अंतरा - ममता कालिया - पुनरावृति नोट्स

 CBSE Class 12 हिंदी ऐच्छिक

पुनरावृति नोट्स
पाठ-20 दूसरा देवदास


पाठ-परिचय
‘दूसरा देवदास’ कहानी ममता कालिया द्वारा रचित युवामन की संवेदना, भावना, विचारगत उथल-पुथल को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती है। यह कहानी युवा हृदय में पहली आकस्मिक मुलाकात की हलचल, कल्पना और रूमानियत का उदाहरण है। इस कहानी में लेखिका ने स्पष्ट किया है कि प्रेम के लिए किसी निश्चित व्यक्ति, समय और स्थिति का होना आवश्यक नहीं है। वह कभी भी, कहीं भी, किसी भी समय हो सकता है। लेखिका ने प्रेम को पवित्रा और स्थायी स्वरूप का चित्राण किया है।
स्मरणीय बिन्दु

  • संध्या के समय हर की पौड़ी पर होने वाली गंगाजी की आरती का दृश्य अत्यंत मनोहरी होता है। हर की पौड़ी पर भक्तों की भीड़ जमा होती है। फूलों के दोने इस समय एक रूपये के बदले दो रूपये के हो जाते है। भक्तों को इससे कोई शिकायत नहीं होती। आरती के समय सहस्र दीप जल उठते है। पंडित अपने आसान से उठ खड़े हो जाते है और हाथ में अंगोछा लपेट कर पांच मंजिली नीलाजंलि को पकड़ते है और आरती शुरू होती है। घंटे-घड़ियाल बजते है। लोग अपनी मनौतियों के दिये लिए हुए फूलों की छोटी-छोटी किश्तियाँ गंगा की लहरों पर तैते है। गंगा पुत्रा दोने में रखा पैसा मुँह से उठा लेता है।
  • गंगापुत्रा उन गोताखोरों को कहते हैं जो गंगा घाट पर हर समय तैनात रहते है। यदि कोई गंगा में डूबने लगता है तो ये उसे बचा लेते है। इनकी जीविका का साध्न लोगों द्वारा अर्पित किया जाने वाला पैसा है। लोग फूल के दोने में पैसे भी रखते है। लोग मनौतियों के साथ अपना दोना गंगा की लहरों पर तैरा देता है। तब गंगापुत्रा दोने में से पैसे उठाकर अपने मुँह में रख लेता है। उनका पूरा जीवन गंगा घाट पर ही बीत जाता है। गंगा मैया ही उनका जीवन और आजीविका है। वह बीस-बीस चक्कर लगाकर मुँह भर रेज गारी बटोरता है और बीवी या बहन रेजगारी बेचकर नोट कमाती है।
  • संभव यहाँ अपनी नानी के पास आया था। उसने इसी साल एम. ए. पूरा किया था तथा सिविल सर्विसेज प्रतियोगिताओं में बैठने वाला था। माता-पिता की आज्ञानुसार वह हरिद्वार गंगा के दर्शन करने आया था ताकि बेखटके सिविल सेवा में चुन लिया जाए। बहुत देर तक स्नान करने के बाद वह पानी से बाहर आया और पंडे ने उसके माथे पर चंदन तिलक लगाया। जब पुजारी उसकी कलाई-पर कलावा बाँध् रहा था तो उसी क्षण एक और दुबली नाजुक सी कलाई पुजारी की तरपफ बढ़ आई। पुजारी ने उस पर कलावा बाँध् दिया। उस हाथ ने थाली में सवा पाँच रूपए रखे। यह एक लड़की का हाथ था। लड़की को देखकर संभव उसकी और आकर्षित हो गया। जब लड़की ने यह कहा कि अब तो आरती हो चुकी। अब हम कल आरती की बेला आएँगे। तब पुजारी ने लड़की के ‘हम’ को युगल अर्थ में लेकर आर्शीवाद दिया कि सुखी रहो, फूलों-फलों, जब भी आओ, साथ ही आना, गंगा मैया मनोरथ पूरे करें।’ यह सुनकर लड़की और लड़के को अटपटा लगा। लड़की छिटककर दूर खड़ी हो गई। इसका कारण यह था कि लड़की और लड़का एक दूसरे से अनजान थे और पुजारी ने गलत समझ लिया था कि ये दोनों पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका हैं। पुजारी की इस गलतपफहमी के कारण ही वे दोनों एक दूसरे से छिटककर दूर खड़े हो गए।
  • उस अनजान लड़की के साथ छोटी सी मुलाकात ने संभव के मन का चैन छीन लिया। वह खाना-पीना तक भूल गया। संभव उन गलियों की ओर चल दिया जिध्र वह लड़की गई थी। संभव उसे अपने मन की बात बता देना चाहता था। उसे रात को ठीक से नींद तक नहीं आई। उसकी आँखो में उस लड़की की छवि बसी हुई थी। वह उन प्रश्नों के बारे में सोच रहा था जिन्हें वह उसके मिलने पर करने वाला था। संभव के जीवन में आने वाली यह पहली लड़की थी।
  • संभव ने जब मंसा देवी के मंदिर में प्रवेश किया था तब सभी लोग अपनी-अपनी मनोकामना पूरी करने हेतु लाल-पीला धगा लेकर गिठान बाँध् रहे थे। संभव ने भी धगा लेकर गिठान बाँधी थी और उसे बाँध्ते समय पारो के विषय में सोचा था कि कितना अच्छा हो कि उसका मेल पारो से हो जाए। अभी कुछ क्षण ही बीते थे कि उसकी भेंट पारों से हो गई। उसने जैसा चाहा था वैसा ही हुआ।
  • पारो के मन की दशा बड़ी विचित्रा हो रही थी। वह सोच रही थी कि यह कैसा संयोग है, इतनी भीड़ होने पर भी जिससे मुलाकात हुई थी, उससे आज भी मुलाकात हो गई। पारों का संभव से इस प्रकार मिलना उसके अंदर गुदगुदी सी पैदा कर रहा था। पारो को लगता है कि यह मनोकामना की गाँठ भी कितनी अनूठी है, कितनी आश्चर्यजनक है! अभी बाँधे अभी फल की प्राप्ति कर लो। वह फूली न समाती थी। वह स्वयं को भाग्यशाली समझ रही थी क्योंकि देवी माँ ने उसकी मनोकामना इतनी जल्दी पूरी कर दी थी।
  • संभव मन मे पारो से मिलन की मनोकामना पाले हुए था। उसे इस मिलन की आशा तो थी, पर उसकी मनोकामना इतनी जल्दी पूरी होगी, यह निश्चित नहीं था। जब उसने अचानक प्रकट हुई पारो को देखा तो उसने यही सोचा - ‘हे ईश्वर! मैंने कब सोचा था कि मनोकामनाा का मौन उद्गार इतनी शीघ्र शुभ परिणाम दिखाएगा। यह शुभ परिणाम बहुत ही शीघ्र दिखाई दे भी गया। पारो से उसकी भेंट किसी चमत्कार से कम नहीं थी। उसे उम्मीद से बढ़कर मनोकामना का फल जब प्राप्त हुआ।
  • ‘दूसरा देवदास’ शीर्षक पात्रा पर आधरित है। देवदास प्रेम-कहानी का प्रमुख अर्थात् नायक है। यद्यपि इस कहानी में उसका नाम संभव है, पर पारों नाम दोनों में है। वैसे यहाँ देव दास शब्द को प्रतीकात्मक रूप में लिया। प्रायः दे वदास उसे कहा जाता है जो अपनी प्रेमिका को पागलपन की हद तक प्यार करता है। संभव भी पारों को पाने के लिए हर संभव प्रयास करता है। अतः इस कहानी का शीर्षक दूसरा देवदास ठीक ही हैं। यह सार्थक है।