संविधान का निर्माण एक नए युग की शुरूआत-पुनरावृति नोट्स

सीबीएसई कक्षा 12 इतिहास
पाठ – 15 संविधान का निर्माण (एक नए युग की शुरूआत)
पुनरावृत्ति नोट्स

स्मरणीय बिन्दु- 

  1. भारतीय संविधान दुनिया का सबसे लंबा संविधान है जो 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आया।
  2. हमारे संविधान ने अतीत और वर्तमान के घावों पर मरहम लगाने, और विभिन्न वर्गों, जातियों व समुदायों पर बँटे भारतीयों को एक साझा राजनीतिक प्रयोग में शामिल करने में मदद दी है।
  3. भारतीय संविधान का 9 दिसम्बर, 1946 से 28 नवम्बर 1949 के बीच सूत्रबद्ध किया गया। संविधान सभा के कुल 11 सत्र हुए जिनमें 165 दिन बैठकों में गए।
  4. यह गहन विचार विमर्श पर आधारित और सावधानीपूर्वक सूत्रबद्ध किया गया मर्सावदा है। इसके एक-एक मसविदे के हर भाग पर लंबी चर्चाएँ चलीं।
  5. मुस्लिम लीग ने संविधान सभा की शुरूआती बैठको (यानी 15 अगस्त, 1947 से पहले) का बहिष्कार किया जिसके कारण उस दौर में संविधान सभा एक ही पार्टी का समूह बनकर रह गई थी। सभा के 82 प्रतिशत सदस्य कांग्रेस के थे।
  6. संविधान सभा की बैठकों का पहला वर्ष बहुत उथल-पुथल के दौर की पृष्ठभूमि में सम्पन्न हुआ। देश का विभाजन हुआ था और लाखों लोग विस्थापित हुए, सांप्रदायिक दंगे हुए और भारतीय रजवाड़ो को साथ मिलाने में भी समस्याएँ आ रही थीं।
  7. संविधान सभा के सदस्यों का गठन 1945-1946 के प्रांतीय चुनावों के आधार पर किया गया था। प्रांतीय संसदों ने संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव किया।
  8. संविधान सभा के कुल तीन सौ सदस्यों में छह की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी। वे थे –जवाहर लाल नेहरू, बल्लभ भाई पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, बी. आर अम्बेड़कर, के एम. मुंशी, अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर। दो प्रशासनिक अधिकारियों बी. एन. राव व एस. एन. मुखर्जी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  9. संविधान सभा के प्रारूप को बनाने में 3 वर्ष (2 वर्ष, 11 महीने,18 दिन) लगे और इस दौरान हुई चर्चाओं के मुद्रित रिकार्ड 11 बड़े खंडो में प्रकाशित हुए।
  10. संविधान निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए 13 दिसम्बर 1946 को जवाहर लाल नेहरू ने "उद्देश्य प्रस्ताव" पेश किया। इसमें भारत को ‘स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य’ घोषित किया गया था। और नागरिकों को न्याय समानता व स्वतंत्रता का आश्वासन दिया गया था।
  11. नेहरू ने संविधान निर्माण में भारतीय जनता की आकांक्षाओं और भावनाओं को पूरा करने के प्रयास पर जोर दिया। कहा कि सभी को शक्ति आम जनता से मिल रही है।
  12. संविधान सभा उन लोगों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति का साधन मानी जा रही थी जिन्होने स्वतंत्रता आन्दोलनों में हिस्सा लिया था। लोकतंत्र, न्याय, समानता भारत में सामाजिक संघर्षो के साथ गहरे तौर पर जुड़ चुके थे।
  13. संविधान सभा में कई मुद्दो पर बहस हुई परंतु यह शीघ्र ही स्पष्ट हो गया कि किसी भी मुद्दे पर सभा की पूर्ण सहमति नही थी। नेहरू ने कहा था कि संविधान निर्माताओं को ‘‘जनता के दिलों में समायी आकांक्षाओं तथा भावनाओं को पूरा करना है।’’
  14. संविधान निर्माण के समय पृथक निर्वाचिका की समस्या पर बहस हुई। मद्रास के बी. पोकर बहादुर ने इसका पक्ष लिया परंतु ज्यादातर राष्ट्रवादियों आर. वी. धुलेकर, पटेल, गोविन्द वल्लभ पंत, बेगम ऐजाज रसूल आदि ने इसका कड़ा विरोध किया और देश के लिए घातक बताया।
  15. संविधान सभा में अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर भी बहस हुई। दमित जातियों के अधिकारों, महिलाओं के अधिकारों पर भी तीव्र चर्चा हुई।
  16. एन. जी. रंगा तथा जयपाल सिंह ने आदिवासियों की समस्याओं की और ध्यान आकर्षित किया। उन्हें आम आबादी के स्तर पर लाने और सुरक्षा प्रदान करने पर जोरदार पक्ष लिया।
  17. संविधान सभा में दमित जातियों के लिए पृथक निर्वाचिका के पक्ष और विपक्ष में हुई बहसों के नतीजन और सांप्रदायिक हिंसा को देखते हुए अम्बेड़कर ने पृथक निर्वाचिका की माँग को छोड़ दिया।
  18. राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान अम्बेडकर ने दमित जातियों के लिए पृथक निर्वाचिकाओं की माँग की थी जिसका गाँधी जी ने यह कहते हुए, विरोध किया था कि ऐसा करने से ये समुदाय स्थायी रूप से शेष समाज से कट जाएंगे।
  19. संविधान सभा के कम्युनिस्ट सदस्य सोमनाथ लाहिड़ी को संविधान सभा की चर्चाओं पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद का स्याह साया दिखाई देता था।
  20. अंततः यह सुझाव दिया गया कि अस्पृश्यता का उन्मूलन हो, हिन्दू मन्दिर सभी जातियों के लिए खोले जाएँ दमित जातियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण हो।
  21. केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के अधिकारों को लेकर हुई बहस में अधिकतर ने मजबूत केन्द्र का ही पक्ष लिया और विषयों की तीन सूचियां बनाई थी- केन्द्रीय सूची, राज्य सूची, और समवर्ती सूची।
  22. राष्ट्र की भाषा हिन्दी को लेकर बहुत अधिक बहस हुई और यह तय हुआ परस्पर समायोजन होना चाहिये और लोगों पर केाई चीज थोपनी नही चाहिए।
  23. संविधान सभा के शुरूआती सत्रों में हिन्दी की खूब वकालत की गई। श्री धुलेकर इसके जोरदार समर्थक थे।
  24. केवल दो मुद्दों पर आम सहमति काफी हद तक थी वे थे वयस्क मताधिकार और धर्मनिरपेक्षता जो संविधान के केन्द्रीय अभिलक्षण है।
  25. राष्ट्रभाषा के सवाल पर संविधान सभा की भाषा समिति ने यह सुझाव दिया कि देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी भारत की राजकीय भाषा होगी। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हम धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए।
महत्वपूर्ण बिंदु-
  1. नेहरू जी का उद्देश्य प्रस्ताव, महत्व
  2. संविधान निर्माण के पूर्व तात्कालिक समस्यायें - राजनैतिक ऐकीकरण, सांप्रदायिक दंगे, आर्थिक संसांधनों की कमी, विस्थापितों की समस्या - संविधान निर्माण की चुनौती
  3. संविधान निर्माण - संविधान सभा का गठन अक्टूबर 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार किया गया
  4. संविधान सभा में चर्चा-जनमत का प्रभाव,नागरिकों के अधिकारो का निर्धारण,अल्पसंख्यों और दमितों के अधिकारों का प्रश्न।
  5. राष्ट्रभाषा, भाषा विवाद, गाँधीजी के राष्ट्रभाषा सबंधी विचार, हिन्दी का समर्थन
  6. संविधान की विशेषताएँ - लिखित एवं विशाल संविधान, केन्द्र - राज्य शक्ति विभाजन, स्वतंत्र न्यायपालिका, धर्मनिर्पेक्षता, संसदीय प्रणाली, शक्तिशाली केन्द्र, वयस्क मताधिकार, मौलिक अधिकार