भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ-पुनरावृति नोट्स

                                                                    सीबीएसई कक्षा - 11

विषय - भूगोल
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ


महत्त्वपूर्ण तथ्य-

  • धरातल पर दिखायी देने वाली समस्त भू आकृतियाँ दो प्रकार के बलों से बनी होती है: i. वहिर्जनित बल एवं ii. अंतर्जनित बल से। अंतर्जनित शक्तियां धरातल को उठाती रहती है और बाहयशक्तियां लगातार उन्हें समतल करती रहती है।
  • इस अध्याय में हम विशेष रूप से बाहृय प्रक्रियाओ जैसे आनाच्छादन, अपरदन वृहत संचलन आदि का अध्ययन करेंगे।
  1. स्थलाकृतियों का स्वरूप हमेशा एक जैसा नहीं रहता है। उनका रूप लगातार परिवर्तित रहता है। स्थलाकृतियों के स्वरूप के परिवर्तन में कुछ शक्तियाँ लगी हैं। इन शक्तियों को दो वर्गों में  विभाजित गया है-आंतरिक शक्तियाँ तथा बाह्य शक्तियाँ।

 

  1. जो बल पृथ्वी के आंतरिक भाग में घटित होते है, उन्हें अंतर्जनित प्रक्रिया कहते है।
  2. जो बल पृथ्वी की सतह पर उतपन्न होते है, उन्हें भिरजनिक प्रक्रिया कहते है।
  3. धरातलीय शैलों का विघटन मुख्य रूप से मौसम के तत्वों के प्रभाव का ही परिणाम है। तापमान, वर्षा, पाला, कोहरा और बर्फ मौसम के प्रमुख तत्व हैं। धरातल की शैलें जैसे ही मौसम के तत्वों के संपर्क में आती हैं, वैसे ही उनका अपक्षय प्रारंभ हो जाता है।
  4.  पृथ्वी की सतह पर शेलो के टूटने से अपक्षय की क्रिया होती है।
  5. विघटन तापमान में परिवर्तन और पाले के प्रभाव से होता है। इस प्रक्रिया में शैलें टुकड़ों में बिखर जाती हैं। अपघटन की प्रक्रिया में शैलों के अंदर रासायनिक परिवर्तन होते हैं।
  6. अपक्षय तीन प्रकार के होते हैं-
    1. भौतिक अपक्षय
    2. रासायनिक अपक्षय
    3. जैविक अपक्षय।
  7. शैलें सामान्यतः ताप की कुचालक होती हैं। अधिक गर्मी के कारण शैलों की बाहरी परतें जल्दी से फैल जाती हैं। लेकिन भीतरी परतें गर्मी से लगभग अप्रभावित रहती हैं। क्रमिक रूप से फैलने और सिकुड़ने से शैलों की बाहरी परतें शैल के मुख्य भाग से अलग हो जाती हैं। इस प्रक्रिया में शैलों की परतें, प्याज के छिलकों की तरह उतरती चली जाती हैं, इसे अपशल्कन की प्रक्रिया कहते हैं।
  8. ऑक्सीकरण की प्रक्रिया का सबसे ज़्यादा प्रभाव लौह खनिज पर देखा जाता है। आद्र वायु में स्थित ऑक्सीजन शैलों के लौह कणों को सबसे ज़्यादा प्रभावित करता है। इससे लोहे के पीले या लाल ऑक्साइड बन जाते हैं। इसे लोहे पर जंग लगना कहते हैं।
  9. जलयोजन की प्रक्रिया से शैलों के खनिजों में जल अवशोषित हो जाता है। जल के अवशोषण से शैलों का आयतन बढ़ जाता है और उनके कणों की आकृति समाप्त हो जाती है। उदाहरण , जलयोजन के द्वारा फेल्सपार नाम के खनिज केओलिन मृदा में बदल जाते हैं।
  10. कार्बोनेटीकरण प्रक्रिया से अनेक प्रकार के कार्बोनेट बनते हैं। इनमें से कुछ पानी में घुलनशील होते हैं। उदाहरण, जब कार्बन डाइऑक्साइडयुक्त वर्षा का जल चूने की प्रवेश्य शैलों से होकर गुजरता है तो शैलों के जोड़ कार्बोनिक अम्ल की क्रिया से चौड़े हो जाते हैं।
  11. जब ऑक्सीकृत खनिज ऐसे वातावरण में रखे जाते हैं, जहाँ ऑक्सीजन का अभाव है तो एक दूसरी रासायनिक अपक्षय प्रक्रिया शुरू हो जाती है। ऐसी दशाएँ प्रायः भौमजल स्तर के नीचे, रुद्ध जल के या जलप्लावित क्षेत्रों में पाई जाती है। न्यूनीकृत होने पर लौह का लाल रंग, हरे या आसमानी धूसर रंग में परिवर्तित हो जाता है।
  12. वृहत संचलन के द्वारा वे सभी संचलन आते हैं, जिनमें शैलों का वृहत मलबा गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव की वजह से ढाल के अनुरूप स्थानांतरित होता है। इसका अभिप्राय यह है कि वायु, जल, हिम ही अपने साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक मलबा नहीं ढोते अपितु मलबा भी अपने साथ वायु, जल या हिम ले जाते हैं।
  13. हमारे देश में मलबा के भूस्खलन हिमालय में प्रायः घटित होते हैं। इसकी विभिन्न वजह हैं, सबसे महत्वपूर्ण वजह हिमालय का विवतनिक दृष्टिकोण से सक्रिय होना है।