निजी सार्वजनिक एवं भूमंडलीय उपक्रम-पुनरावृति नोट्स

                                                                                   CBSE कक्षा 11 व्यवसाय अध्ययन

पाठ-3 निजी, सार्वजनिक एवं भूमंडलीय उपक्रम
पुनरावृति नोट्स


भारतीय अर्थव्यस्था में निजी स्वामित्व एवं सरकारी स्वामित्व वाले दोनों ही प्रक्रम के व्यावसायिक उद्यम होते हैं इसीलिए इसे मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है।

निजी क्षेत्र के उद्यम
इसमें व्यवसाय का स्वामी एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह होता है जिनका मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना एवं व्यवसाय का विकास करना होता है। उदाहरण के लिए रिलाईन्स लिमिटेड, ITC लिमिटेड, HDFC बैंक लिमिटेड आदि ।

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम
इनमें व्यवसाय का स्वामित्व, प्रबंध एवं नियंत्रण केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा अलग-अलग अथवा संयुक्त रूप से किया जाता है। उदाहरण के लिए भारतीय रेलवे भारतीय डाक, दूरदर्शन, भारत हैवी इलेक्ट्रिकाल लिमिटेड (BHEL) आदि। इनका मुख्य उद्देश्य जन-कल्याण अथवा सेवा होता है।



सार्वजनिक क्षेत्र को उपक्रमो को प्रारुप

विभागीय उपक्रम
इसमें उपक्रम को किसी मंत्रालय के एक विभाग के रूप में स्थापित किया जाता है। इसका वित्त प्रबंध, प्रशासन तथा नियंत्रण केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार अथवा दोनों के द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।
भारतीय रेलवे, डाक तथा तार दूरदर्शन प्रसार भारती इसके उदाहरण हैं।

लक्षण

  1. यह केन्द्रीय अथवा राज्य सरकार के मंत्रालक के विभाग के रूप में गठित किया जाता |
  2. इसका कोई पृथक अस्तित्व नहीं होता है।
  3. इसकी वित्त व्यवस्था सरकार के वार्षिक बजट से की जाती है व इसकी आय सरकारी खजाने में जमा होती है।
  4. इन पर अंकेक्षण एवं लेखांकन संबंधित सरकारी नियम लागू होते हैं।
  5. इसके कर्मचारी, सरकारी कर्मचारी होते हैं जिनकी भर्ती तथा नियुक्ति नियम लागू होते हैं।
  6. यह अपने कार्य के लिए संबंधित मंत्रालय को जवाबदेह होते हैं।

विभागीय उपक्रय के गुण-लाभ

  1. सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में होने के कारण, यह सरकार द्वारा निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति करने में अधिक सक्षम हैं।
  2. इनकी आय सरकारी खजाने में जाती है। इसलिए यह सरकार की आय का एक स्रोत हैं।
  3. ये अपने सभी कार्यों के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं जिससे कोषों का सही उपयोग सुनिश्चित हो पाता है।
  4. बजट, लेखा तथा अंकेक्षण-नियंत्रणों के कारण इसमें सार्वजनिक धन के दुरूपयों का जोखिम कम होता है।
  5. यह उन उपक्रमों के लिए महत्वपूर्ण हैं जिनमें अत्याधिक एवं सख्त नियंत्रण गोपनीयता की आवश्यकता होती हैं। जैसे- रक्षा उत्पादन ।

विभागीय उपक्रम की सीमाएं

  1. इस उपक्रम में लचीलेपन की कमी होती है जो कि एक व्यवसाय को सुगमतापूर्वक चलाने के लिए अति आवश्यक है।
  2. उपक्रम के दिन प्रतिदिन के कार्य में राजनीतिक हस्तक्षेप होता है।
  3. दिन प्रतिदिन के काम में अत्यधिक लाल-फीताशाही का बोल-बाला होता है तथा उचित प्रक्रिया के पूरे होने पर कोई कार्यवाही की जा सकती है।
  4. प्रतियोगिता के अभाव तथा एकाधिकार होने के कारण यह प्रायः ग्राहकों की आवश्यकताओं के प्रति उदासीन होते हैं।
  5. इनका प्रबन्ध सरकारी अधिकारियों के द्वारा किया जाता है जो कि प्रबन्ध के क्षेत्र में निपुण तथा अनुभवी नहीं होते ।

उपयुक्तता
विभागीय उपक्रमत निम्न स्थितियों में उपयुक्त हैं।

  1. जहाँ पूर्ण सरकारी नियंत्रण आवश्यक है।
  2. जहाँ गोपनीयता अति आवश्यक हो | जैसे - रक्षा उद्योग

वैधानिक निगम

इसकी स्थापना संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किए गए विशेष अधिनियम के अंतर्गत की जाती है। अधिनियम में ही इसके उद्देश्यों, कार्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाता है।
उदाहरण - भारतीय जीवन बीमा निगम (एल. आई. सी.) भारतीय यूनिट ट्रस्ट (यूटी आई) बास गेल (Gail) SCI, FCI

लक्षण :-

  1.  इसका निर्माण विशेष अधिनियम के अंतर्गत किया जाता है, जिसमें उपक्रमों के उद्देश्यों, कार्यों व अधिकारों का वर्णन भी होता है।
  2. इसका एक पृथक वैधानिक अस्तित्व होता है।
  3. निगम का प्रबंध सरकार द्वारा नियुक्त मंडल के हाथों में होता है। दिन-प्रतिदिन के कार्य में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता।
  4. इनके कर्मचारियों की भर्ती व चुनाव अधिनियम में दिए गए प्रावधानों के अनुसार होता है।
  5. इसकी प्रारंभिक पूंजी सरकार के द्वारा प्रदान की जाती है। इसके अलावा यह अपनी वित्त की व्यवस्था स्वयं पूरा करते हैं। यह सरकार से ऋण लेकर अथवा अपनी वस्तुओं और सेवाओं को जनता को बेचकर धन जुटाते हैं।
  6. इन पर सरकारी विभागों के लेखांकन एवं अंकेक्षण की प्रक्रिया लागू नहीं होती |

लाभ

  1. आतरिक स्वतंत्रता - इन्हें दिन-प्रतिदिन के कार्यों में आंतरिक स्वतंत्रता होती है तथा ये राजनीतिक हस्तक्षेप से भी स्वतंत्र होते हैं।
  2. शीघ्र निर्णय - ये निर्णय एवं कार्य शीघ्रता से कर सकते हैं क्योंकि ये निगम लाल फीता शाही से स्वतंत्र होते हैं।
  3. संसदीय नियंत्रण - इनकी कार्यक्षमता की ससंद में चर्चा की जा सकती है। इससे सार्वजनिक पैसे का सही उपयोग सुनिश्चित हो पाता है।
  4. यह अपने कर्मचारियों की भर्ती व नियुक्ति में स्वायत होते हैं तथा यह महत्वपूर्ण पदों पर पेशेवर, अनुभवी तथा विशेषज्ञों की नियुक्ति करते हैं ।

सीमाएं

  1. निगम की स्वायत्तता और लोचशीलता प्रायः नाममात्र की ही होती है | वास्तव में मंत्री, सरकारी अधिकारी और राजनीति दल इनकी कार्यप्रणाली में प्राय: हस्ताक्षेप करते हैं।
  2. सार्वजनिक निगमों को किसी प्रकार की प्रतियोगिता का सामना नहीं करना पड़ता और उनका उद्देश्य लाभ कमाना भी नहीं होता। इसीलिए यह अपनी कार्य-कुशलता को बढ़ाने का प्रयत्न भी नहीं करते।
  3. इनमें जहां कहीं भी जनता से लेन-देन की आवश्यकता होती है वहीं अनियंत्रित भ्रष्टाचार व्याप्त है।

उपयुक्तता
वैद्यानिक निगम वहाँ उपयुक्त है जहाँ :-

  1. उपक्रम को अधिनियम द्वारा परिभाषित विशिष्ट शक्तियों की जरूरत है।
  2. उपक्रम को अधिक मात्रा में पूंजी की जरूरत है।

सरकारी कम्पनी
सरकारी कम्पनी का तात्पर्य उस कम्पनी से है जिसमें कम से कम 51 प्रतिशत चुकता अंश पूजी केन्द्र सरकार के पास या फिर राज्य सरकार के पास या संयुक्त रूप से दोनों के पास होती है।
इसका पंजीकरण भी कम्पनी अधिनियम 1956 के प्रावधानों के अनुसार होता है। उदाहरण भारतीय राज्य व्यापारिक निगम, हिन्दुस्तान मशीन टूल्स।

लक्षण

  1. सरकारी कम्पनी का समामेलन कम्पनी अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत ही होता है।
  2. इसका अपना पृथक वैधानि अस्तित्व होता है।
  3. कम्पनी की कम-से-कमा 51 प्रतिशतचुकता अंश पूँजी सरकार के पास होता है |
  4. इसका प्रबन्ध सरकार तथा अन्य अंशधारियों के द्वारा चुने गए संचालक मंडल के द्वारा किया जाता है।
  5. इसके कर्मचारियों की भर्ती तथा नियुक्ति कम्पनी के सीमानियम तथा अन्तर्नियमों के अनुसार होती है।
  6. सरकारी कम्पनी को कोष सरकार एवं अन्य निजी अंशधारकों से प्राप्त होते हैं। यह पूंजी बाजार से भी कोष प्राप्त कर सकती है।

गुण-लाभ

  1. सरकारी कम्पनी की स्थापना आसानी से कम्पनी अधिनियम की औपचारिकताओं को पूरा करके की जा सकती है। इसके लिए विशेष अधिनियम पारित करने की आवश्यकता नहीं होती।
  2. प्रबन्धन संबंधी निर्णय लेने एवं दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलाप में इनको पूर्ण स्वतंत्रता मिली होती है।
  3. ये पेशेवर प्रबंधकों को उच्च वेतन पर नियुक्त कर सकते हैं।

सीमाएं

  1. सरकारी कम्पनियों में सरकारी अधिकारियों, मंत्रियों तथा राजनेताओं का बहुत अधिक हस्तक्षेप होता है।
  2. संसद के प्रति प्रत्यक्ष रूप से जवाबदेह नहीं होने के कारण, ये अपने संवैधानिक उत्तरदायित्व से बचती है जबकि सरकारी वित्त वाली कम्पनी होने के कारण इन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।
  3. इनके निदेशक मंडल में मुख्यतः राजनैतिज्ञ एवं सरकारी अधिकारी होते है। जिनका मुख्य ध्येय कम्पनी की कार्यकुशलता न होकर, अपने राजनैतिक सवामियों को खुश करना होता है।

उपयुक्तता
सरकारी कम्पनी निम्न परिस्थितियों में उपयुक्तता होती है।

  1. जहाँ सरकार निजी क्षेत्र के साथ मिलकर काम करना चाहती है।
  2. जहाँ परियोजनाओं को सरकारी योजना और कोषों की आवश्यकता होती है।

सार्वजनिक क्षेत्र की बदलती हुई भूमिका
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना दो उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए की जाती थी -

  1. देश की आर्थिक विकास की दर को बढ़ाने के लिए तथा
  2. समाज के विभिन्न वर्गों के बीच आय तथा सम्पत्ति का समान वितरण करने के लिए।

समाज में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका व महत्व समय के साथ बदलती रही है। देश के विकास में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका का वर्णन हम निम्न प्रकार से कर सकते हैं।

  1. मूलभूत ढ़ांचे का विकास - आजादी के समय देश में मूलभूत उद्योगों जैसे इंजीनियरिंग, परिवहन, तेल रिफाइंरिसरिफाईन्रीस, संचार बिजली निर्माण लोह व स्टील तथा हैवी इन्नीयरिंग आदि की बहुत कमी थी। भारी पूंजी निवेश एवं फल प्राप्ति की लंबी अवधि होने के कारण, निजी क्षेत्र इनमें आने को तैयार नहीं थे। अत: आधारभूत ढांचे के विकास की जिम्मेदारी सार्वजनिक क्षेत्र को सौंपी गई जो उसने सफलता से निभाई
  2. क्षेत्रीय संतुलन - निजी क्षेत्र उपक्रम पिछड़े या दूरदराज क्षेत्रों में आधारभूत सेवाओं की कमी के कारण उद्योग स्थापित करने से हिचकिचाते हैं। सरकार ने पिछड़े क्षेत्रों में नए उपक्रम स्थापित किए जिससे वहां के लोगों को रोजगार मिला तथा क्षेत्र का आर्थिक विकास हुआ।
  3. पैमाने की बचत - कुछ क्षेत्र जैसे विद्युत शक्ति संयन्त्र प्राकृतिक गैस, पैट्रोलियम इत्यादि ऐसे हैं जिनमें बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। ताकि बड़े पैमाने की बचतों का लाभ उठाया जा सके। इनमें विशाल पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है। इन उद्योगों के निर्माण व संचालन का कार्य सार्वजनिक उपक्रमों ने उठाया।
  4. आर्थिक शक्ति के संकेन्द्रण पर रोक - निजी क्षेत्र में केवल कुछ औद्योगिक घरानों ने ही बड़े पैमाने के उद्योगों में निवेश किया जिससे पूंजी कुछ हाथों में ही केन्द्रित को गई। परिणामस्वरूप एकाधिकार को बढ़ावा मिला तथा आय की असमानताएं बढ़ी। ऐसी परिस्थितियों पर रोक लगाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योग लगाए गए जिससे बड़ी संख्या में आय और धन का विभाजन कर्मचारियों और श्रमिकों में हुआ।
  5. आयात प्रतिस्थापना - भारत सरकार ने पहले आयात की जाने वाली पूजीगत वस्तुओं के उत्पादन के लिए अब कई सार्वजनिक उपक्रम स्थापित किए तथा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के उत्पादन के लिए भी कई उपक्रमों की स्थापना की गई। इससे देश के पास उपलब्ध विदेशी मुद्रा के भण्डार पर भी बहुत फर्क पड़ा। सार्वजनिक क्षेत्र को देश के आर्थिक विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका दी गई।

सार्वजनिक क्षेत्र में सुधर
सरकार ने 1991 में अपनाई गई नई औद्योगिक नीति में सार्वजानिक क्षेत्र में चार प्रमुख सुधार किए गए ।

  1. सार्वजनकि क्षेत्रों के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या घटाकर पहले 17 से 8 तथा फिर 2001 में 3 कर दी गई यह तीन क्षेत्र हैं 1) अणु शक्ति 2) हथियार 3) रेलवे परिवहन
  2. समझौता विवरणिका - (Mou) के अन्तर्गत सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक स्वायतता दी गई है। प्रबंध के लिए लक्ष्य निश्चित कर दिए गए है तथा इन लक्ष्यों अब प्रबंध उन परिणामों को समय पर प्राप्त करने के लिए जवाबदेह होते है।
  3. सार्वजनिक क्षेत्र की चुनिंदा इकाईयों के अंशों का विनिवेश - इसके अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ इकाईयों के समता अंशों को निजी क्षेत्र की इकाईयों व जनता को बेचा गया। सरकार को आशा थी कि इससे सार्वजनिक क्षेत्र इकाईयों की प्रबंधकीय कुशलता में सुधार आएगा तथा वित्तीय अनुशासन बढ़ेगा।
  4. बीमार इकाईयों से संबंधित नीति, निजी क्षेत्र की नीति के समान बनाई गई हानि पर चलने वाले सभी सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों को औद्योगिक और वित्तीय पुनः निर्माण बोर्ड को सौंपा गया। बी.आई.एफ.आर. ने कुछ अधिक बीमार इकाईयों को इकाइयों में परिवर्तित किए जाने की उम्मीद थी, का पुनः उद्धार और पुनः प्रतिष्टापन करने का फैसला किया।

बहुराष्ट्रीय कम्पनियों भूमंडलीय उपक्रम
बहुराष्ट्रीय कम्पनी से अभिप्राय ऐसी कम्पनी से है जो कई देशों से व्यवसाय करती हैं। इसके लिए इसकी शाखाएँ, कारखाने और कार्यालय कई देशों में होते हैं। परन्तु इसका मुख्यालय उस देश में होता है जिसमें समामेलन किया जाता है। उदाहरण - कोका कोला, सोनी, रीबोक

बहुराष्ट्रीय कम्पनियो को लक्षण

  1. विशाल पूंजीगत साधन - इनके पास भारी मात्रा में पूंजी होती है तथा ये विभिन्न स्रोतों से वित्त जुटा सकती है।
  2. अन्तरर्राष्ट्रीय व्यवसाय - यह कई देशों में व्यवसाय करती है, जिसके लिए इनकी शाखाएं, कारखाने तथा कार्यालय कई देशों में होते हैं।
  3. केन्द्रीय नियन्त्रण - इनकी विभिन्न देशों में फैली हुई शाखाओं का नियन्त्रण और प्रबन्ध मौलिक देश में स्थित मुख्यालय द्वारा किया जाता है मुख्यालय द्वारा बनाई गई नीति कपनी के व्यापक नीतिगत ढाँचे तक सीमित होती है और वे शाखाओं एवं सहायक इकाइयों के दिन प्रतिदिन के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करती |
  4. आधुनिक तकनीक - प्रायः यह पूंजीवर्धक तकनीक तथा उत्पादन की नवीनतम तकनीक का प्रयोग करती है जिससे ये विश्वस्तरीय उत्पाद एवं सेवाएं प्रदान कर पाती है।
  5. उत्पाद नवप्रर्वतन - इनके पास अत्याधुनिक सुविधाओं एवं उपकरणों से युक्त शोध एवं विकास विभाग होते हैं जो नये उत्पादों के विकास तथा विद्यमान उत्पादों के डिजाईनों में सुधार का कार्य करते हैं।
  6. विपणन रणनीतियाँ - ये आक्रामक विपणन रणनीतियों का प्रयोग करती है। इनके ब्राण्ड सुप्रसिद्ध होते हैं तथा ये विज्ञापन व विक्रय संवर्द्धन पर अत्याधिक व्यय करते हैं।

संयुक्त उपक्रम
जब दो या दो से अधिक स्वतंत्र फर्म अपनी पूंजी, तकनीक एवं विशेषज्ञों को मिलाकर एक ही उद्देश्य एवं परस्पर लाभ के लिए संयुक्त रूप से ऐ नए उपक्रम को स्थापित करती है तो उसे संयुक्त उपक्रम के नाम से जाना जाता है।
उदाहरण :- भारत की मारूति कम्पनी व जापान की सुजुकी ने मिलकर मारुति सुजुकी तथा भारत की हीरो साइकिल तथा जापान की होण्डा मोटर्स कम्पनी ने मिलकर हीरो होण्डा का निर्माण किया |
विशेषताएं

  1. पूंजी सरकार व निजी क्षेत्र के उद्यमियों द्वारा दी जाती है।
  2. इसका प्रबंध निजी उद्यमियों को सौंपा जा सकता है।
  3. जनकल्याण व लाभ कमाना दोनों इसके उद्देश्य हैं।
  4. यह सरकार व निजी उद्यमियों के प्रति उत्तरदायी होता है।

लाभ

  1. संसाधनों व क्षमता में वृद्धि होना - दो या अधिक व्यवसायों के संसाधन एवं क्षमता का जोड़ दिए जाने से ये अधिक तेजी व कार्यक्षमता के साथ बढ़ते एवं विस्तृत होते हैं।
  2. उन्नत प्रौद्योगिकी का लाभ - ये उत्पादन की उन्नत तकनीकों की पहुँच को संभव कराती है जिससे इनकी कार्यकुशलता में वृद्धि होती है, लागत में कमी आती है एवं उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार होता है।
  3. नए बाजारों एवं वितरण तंत्रों तक पहुँच - एक विदेशी कम्पनी को किसी अन्य भारतीय कम्पनी के साथ संयुक्त उपक्रम लगाने पर विस्तृत भारतीय बाजार में पहुँच बनाने का मौका मिलता है। साथ ही वह स्थानीय फर्म को उन्नत तकनीक एवं बड़े पैमाने की बचते व लाभ भी उपलब्ध कराता है।
  4. नवीनता - विदेशी साझेदारों के पाए नए उत्पाद तथा सेवाओं को विकसित करने के विचार एवं तकनीक उपलब्ध होती है। इनके कारण बाजार में नई-नई वस्तुएं एवं उनके नए उपयोग आ पाते हैं
  5. उत्पादन लागत में कमी - कचचा माल एवं श्रम विकासशील देशों में अपेक्षाकृत सस्ती दरों पर उपलब्ध होते हैं। इसलिए यदि एक साझेदार विकासशील देश से ही तो उत्पादन लागत में कमी संभव हो जाती है।
  6. ब्रांड छवि - इसके निर्माण से एक पक्ष को दूसरे पक्ष की पहले से स्थापित ब्रांड छवि का फायदा मिलता है जिससे बड़ी मात्रा में निवेश की बचत होती है। ऐसी ब्रांड के नए उत्पादों को आसानी से बाजार में उतारा जा सकता है।
  7. जोखिमों का बंटवारा - नई परियोजना में निहित जोखिम, संयुक्त उपक्रम के साझेदारों के बीच बँट जाता है तथा इससे छोटी फर्म की प्रतियोगिता शक्ति भी बढ़ जाती है।

सार्वजनिक निजी साझेदारी (पीपीपी)
सार्वजनिक निजी साझेदारी से अभिप्राय उन परियोजना अथवा सेवा से है जिसका वित्तीय पोषण एवं संचालन सार्वजनिक एवं निजी उपक्रमों की साझेदारी द्वारा हो रहा है। पीपीपी सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के मध्य एक दीर्घकालीन साझेदारी है। निम्नलिखित क्षेत्रों में पीपीपी का प्रयोग हो रहा है :-

  1. यातायात (सड़क, रेलवे एवं टोल पुल)
  2. स्वास्थ्य (अस्पताल)
  3. जल (एकत्रण, सफाई व वितरण)
  4. शिक्षा (स्कूल, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय)

पीपीपी की विशेषताएँ

  1. सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के मध्य साझेदारी सम्भव बनाती है।
  2. पीपीपी का संबंध उच्च प्राथमिकता वाली परियोजनाओं से है।
  3. पीपीपी सरकार को उसकी बजटीय व उधर लेने की सीमाओं से मुक्त करते हैं।
  4. इनका प्रयोग सार्वजनिक लाभ वाली परियोजनाओं में होता है।
    जैसे- दिल्ली मेट्रो रेलवे निगम ।
  5. पूंजी सघन एवं भारी उद्योग जैसी बड़ी परियोजनाओं के लिए उपयुक्त ।
  6. आगम बंटवारा - सार्वजनिक एवं निजी उपक्रमों के मध्य तयशुदा अनुपात में आगम को बीटा जाता है।