फणीश्वर नाथ रेणु - पुनरावृति नोट्स

 सीबीएसई कक्षा - 12 हिंदी कोर आरोह

पाठ – 14
पहलवान की ढोलक


पाठ के सार - पाठ का सारांश- आंचलिक कथाकार फ़णीश्वरनाथ रेणु की कहानी पहलवान को ढोलक में कहानी के मुख्य पात्र लुट्टन के माता-पिता का देहांत उसके बचपन में ही हो गया था। अनाथ लुट्टन को उसकी विधवा सास ने पाल-पोसकर बड़ा किया। उसकी सास को गाँव वाले सताते थे। लोगों से बदला लेने के लिए कुश्ती के दाँवपेंच सीखकर कसरत करके लुट्टन पहलवान बन गया।

एक बार लुट्टन श्यामनगर मेला देखने गया जहाँ ढोल की आवाज और कुश्ती के दाँवपेंच देखकर उसने जोश में आकर नामी पहलवान चाँदसिंह को चुनौती दे दी। ढोल की आवाज से प्रेरणा पाकर लुट्टन ने दाँव लगाकर चाँद सिंह को पटककर हरा दिया और राज पहलवान बन गया। उसकी ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल गयी। 15 वर्षों तक पहलवान अजेय बना रहा। उसके दो पुत्र थे। लुट्टन ने दोनों बेटों को भी पहलवानी के गुर सिखाए राजा की मृत्यु के बाद नए राजकुमार ने गद्दी संभाली। राजकुमार को घोड़ों की रेस का शौक था। मैनेजर ने नये राजा को भड़काया, पहलवान और उसके दोनों बेटों के भोजनखर्च को भयानक और फ़िजूलखर्च बताया, फ़लस्वरूप नए राजा ने कुश्ती को बंद करवा दिया और पहलवान लुट्टनसिंह को उसके दोनों बेटों के साथ महल से निकाल दिया।

राजदरबार से निकाल दिए जाने के बाद लुट्टन सिंह अपने दोनों बेटों के साथ गाँव में झोपड़ी बनाकर रहने लगा और गाँव के लड़कों को कुश्ती सिखाने लगा। लुट्टन का स्कूल ज्यादा दिन नहीं चला और जीविकोपार्जन के लिए उसके दोनों बेटों को मजदूरी करनी पड़ी। इसी दौरान गाँव में अकाल और महामारी के कारण प्रतिदिन लाशें उठने लगी। पहलवान महामारी से डरे हुए लोगों को ढोलक बजाकर बीमारी से लड़ने की संजीवनी ताकत देता था। एक दिन पहलवान के दोनों बेटे भी महामारी की चपेट में आकर मर गए पर उस रात भी पहलवान दोलक बजाकर लोगों को हिम्मत बंधा रहा था | इस घटना के चार-पाँच दिन बाद पहलवान की भी मौत हो जाती है।

पहलवान की ढोलक, व्यवस्था के बदलने के साथ लोक कलाकार के अप्रासंगिक हो जाने की कहानी है। इस कहानी में लुट्टन नाम के पहलवान की हिम्मत और जिजीविषा का वर्णन किया गया है। भूख और महामारी, अजेय लुट्टन की पहलवानी को फ़टे ढोल में बदल देते हैं। इस करुण त्रासदी में पहलवान लुट्टन कई सवाल छोड़ जाता है कि कला का कोई स्वतंत्र अस्तित्व है या कला केवल व्यवस्था की मोहताज है?