अपठित काव्यांश - अभ्यास प्रश्नोत्तर
CBSE कक्षा 11 हिंदी (केन्द्रिक)
अध्ययन सामग्री
अपठित पद्यांश
निम्नलिखित पद्यांशों को पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए- (05 अंक)
- हे ग्राम-देवता ! नमस्कार !
सोने-चाँदी से नहीं किंतु
तुमने मिट्टी से किया प्यार
हे ग्राम-देवता ! नमस्कार !
जन-कोलाहल से दूर
कहीं एकाकी सिमटा-सा निवास,
रवि-शशि का उतना नहीं
कि जितना प्राणों का होता प्रकाश,
श्रम-वैभव के बल पर करते हो
जड़ में चेतन का विकास
दानों-दानों से फूट रहे
सौ-सौ दानों के हरे हास
यह है न पसीनों की धारा
यह गंगा की है धवल धार
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !- कवि ने 'ग्राम देवता' किसे कहा है? (1)
- कवि ग्राम-देवता को नमस्कार क्यों करता है? (1)
- जड़ में चेतन का विकास करने का क्या आशय है? (1)
- कवि ने किसान के निवास स्थान को कहाँ और कैसा बताया है? (1)
- किसान के पसीने को 'गंगा की धवल धार' क्यों कहा गया है? (1)
- थूके, मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके,
जो कोई जो कह सके, कहे, क्यों चूके?
छीने न मातृपद किंतु भरत का मुझसे,
हे राम, दुहाई करूँ और क्या तुझसे?
कहते आते थे, यही सभी नरदेही,
माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही।
अब कहें सभी यह हाय ! विरुद्ध विधाता,
है पुत्र ! पुत्र ही, रहे कुमाता माता।- पहली पंक्ति में कैकेयी ने ऐसा क्यों कहा -मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके? (1)
- कैकेयी राम से क्या प्रार्थना कर रही है? (1)
- माता और पुत्र के संबंध में क्या उक्ति चली आ रही है? (1)
- यह उक्ति क्यों प्रसिद्ध है? (1)
- कैकेयी के अनुसार इस लोक प्रसिद्ध उक्ति में क्या परिवर्तन आया है तथा क्यों? (1)
- जिन्दगी को मुस्करा के काट दीजिए,
कष्ट लाख हों मगर न व्यक्त कीजिए।
तनाव के क्षणों को, लगाम दीजिए
हँसी है दवा मधुर का पान कीजिए।
हँस-हँस तनाव को, उखाड़ फेंकिए
लाख-लाख रोगों की एक है दवा
मुस्करा के जीने का, और है मज़ा
चेहरे पर गम की न रेख लाइए।
मुस्करा के बढ़ने, की बात कीजिए।- किसको लगाम देने की बात कही गई है? (1)
- किसको दवा कहा गया है और उसके पान की बात कवि ने क्यों की? (1)
- चेहरे पर क्या न लाने की बात कही गई है? (1)
- लाख-लाख रोगों की दवा किसे कहा गया है? (1)
- उपर्युक्त पद्यांश का प्रतिपाद्य लिखिए। (1)
- आसरा मत ऊपर का देख
सहारा मत नीचे का माँग,
यही क्या कम तुझको वरदान
कि तेरे अन्तस्तल में राग;
राग से बाँधे चल आकाश
राग से बाँधे चल पाताल,
धँसा चल अन्धकार को भेद
राग से साधे अपनी चाल।- किस वरदान की बात की गई है? (1)
- राग से कवि का क्या आशय है? (1)
- किस आश्रय पर निर्भर न रहने की बात कही गई है? (1)
- किससे सहारा न माँगने की बात कही गई है? (1)
- कविता का संदेश स्पष्ट करें। (1)
- मैंने अपना दुख-दर्द, तुमसे नहीं,
लेखनी से कहा था;
अगर उसने तुम तक नहीं पहुँचाया
तो मैं तुम्हें दोष नहीं देता।
मैंने अपना दुख-दर्द, तुमसे नहीं,
काग़ज़ से कहा था;
अगर तुमने मुझे नहीं समझा
तो मैं तुम्हें दोष नहीं देता।
मैंने अपना दुख-दर्द, तुमसे नहीं,
शब्दों से कहा था;
अगर तुमने मुझे संवेदना नहीं दी
तो मैं तुम्हें दोष नहीं देता।
मैंने अपना दुख-दर्द, तुमसे नहीं,
काली रातों से कहा था,
गूँगे सितारों से कहा था,
सूने आसमानों से कहा था;
अगर उनकी प्रतिध्वनि
तुम्हारे अन्तर से नहीं हुई
तो मैं तुम्हें दोष नहीं देता।
राग से साधे अपनी चाल।- कवि ने अपने दुख-दर्द का वर्णन किनके-किनके समक्ष किया है? (1)
- कवि को संवेदना किसने नहीं दी? (1)
- सितारों को गूँगा क्यों कहा गया है? (1)
- 'सूने आसमान' का अभिप्राय स्पष्ट करें। (1)
- 'उनकी प्रतिध्वनि' के माध्यम से कवि ने क्या इंगित किया है? (1)
- इस भू की पुत्री के कारण भस्म हुई लंका सारी,
सुई नोंक भर भू के पीछे, हुआ महाभारत भारी।
पानी-सा बह उठा लहू था, पानीपत के प्रांगण में,
बिछा दिए पुरयण से शव में, इसी तरायण के रण में।
शीश चढ़ाया काट गर्दनें या अरि गरदन काटी है,
खून दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है।- लंका के भस्म होने का कारण क्या था? (1)
- महाभारत के पीछे का कारण स्पष्ट करें। (1)
- 'पानी-सा बह उठा लहू था'-अभिप्राय स्पष्ट करें। (1)
- हमने देश की माटी को कभी किसी को क्यों नहीं दिया? (1)
- पुरयण और तरायण का अर्थ स्पष्ट करें। (1)
नोट:- पुरयण - कमल का पत्ता प्रतीकार्थ ढेर अथवा समूह
तरायण - तराइन का युद्ध