शमशेर बहादुर सिंह - पुनरावृति नोट्स

 सीबीएसई कक्षा - 12 हिंदी कोर आरोह

पाठ – 06
उषा


पाठ के सार:-

उषा कविता में सूर्योदय के समय आकाश मंडल में रंगों के जादू का सुन्दर वर्णन किया गया है। सूर्योदय के पूर्व प्रातःकालीन आकाश नीले शंख की तरह बहुत नीला होता है। भोरकालीन नभ की तुलना काली सिल से की गयी है जिसे अभी-अभी केसर पीसकर धो दिया गया है। कभी कवि को वह राख से लीपे चौके के समान लगता है, जो अभी गीला पड़ा है। नीले गगन में सूर्य की पहली किरण ऐसी दिखाई देती है मानो कोई सुंदरी नीले जल में नहा रही हो और उसका गोरा शरीर जल की लहरों के साथ झिलमिला रहा हों।

प्रातःकालीन, परिवर्तनशील सौदर्य का दृश्य बिंब, प्राकृतिक परिवर्तनों को मानवीय क्रियाकलापो के माध्यम से व्यक्त किया गया है। यथार्थ जीवन से चुने गए उपमानों जैसे:- राख से लीपा चौका, काली सिल, नीला शंख, स्लेट, लाल खड़िया चाक आदि का प्रयोग। प्रसाद की कृति -बीती विभावरी जाग री से तुलना की जा सकती है।