वायुमंडल में जल-पुनरावृति नोट्स
सीबीएसई कक्षा - 11
विषय - भूगोल
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 11 वायुमंडल में जल
महत्त्वपूर्ण तथ्य-
- आर्द्रता= वायुमण्डल में विद्यमान अदृश्य जलवाष्प की मात्र को आर्द्रता कहते है।
- आर्द्रता, जलवायु तथा मौसम का एक आवश्यक तत्व है।
- आर्द्रता को प्रकट करने की तीन विधियां है:-निरपेक्ष आर्द्रता, विशिष्ट आर्द्रता और सापेक्ष आर्द्रता।
- ओसांक= वायु जिस तापमान पर संतृप्त हो जाती है, उसे ओसांक कहते है।
- रूदोष्म ताप परिवर्तन= जब कुल ऊष्मा के घटे बिना ही केवल ऊपर उठने और फ़ैलने से वायु के तापमान में बदलाव हो जाता है तो उसे रूदोष्म ताप परिवर्तन कहते है।
- वाष्पीकरण = संघनन जल के तरल से गैसीय अवस्था में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते है।
- संघनन= जल की गैसीय अवस्था के तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तित होने की क्रिया को संघनन कहते है।
- ओस, तुषार, कुहरा और बादल संघनन के रूप है।
- भूमध्य रेखा के आसपास संवहनीय वर्षा प्राप्त होती है।
- हवा में जलवाष्प होता है। इससे वायुमंडल के आयतन में 0 से लेकर 4 प्रतिशत तक की विविधता मिलती है। मौसम की परिघटना में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है।
- जल वायुमंडल में तीन अवस्थाओं गैस, द्रव तथा ठोस के रूप में उपस्थित होता है।
- वायुमंडल में आर्द्रता जलाशयों से वाष्पीकरण तथा पौधों से वाष्पोत्सर्जन से प्राप्त होती है। इस तरह वायुमंडल, महासागरों तथा महाद्वीपों के मध्य जल का लगातार आदान-प्रदान वाष्पीकरण, वाष्पोत्सर्जन, संघनन एवं वर्षा की प्रक्रिया द्वारा होता रहता है।
- एक निश्चित तापमान पर जलवाष्प से पूरित हवा को संतृप्त कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि हवा इस स्थिति में दिए गए तापमान पर तथा अधिक आर्द्रता ग्रहण करने में सक्षम नहीं है।
- वायुमंडल से जलवाष्प की मात्रा वाष्पीकरण तथा संघनन की वजह से क्रमशः घटती-बढ़ती रहती है। वाष्पीकरण वह क्रिया है, जिसके माध्यम से जल द्रव से गैसीय अवस्था में परिवर्तित होता है। वाष्पीकरण की मुख्य वजह ताप है।
- हवा के अंश में जल को अवशोषित करने तथा धारण रखने की क्षमता तापमान में वृद्धि के साथ बढ़ती है। उसी तरह, यदि आर्द्रता कम है तो हवा में नमी को अवशोषित करने तथा धारण करने की क्षमता होती है।
- हवा की गति संतृप्त परत को असंतृप्त परत के माध्यम से हटा देती है। इस तरह, हवा की गति जितनी तीव्र होगी, वाष्पीकरण उतना ही तीव्र होगा।
- जलवाष्प का जल के रूप में बदलना संघनन कहलाता है। ऊष्मा का ह्रास ही संघनन का कारण होता है। जब आर्द्र हवा ठंडी होती है तब उसमें जलवाष्प को धारण रखने की क्षमता समाप्त हो जाती है।
- संघनन के रूप
- ओस
- बादल
- पाला
- धुन्ध और कोहरा
- धूम कोहरा
- वर्षण के रूप
- फुहार तथा वर्षा
- पर्वतीय वर्षा
- चक्रवातीय वर्षा
- संवहनीय वर्षा
- सहिम वर्षा
- ओला परत
- हिमपात
- फुहार तथा वर्षा
- संघनन उस अवस्था में पाया जाता है जब आर्द्र हवा कुछ ठंडी वस्तुओं के संपर्क में आती है तथा यह उस समय भी हो सकता है जब तापमान ओसांक के नीचे हो।
- संघनन के पश्चात वायुमंडल की जलवाष्प या आर्द्रता ,ओस, कोहरा, तुषार एवं बादल के रूप में परिवर्तित हो जाती है।
- ओस बनने के लिए सबसे उपयुक्त अवस्थाएँ साफ शांत हवा, उच्च सापेक्ष आर्द्रता, आकाश तथा ठंडी एवं लंबी रातें हैं।
- तुषार ठंडी सतहों पर बनता है जब संघनन तापमान के जमाव बिंदु से नीचे (0° सेंटीग्रेड) चले जाने पर होता है।
- कुहासे एवं कोहरे में केवल इतना अंतर होता है कि कुहासे में कोहरे की अपेक्षा नमी ज़्यादा होती है। कुहासा पहाड़ों पर ज़्यादा पाया जाता है, क्योंकि ऊपर उठती हुई गर्म हवा ढाल पर ठंडी सतह के संपर्क में आती है।
- कुहासे, कोहरे से अधिक शुष्क होते हैं एवं जहाँ गर्म हवा की धारा ठंडी हवा के संपर्क में आती है, वहाँ ये प्रबल होते हैं। कोहरे छोटे बादल होते हैं, जिसमें धूलकण, धुएँ के कण तथा नमक के कण होते हैं।
- बादल का निर्माण पृथ्वी की सतह से कुछ ऊँचाई पर होता है, इसलिए ये विविध आकारों के होते हैं। इनकी विस्तार, घनत्व, ऊँचाई तथा पारदर्शिता या अपारदर्शिता के अंतर्गत बादलों को चार रूपों में विभाजित किया जाता है-
- वर्षा मेघ
- पक्षाभ मेघ
- स्तरी मेघ
- कपासी मेघ
- पक्षाभ मेघ 8000-12000 मीटर की ऊँचाई पर बनते है। ये पतले और बिखरे हुए बादल होते हैं जो पंख के समान प्रतीत होते हैं। ये हमेशा सफेद रंग के होते हैं।
- कपासी मेघ रूई की तरह दिखाई पड़ते हैं एवं ये 4000 से 7000 मीटर की ऊँचाई पर बनते हैं। ये छितरे तथा इधर-उधर बिखरे हुए दिखाई देते हैं।
- स्तरी मेघ परतदार बादल होते हैं जो कि आकाश के बहुत बड़े भाग में फैले रहते हैं।
- वर्षा मेघ काले या स्लेटी रंग के होते हैं। ये मध्य स्तरों या पृथ्वी के सतह के अधिक नजदीक बनते हैं। ये सूर्य की किरणों के लिए ज़्यादा ही अपारदर्शी होते हैं।
- उत्पत्ति के आधार पर वर्षा को तीन प्रमुख प्रकारों में बाँटा जा सकता है-
- संवहनीय वर्षा
- पर्वतीय वर्षा
- चक्रवातीय वर्षा।
- संवहनीय वर्षा गरज तथा बिजली कड़कने के साथ मूसलाधार वर्षा होती है, लेकिन यह बहुत लंबे समय तक नहीं रहती। संवहनीय वर्षा विषुवतीय क्षेत्रों एवं खासकर उत्तरी गोलार्ध के महाद्वीपों के भीतरी भागों में होती है।
- सामानतय: जब हम विषुवत वृत से ध्रुव की तरफ जाते हैं, वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। विषुवत वृत से 35° से 40° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों के मध्य, पूर्वी तटों पर बहुत ज़्यादा वर्षा होती है तथा पश्चिम की ओर यह घटती जाती है।
- विषुवतीय पट्टी, शीतोष्ण प्रदेशों में पश्चिमी तटीय किनारों के पास के पर्वतों के ढाल पर तथा मानसून वाले क्षेत्रों के तटीय भागों में बहुत ज़्यादा वर्षा होती है जो प्रतिवर्ष 200 सेंटीमीटर से ज़्यादा होती है। महाद्वीपों के आंतरिक भागों में प्रतिवर्ष 100 से 200 सेंटीमीटर वर्षा होती है।
- कुछ क्षेत्रों जैसे विषुवतीय पट्टी तथा ठंडे समशीतोष्ण प्रदेशों में वर्षा पूरे वर्षभर होती रहती है।