दुष्यंत कुमार - पुनरावृति नोट्स

 कक्षा 11 हिंदी कोर

पुनरावृति नोट्स
पाठ - 07  गज़ल


कविता का सारांश - ‘साये में धूप’ गज़ल संग्रह से यह गज़ल ली गई है | गज़ल का कोई शीर्षक नही दिया जाता, अत: यहाँ भी उसे शीर्षक न देकर केवल गज़ल ख दिया गया है |

गज़ल एक ऐसी विधा है जिसमें सभी शेर स्वयं में पूर्ण तथा स्वतंत्र होते है | उन्हें किसी क्रम-व्यवस्था के तहत पढ़े जाने की दरकार नही रहती | इसके बावजूद दो चीजें ऐसी है जो उन शेरों को आपस में गूँथकर एक रचना की शक्ल देती है – एक, रूप के स्तर पर तुक का निर्वाह और दो, अंतर्वस्तु के स्तर पर मिज़ाज का निर्वाह | इस गज़ल में पहले शेर की दोनों पंक्तियों का तुक मिलता है और उसके बाद सभी शेरों की दूसरी पंक्ति में उसक तुक का निर्वाह होता है | इस गज़ल में राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा है, उसे ख़ारिज करने और विकल्प की तलाश को मान्यता देने का भाव प्रमुख बिंदु है |

कवि राजनीतिज्ञों के झूठे वायदों पर व्यंग्य करता है कि वे हर घर में चिराग उपलब्ध करने का वायदा करते है, परंतु यहाँ तो पूरे शहर में भी एक चिराग नही है | कवि को पेड़ों के साये में धूप लगती अर्थात आश्रयदाताओं के यहाँ भी कष्ट मिलते है | अत: वह हमेशा के लिए उन्हें छोड़कर जाना ठीक समझता है | वह उन लोगो के जिंदगी के सफर को आसान बताता है जो परिस्थिति के अनुसार स्वयं को बदल लेते है | मनुष्य को कूड़ा न मिले तो कोई बात नही, उसे अपना सपना नही छोड़ना चाहिए | थोड़े समय के लिए ही सही, हसीन सपना तो देखने को मिलता है | कुछ लोगो का विश्वास है कि पत्थर पिघल नही सकते | कवि आवाज के असर को देखने के लिए बेचैन है | शासक शायर की आवाज को दबाने की कोशिश करता है, क्योकिं वह उसकी सत्ता को चुनौती देता है | कवि किसी दुसरे के आश्रय में रहने के स्थान पर अपने घर में जीना चाहता है |