावृति नोट्स

सीबीएसई कक्षा 12 इतिहास
पाठ - 6 भक्ति सूफी परंपराएँ धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ
(लगभग आठवीं से अठारहवीं सदी तक)
पुनरावृत्ति नोट्स

स्मरणीय बिन्दु–

  1. इस काल में दो प्रक्रियाएँ कार्यरत थीं-ब्राह्मणीय विचारधारा के प्रचार की, अन्य प्रक्रिया स्त्री शूद्रों व अन्य सामाजिक वर्गों की आस्थाओं और आचरणों को ब्राह्मणों द्वारा स्वीकृत किया जाना और उसे एक नया रूप प्रदान करना।
    संभवत: इस काल में साहित्य और मूर्तिकला दोनों में ही देवी-देवता अधिकाधिक दृष्टिगत होते हैं।
    समाजशास्त्रियों का यह मानना है कि समूचे उपमहाद्वीप में अनेक धार्मिक विचारधाराएँ और पद्धतियाँ ‘महान’ संस्कृत-पौराणिक परिपाटी तथा ‘लघु’ परंपरा के बीच हुए अविरल संवाद का परिणाम हैं।
    धर्म के इतिहासकार भक्ति परंपरा को दो मुख्य वर्गों में बाँटते हैं।
    1. सगुण- इसमें शिव, विष्णु तथा उसके अवतार व देवियों की आराधना आती है।
    2. निर्गुण- भक्ति परंपरा में अमूर्त, निराकार ईश्वर की उपासना की जाती थी।
  2. इस काल के नूतन साहित्यिक स्रोतों में संत कवियों की रचनाएँ हैं।
  3. इतिहासकार इन संत कवियों के अनुयायियों (जो उनके संप्रदाय से थे) द्वारा लिखी गई उनकी जीवनियों का भी इस्तेमाल करते हैं।
  4. भक्ति आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य असमानता, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब और छोटे-बड़े की भावना को समाप्त करना।
  5. पूरी, उड़ीसा में जहाँ मुख्य देवता को बाहरवीं शताब्दी तक आते-आते जगन्नाथ (शाब्दिक अर्थ में संपूर्ण विश्व का स्वामी) विष्णु के स्वरूप के रूप में प्रस्तुत किया गया।
  6. देवी की उपासना अधिकतर सिंदूर से पोते गए पत्थर के रूप में ही की जाती थी।
  7. छठी शताब्दी में- भक्ति आंदोलन अलवारों (जो विष्णु के भक्त थे) और नयनारों (शिव भक्त) के नेतृत्व में हुआ। यह अधिकतर तमिलनाडु में फैला।
  8. अलवार संतों का एक मुख्य काव्य- संकलन नलयिरादिव्यप्रबंधम् था।
  9. दक्षिण भारत की अलवार स्त्री भक्त अंडाल थी जिन्हें दक्षिण भारत की मीरा कहा जाता है। नयनार स्त्री भक्त करइक्काल अम्मइयार थी।
  10. अलवार एवं नयनार संतो ने जाति प्रथा व ब्राहमणों की प्रभुता के विरोध ने आवाज उठाई।
  11. चोल सम्राटों की मदद से - चिदम्बरम, तंजावुर और गगैकोड़चोलपुरम के विशाल शिव मंदिरों का निर्माण हुआ।
  12. चोल सम्राट परांतक प्रथम ने कवि अप्पार संबदर और सुंदरार की धातु प्रतिमाएँ एक शिव मंदिर में स्थापित करवाई।
  13. कर्नाटक में बासवन्ना (1106-68) ने वीरशैव या लिगांयत परंपरा की शुरूआत की। लिंगायतों ने जाति की अवधारणा का विरोध किया। लिंगायतों ने वयस्क विवाह, विधवा पुनर्विवाह को मान्यता दी।
  14. तुर्क और अफगानों ने लगभग तेरहवीं शताब्दी ईसवी में दिल्ली सल्तनत की नींव रखी।
  15. ज़िम्मी- (व्युत्पत्ति अरबी शब्द जिम्मा से है)। जिसका अर्थ है संरक्षित श्रेणी। इस काल में शासक शासितों के प्रति काफी लचीली नीति अपनाते थे।
  16. जिन्होंने इस्लाम धर्म कबूल किया उन्होंने सैद्धांतिक रूप से इसकी पाँच मुख्य बातें मानी।
    1. 'अल्लाह' एकमात्र ईश्वर हैं।
    2. पैगम्बर मोहम्मद उनके दूत (शाहद) हैं।
    3. खैरात (ज़कात) बाँटनी चाहिए।
    4. रमज़ान के महीने में रोज़ा रखना चाहिए।
    5. हज के लिए मक्का जाना चाहिए।
  17. चिश्ती संतों की दरगाहों में सबसे अधिक पूजनीय दरगाह-ख्वाजा मुईनुद्दीन की है- जिन्हें गरीब नवाज’ कहा जाता है। उनकी दरगाह अजमेर में है। इन्होने भारत में चिश्ती संप्रदाय (सिलसिला) की शुरुआत की। यह पीर (गुरु) मुरीद (शिष्य) परम्परा पर आधारित था। इसमें खानकाह (पीर के रहने के स्थान) का काफी महत्त्व था।
  18. कबीर की बानी तीन विशिष्ट परिपाटियों में संकलित है-
    1. कबीर बीजक
    2. कबीर ग्रंथावली
    3. आदि ग्रंथ साहिब
  19. मीरा बाई भक्ति परंपरा की सबसे सुप्रसिद्ध कवियत्री हैं। इनके गुरु संत रविदास नीची जाति से थे। गुजरात और राजस्थान के गरीब परिवार में मीरा प्रेरणा की स्रोत हैं।
  20. नाथ, जोगी सिद्ध जैसे धार्मिक नेता रुढ़िवादी ब्राह्मणीय सांचे के वहार थे इन्होने वेदों की सत्ता को चुनौती थी तथा अपने विचार आम लोगों की भाषा में लिखे।
  21. सैद्धांतिक रूप से मुसलमान शासकों को उलमा के मार्गदर्शन पर चलना होता था, तथा उनसे आशा की जाती थी वे शासन में शरियत के नियमों का पालन करवाएँगे।
  22. मलेच्छ- प्रवासी समुदाय के लिये था। यः वर्ण नियमों का पालन नहीं करते थे। संस्कृत से भिन्न भाषाएँ बोलते थे।
  23. बाशरा- शरियत को पसंद करने वाले सूफी थे। बेशरा-शरियत अवहेलना करने वाले सूफी थे।
  24. सिलसिला- इसका शाब्दिक अर्थ है- जंजीर जो शेख और मुरीद के बीच एक निरंतर रिश्ते की प्रतीक है।
  25. दरगाह- यह फारसी शब्द है जिसका अर्थ है दरबार।
  26. उर्स- विवाह जिसका अभिप्राय है- पीर की आत्मा का ईश्वर से मिलन।
  27. बे-शरिया- वे लोग जो शरिया या इस्लामी नियमों की अवहेलना करते हैं।
  28. बा-शरिया- वे लोग जो शरिया या इस्लामी नियमों को मानने वाले थे।
  29. खानकाह- सामाजिक जीवन का केन्द्र बिंदु था।
  30. वली (बहुवचन औलिया)- इसका अर्थ है ईश्वर का मित्र वह सूफ़ी जो अल्लाह के नजदीक होने का दावा करता था और उनसे हासिल बरकत से करामात करने की शक्ति रखता था।
  31. अमीर खुसरो (1253-1323)- शेख निज़ामुद्दीन औलिया के अनुयायी थे। वे एक महान कवि तथा संगीतज्ञ थे। उन्होंने कौल (अरबी शब्द जिसका अर्थ है कहावत) का प्रचलन किया।
  32. चिश्ती उपासना में जियारत (पवित्र दरगाह की तीर्थ यात्रा) और कव्वाली का विशेष महत्व था। इस मौके पर सूफी संत के आध्यात्मिक आशीर्वाद अर्थात् बरकत की कामना की जाती थी।
  33. बाबा गुरू नानक (1469-1539)- उन्होंने निर्गुण भक्ति का प्रचार किया तथा धर्म के सभी आडम्बरों को अस्वीकार किया। उन्होंने अपने विचार पंजाबी भाषा में शबद के जरिए रखे। बाबा गुरु नानक कभी भी एक अलग नवीन धर्म की संस्थापना नहीं करना चाहते थे।
  34. खालसा पंथ- पवित्रों की सेना, सिक्खों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने इसकी स्थापना की। इसके पाँच प्रतीक- बिना कटे कश, कृपाण, कच्छ, कंघा और लोहे का कड़ा।
  35. पंद्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में भक्ति परंपरा की सुप्रसिद्ध कवयित्री मीराबाई थी।

महत्वपूर्ण बिंदु-

1. धार्मिक विश्वासों और आचरणां की गंगा-जमुनी बनावट
साहित्य और मूर्तिकला में देवी देवता का दृष्टिकांत होना
आराधना की परिपाटी का विस्तृत होना

1.1 पूजा प्रणालियों का समन्वय
दो प्रक्रियाओं का कार्यरत होना
एक ब्राह्मणीय विचारधारा दूसरा ब्राह्मणों द्वारा, स्त्री, शूद्रों, सामाजिक वर्गों की भाषाओं को स्वीकार करना
मुख्य देवता को जगन्नाथ के एक स्वरूप में प्रस्तुत करना उदा. उड़ीसा में पुरी स्थानीय देवियों को मुख्य देवताओं की पत्नी के रूप में मान्यता

1.2 भेद और संघर्ष
देवी आराधना पद्धति को तांत्रिक नाम देना
वर्ग और वर्ण भेद की अवहेलना
वैदिक देव गांज होना पर प्रामाणिकता बने रहना
भक्ति रचनाएँ भक्ति उपासना के अंश होना

2. उपासना की कविताएँ
प्रारंभिक भक्ति परंपरा
भक्ति परंपरा में विविधता
भक्ति परंपरा के 2 वर्ग-सगुण और निर्गुण

2.1 तमिलनाडु के अलवार और नयनार संत
तमिल में विष्णु और शिवजी स्तुति
इष्ट का निवासस्थल घोषित करना

2.2 जाति के प्रति दृष्टिकोण
अस्पृश्य जातियों का द्वेष
अलवार और नयनार की रचनाओं के वेदों समान महत्व

2.3 स्त्रीभक्ति
स्त्रियों द्वारा पितृसत्तात्मक आदर्शों को चुनौती

2.4 राज्य के साथ संबंध
तमिल भक्ति रचनाओं बौद्ध और जैन धर्म के प्रति विरोध
विरोध का राजकीय अनुदान की प्रतिस्पर्द्धा
कांस्य माओं का ढालना
सुंदर रां का निर्माण
चोल सम्राटों की संत कवियों पर विशेष कृपा

3. कर्नाटक की वीर शैव परंपरा
नवीन आंदोलन का उदय
अनुयायी वीर शैव का लिंगायत कहलाए
लिंगायतों द्वारा पुनर्जन्म पर प्र-चिन्ह

4. उत्तरी भारत में धार्मिक उफान
उत्तर भारत में शिव और विष्णु की उपासना
उत्तर भारत के राजपूत राज्यों का उत्थान
धार्मिक नेताआं का रूढ़िवादी साँचे से बाहर होने के कारण दस्तकारी उत्पादन का विस्तार
तुर्कों का आगमन

5. दुशालं के नए ताने-बाने: इस्लामी परंपराएँ
711 ई. में मुहम्मद बिन कासिम अरब सेनापति द्वारा सिंध विजय सल्तनत की सीमा का प्रसार
16वीं शताब्दी में मुगल सल्तनत की स्थापना
मुसलमान शासकों द्वारा उलझा के मार्गदर्शन पर चलना

5.2 लोक प्रचलन में इस्लाम
इस्लाम के जाने के बाद परिवर्तनां का पूरे उपमहाद्वीप में प्रभाव
इस्लाम का सैद्धांतिक बातों पर बल देना
मालाबार तट पर बसने वाले मुसलमान व्यापारियों द्वारा स्थानीय आचारां का मानना

5.3 समुदायों के नाम
लोगों का वर्गीकरण जन्मस्थान के आधार पर
वर्ष नियमां का पालन न होना

6. सूफी मत का विकास
ईश्वर की भक्ति और उसके आदर्शों के पालन पर बल सूफियों द्वारा कुरान की व्याख्या निजी अनुभवों पर

6.1 खानगाह और सिलसिला
12वीं शताब्दी में सूफी सिलसिलों का गठन
पीर की मृत्यु के पश्चात् दरगाह भक्तिस्थल के रूप में

6.2 खानगाह के बाहर
रहस्यवादी फकीर का जीवन
शरियां की अवहेलना करने पर बे शरिया कहलाना

7. उपमहाद्वीप में चिश्ती सिलसिला

7.1 चिश्ती खानगाह में जीवन
स्थानीय परंपराओं को आत्मसात करना

7.2 चिश्ती उपासना: जियारत और कव्वाली
मुईनुद्दीन दरगाह में 14 बार आना
कव्वालों द्वारा रहस्यवादी गुणगान
चिश्ती उपासना पद्धति

7.3 भाषा और संपर्क
चिश्तियों द्वारा स्थानीय भाषा अपनाना
सूफी कविता का आरंभ

7.4 सूफी और राज्य
चिश्ती संप्रदाय द्वारा सादगी का जीवन
सूफ संतों की धर्मनिष्ठा विद्वता उनकी लोकप्रियता का कारण ऑलिया का मध्यस्थ होना

8. नवीन भक्ति पंथ
उत्तरी भारत में संवाद और असहमति

8.1 दैवीयवस्त्र की बुनाई: कबीर
कबीर बानी में तीन विशिष्ट परिपाटियों का संकलन
कबीर द्वारा परम सत्य का वर्णन
इस्लामी दर्शन के ईश्वरवाद को समर्थन हिंदुओं के बहु देववाद का खंडन
कबीर को भक्ति मार्ग दिखाने वाले गुरू रामानन्द

8.2 बाबा गुरूनानक और पवित्र शब्द
गुरूनानक द्वारा निर्णुण भक्ति का प्रचार
भगवान उपासना के लिए निरंतर स्मरण व नाम का जाप
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन

8.3 मीराबाई भक्तिमय राजकुमारा
भक्ति परंपरा का सुप्रसिद्ध कवियत्रा
मारा द्वारा जातिवादी सामाजिक रूढ़ियां का उल्लंघन

9. धार्मिक परंपराओं के इतिहासां का पुनर्निर्माण
विचारों, आस्थाओं और आचारां को समझना
धार्मिक परंपराओं का अन्य परंपराओं के अनुसार परिवर्तित होना