अंतरा - रामविलास शर्मा - पुनरावृति नोट्स

 CBSE Class 12 हिंदी ऐच्छिक

पुनरावृति नोट्स
पाठ-19 यथास्मै रोचते विश्वम्


पाठ परिचय
लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से की है। उसने कवि को प्रजापति के समान सृष्टा सिद्ध् किया है। लेखक ने प्रजापति का दर्जा देते हुए कवि को उसके कार्यो के प्रति सचेत किया है। साहित्य समाज का दर्पण मात्रा नही है। कवि का कार्य समाज के यथार्थ जीवन को मात्रा प्रतिबिंबित करना नही है। कवि अपनी रूचि के अनुसार अपनी रचनाओं में संसार की रचना करता है। प्रजापति द्वारा निर्मित सृष्टि से असंतुष्ट होकर कवि नए समाज का निर्मा ण करता है। यह कवि का जन्म सिद्ध् अध्किार है ।
स्मरणीय बिन्दु

  • कवि की सृष्टि निराधर नही होती। वह अपने सारे रंग आकार और रेखाएँ चारों और बिखरे यथार्थ जीवन से ही ग्रहण करता है। अपनी साहित्य रचना के लिए सामग्री कवि अपने चारों और के परिवेश से ही ग्रहण करता है। उज्ज्वल चरित्रा को उज्ज्वल और अध्कि प्रभावशाली दिखाने के लिए लेखक यथार्थ जीवन से दुश्चरित्रा भी चुनता है। रावण के होने से ही राम की महत्ता है। कवि सद्गुण सम्पन्न पात्रों साथ दुर्गणयुक्त पात्रों का भी वर्णन करता है।
  • बाल्मीकि ने दुर्लभ गुणों से युक्त राम के चरित्रा का वर्णन किया था। दुर्लभ गुणों को एक ही पात्रा में दिखाने के पीछे कवि का एक ही उद्देश्य होता है- समाज के सम्मुख एक आदर्श प्रस्तुत करना, जिससें लोग प्रेरणा ले सकें।
  • प्रजापति रूपी कवि यथार्थवादी होता है। वह समाज में लोगों के सुख-दुख, आशा-निराशा दोनों पक्षों को सुनता है, उसे महसूस करता है तथा उसे अपने साहित्य में अंकित भी करता है। उसकी रचनाओं में वर्तमान समाज का ठोस आधर होता है परन्तु उसका ध्यान भविष्य के नव-निर्माण पर लगा होता है। साहित्य थके हुए व्यक्ति के लिए विश्रांति का माध्यम ही नहीं है बल्कि उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी करता है।
  • यदि ब्रह्मा द्वारा बनाए गए समाज में मानव सम्बन्ध् कवि की रूचि एवं आदर्शो के अनुरूप होते तो उसे अपनी रचनाओं में एक नया संसार रचने की आवश्यकता ही नहीं होती। कवि के असंतोष की जड़ ये मानव संबंध् ही है। साहित्य की रचना का मूल ये मानव संबंध् ही है। कवि के मन-मस्तिष्क में मानव संबंधे की भावना इतनी प्रबल होती है कि वह अपनी रचनाओं में ईश्वर को भी मानवीय रूप में चित्रित करता है।
  • ऐसे समय में जब अध्किांश लोगों का जीवन समाज की रूढ़ियों के बंध्न में जकड़ा हुआ हो, वे इन बंध्नों से दुखी हो तथा मुक्ति के प्रयास कर रहे हो तब कवि का प्रजापति रूप मुखरित हो उठता है। कवि मानव रूपी पक्षी की अशांत आवाज़ को स्वर देता है। वह स्वतंत्राता के गीत गाकर जनता में शासक वर्ग के प्रति आक्रोश भरता है। वह स्वतन्त्राता के लिए प्रेरित कर उस पक्षी के परों में नई शक्ति भर देता है। इसे भय से मुक्त होने तथा स्वतंत्राता के लिए प्रयास करने की प्रेरणा देता है।
  • यह जीवन संघर्ष का मैदान है। इसमें व्यक्ति को निरन्तर संघर्षशील रहना पड़ता है। जिस प्रकार महाभारत के युद्ध में कृष्ण ने पाञ्चजन्य नामक शंख बजाकर अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित किया था, उसी प्रकार साहित्यकार लोगों को कर्मक्षेत्रा में संघर्ष के लिए प्रेरित करता है। वह लोगों में उदासीनता नहीं, उत्साह का स्वर बुलंद करता है। वह इस बात से बिल्कुल सहमत नहीं कि मनुष्य अत्याचार सहते हुए, कष्ट सहते हुए, भाग्य के भरोसे रहे। साहित्य तो ऐसी प्रेरणा देने वालो की निंदा करता है, उन्हें हतोत्साहित करता है।
  • आज भी मानवीय-संबंधें की दृष्टि से भारत पराधीन है। भारतीय जनमानस स्वतंत्रा होने के लिए व्याकुल है इसके लिए वह सतत् प्रयास कर रहा है। ध्क्किार है उन साहित्यकारों को जो उन्हें रूढ़ियों से मुक्त नहीं करता। वे साहित्य में तो मानवमुक्ति के गीत गाते है किन्तु व्यवहार में भारतीय जनता को गुलामी का पाठ पढ़ाते है। ऐसे साहित्यकारों को ध्क्किार है जो भारतभूमि से उत्पन्न होकर भी उसका अहित कर रहे है।
  • भारतीय लोगों को गुलामी का पाठ पढ़ाने वाले ये साहित्यकार दूरदर्शी नहीं हैं। जिन साहित्यकारों को भारतभूमि से प्यार है, वे साहित्य के युग परिवर्तन की भूमिका से अवगत हैं, वे साहित्य के माध्यम से जनता का सही दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।