अंतरा - फणीश्वरनाथ रेणु - पुनरावृति नोट्स

 CBSE Class 12 हिंदी ऐच्छिक

पुनरावृति नोट्स
पाठ-15
 संवदिया


कहानी  परिचय :-
प्रस्तुत कहानी  ‘संवदिया’ पफणीश्वरनाथ  ‘रेणु’  द्वारा  रचित  है।  इस कहानी में मानवीय संवेदना की गहन अभिव्यक्ति  हुई  है।  ‘रेणु’  ने  विपन्न,  बेसहारा,  सहनशील  बड़ी  बहुरिया  की  असहाय स्थिति,  उसकी कोमल  भावनाओं,  मानसिक  यातना  तथा पीड़ा का  मार्मिक  चित्राण  किया  है। 
स्मरणीय  बिन्दु  -

  • हरगोबिन  एक  संवदिया  है।  संवदिया  अर्थात्  संदेशवाहक।  बड़ी  हवेली  से  बड़ी  बहुरिया  का  बुलावा आने  पर  हरगो बिन  को  आश्चर्य  हुआ  कि  आज  जबकि  संदेश  भेजने   के  लिए  गाँव-गाँव  में  डाकघर खुल  गए  हैं,  बड़ी  बहुरिया  ने   उसे  क्यों  बुलवाया  है?  पिफर  हरगोबिन  ने  अंदाजा  लगाया  कि  अवश्य ही कोई  गुप्त संदेश ले  जाना  है।
  • बड़ी  हवेली  पहुँचने  पर  हरगोबिन  अतीत  की  यादों  में  खो  गया  पहले  बड़ी  हवेली  में  नौकर नौकरानियों की भीड़ लगी रहती थी। आज बड़ी बहुरिया सूपा में अनाज पफटक रही है। समय कितना  बदल  गया है।
  • बड़े  भैया की  मृत्यु  के  बाद  तीनों  भाई  परस्पर  लड़ने  लगे।  बड़ी  बहू के  जेवर-कपड़े तक  भाइयों ने आपस में बाँट लिये। लोगों ने जमीन पर कब्जा कर लिया। तीनों भाई गाँव छोड़कर शहर में  जा  बसे।  गाँव  में केवल  बड़ी  बहुरिया  रह  गई।
  • अब  बड़ी  बहुरिया  की  आर्थिक  स्थिति  इतनी  खराब  हो  गई  थी  कि  वह  उधर  लेकर  अपना खर्च  चला रही थी। गाँव की मोदिआइन अपना  उधर वसूल करने  के  लिए  बैठी  थी और बड़ी बहुरिया  को  कड़वी  बातें  सुनाती  जा  रही  थी।  बड़ी  बहुरिया  उसका  उधर  चुकाने  की  स्थिति में  नही  थी।
  • मोदिआइन के जाने के बाद बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन को बताया कि वह अपनी माँ के पास संवाद भेजना चाहती है। संवाद कहने से पूर्व ही बड़ी बहुरिया रोने लगी।  हरगोबिन ने पहली बार  बड़ी  बहुरिया  को    इस  प्रकार  रोते  देखा  था।  उसकी  भी  आँखे  छलछला  आई।  बड़ी  बहुरिया ने  पिफर  दिल  को कड़ा करके  कहा-  ‘माँ  से  कहना,  मैं  भाई-भाभियों की  नौकरी  करके  पेट पालूँगी, बच्चों की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी। लेकिन अब यहाँ नही रह सकूँगी।’ यदि माँ  मुझे  यहाँ  से नही ले  जाएगी तो  मै  आत्महत्या कर  लूँगी। बथुआ-साग खाकर कब तक जीऊँ?  किसलिए  जीऊँ?  किसके  लिए  जीऊँ?
  • हरगो बिन  बड़ी  बहुरिया  के   प्रति   उसके  देवर-देवरा नियों   के   व्यवहार  को  जानता  था।  उसका  रोम -रोम कलपने  लगा।  बड़ी  बहुरिया  की  दुर्दशा  देखकर  उसका  मन  बहुत  दुःखी  हुआ।  बड़ी  बहुरिया हरगोबिन के  जाने  के  राहखर्च के  लिए मात्रा  पाँच  रूपये जुटा पाई  थी।  हरगोबिन  ने  यह कहकर राहखर्च  लेने  से  इंकार  कर  दिया  कि  राहखर्च  का  इंतजाम  वह  स्वयं  कर  लेगा।
  • संवदिया  अर्थात्  संदेशवाहक  का  कार्य  प्रत्येक  व्यक्ति  नहीं  कर  सकता।  यह  प्रतिभा  जन्मजात  होती है। संवदिया को संवाद का  प्रत्येक शब्द याद  रखना होता  है। उसी सुर  और स्वर में तथा ठीक उसी ढंग  से संवाद  सुनाना आसान काम नही  है। परन्तु  संवादिया के  विषय में  गाँववालो की धरणा सही नहीं थी।  उनके  अनुसार  निठल्ला,  पेटू और कामचोर  व्यक्ति  ही संवदिया का काम करता  है। ऐसा  व्यक्ति जिसके  ऊपर कोई  पारिवारिक जिम्मेवारी  न हो।  गाँववालों के  अनुसार संवादिया औरतों की मीठी-मीठी  बातों में आ जाता  है तथा बिना मजदूरी  लिए कही भी  संवाद पहुँचाने को तैयार हो जाता है।
  • पति की मृत्यु के बाद बड़ी बहुरिया हो गई थी। वह अभाव-ग्रस्त एवं कष्टमय जीवन व्यतीत कर रही थी।  हरगोबिन के मन में काँटे की चुभन का  अनुभव हो रहा था क्योंकि उसे बड़ी बहुरिया  के  संवाद का  प्रत्येक  शब्द  उसे  याद आ  रहा  था।  उसके  संवाद  में उसके  हृदय  की वेदना,  उसकी  बेबसी,  उसका  दुःख  झलक  रहा  था।  हरगोबिन  उसकी  पीड़ा को  अपने  भीतर
  • महसूस  कर  रहा  था।  मन की  इस  चुभन  से  छुटकारा  पाने  के  लिए  उसने  अपने  सहयात्राी  से बातचीत करने  का  उपाय  सोचा।
  • लोग  संवदिया की बहुत  खातिरदारी करते  थे, उसे बहुत  सम्मान  देते  थे  क्योंकि वह लम्बी  यात्रा करके उनके  प्रियजनों का संदेश उन तक लाता था। उसे  अच्छी तरह भोजन कराया जाता था। भरपेट  भोजन करने के  बाद संवदिया यात्रा की  थकान उतारने के  लिए गहरी नींद  सोता  था। परन्तु बड़ी  बहुरिया के  मायके पहुँचने पर  जब हरगोबिन  के सामने कई  प्रकार के  व्यंजनों से भरी थाली आई, तो उससे खाना खाया नहीं गया। उसे रह-रहकर बड़ी बहुरिया का ध्यान आ रहा  था  कि  वह  बथुआ  साग  उबालकर  खा  रही  होगी।  बूढ़ी  माँ  ने  बहुत  आग्रह  किया  पर  हरगो बिन से ज्यादा  खाया ही नहीं गया। हरगोबिन बड़ी बहुरिया का  सही संदेश  बूढ़ी माँ को नहीं सुना पाया  था,  इसी चिंता  में  रातभर  उसे  नींद  नही आ  रही  थी।  उसके  मन  में विचारों  का  संघर्ष चल रहा था।
  • हरगोबिन के  मन में  बड़ी बहुरिया और अपने  गाँव के  प्रति  बहुत  सम्मान  था। वह  बड़ी बहुरिया को गाँव की लक्ष्मी मानता था। वह सोच रहा था कि यदि गाँव की लक्ष्मी ही गाँव छोड़कर मायके  चली  जाएगी  तो  गाँव  में  क्या  रह  जाएगा?  वह  किस  मुँह  से  यह  संदेश  दे  कि  बड़ी  बहुरिया उसके गाँव में बथुआ साग  खाकर गुजारा कर  रही है,  वह कष्ट में  है इसलिए उसे  अपने पास बुला लो। यह संवाद सुनकर लोग उसके गाँव के नाम पर थूकेंगे। अपने गाँव की बदनामी के भय  से  हरगोबिन  बड़ी  बहुरिया का  संदेश  नहीं  सुना  सका।
  • जलालगढ़ पहुँचकर हरगोबिन ने बड़ी बहुरिया के पैर पकड़कर, संवाद न सुना पाने के कारण मापफी माँगी। उसने कहा कि वह बड़ी बहुरिया के बेटे के समान  है। बड़ी बहुरिया उसकी माँ के समान है, पूरे गाँव की माँ के समान  है। वह उससे आग्रह करता है कि वह गाँव छोड़कर न जाए तथा साथ ही संकल्प लेता है कि वह अब निठल्ला नहीं बैठा रहेगा। उसे कोई कष्ट नहीं होने देगा तथा उसके सब काम करेगा। बड़ी बहुरिया स्वयं अपने मायके संदेश भेजने के बाद  से  ही पछता  रही  थी।