अंतरा - रांगेय राघव - पुनरावृति नोट्स

 CBSE कक्षा 11 हिंदी (ऐच्छिक)

अंतरा गद्य-खण्ड
पाठ-4 गूँगे
पुनरावृत्ति नोट्स


विधा- कहानी
कहानीकार- रांगेय राघव

लेखक परिचय-

  • रांगेय राघव (1923-1962) आगरा वि.वि. से हिन्दी में एम.ए. और पी. एच. डी. की अस्सी से अधिक कहानियाँ लिखी। यथार्थ का मार्मिक चित्रण। इन्हें सन् 1961 ई. में राजस्थान साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत किया था।

प्रमुख रचनाये-

  • कहानी संग्रह- ‘रामराज्य का वैभव’, ‘देवदासी’, ‘समुद्र के फेन’, ‘अधूरी मूर्त’, ‘जीवन के दाने’, ‘अँगारे ने बुझे’, ‘एैयाश मुर्दे’, ‘इंसान पैदा हुआ’।
  • उपन्यास- ‘घरौंदा’, ‘विषाद-मद’, ‘मुर्दों का टीला’, 'सीधा-सादा रास्ता', 'अँधेरे के जुगनू’, ‘बोलते खंडहर’, ‘कब तक पुकारूँ'।

भाषा-शैली गत विशेषतायें-

  1. भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहपूर्ण।
  2. लाक्षणिक, भावपूर्ण एवं चित्रात्मक।
  3. मुहावरे एवं लोकोक्तियों का प्रयोग।
  4. भाषा-शैली-संवादात्मक, व्यंग्यपूर्ण विचार प्रधान एवं उपदेशात्मक।

पाठ-परिचय-

  • गूँगे कहानी में एक गूँगे किशोर के माध्यम से शोषित पीड़ित मानव की अवस्था का चित्रण किया गया है। ऐसे विकलांगों के प्रति व्याप्त संवेदनहीनता को रेखांकित किया गया। ऐसे व्यक्तियों को जो देखते सुनते हुए भी प्रतिक्रिया व्यक्त नई के गूँगे और बारे कहा गया है। इसलिये कहानी का शीर्षक ‘गूँगे’ पूर्णतया सार्थक है।

स्मरणीय बिंदु-

  • कहानी का प्रमुख पात्र गूँगा किशोर है। वह जन्म से वज्र बहरा होने के कारण गूँगा है। गूँगा बहुत मेहनती एवं स्वाभिमानी है। गूँगा तीव्र बुद्धि है। वह हाथ के इशारे से बताता है। कि जब वह छोटा था उसकी माँ छोड़कर चली गई थी क्योंकि उसका बाप मर गया था। वह यह भी बताता है। कि वह भीख नही लेता, मेहनत का खाता है। गूँगा गला खोलकर दिखाता है कि बचपन में गला साफ करने की कोशिश में किसी ने उसका काकल काट दिया। चमेली ने पहली बार काकल के महत्व को अनुभव किया।
  • चमेली बहुत भावुक महिला थी। उसने चार रूपये और खाने पर गूँगे को नौकर रख लिया। पड़ोसिन सुशीला ने उसे सावधान किया कि बाद में पछताओगी। उसने फूफा के बारे में बताया कि वे उसे बहुत मारते थे अब वह वापिस नहीं जाना चाहता वे चाहते थे कि गूँगा पल्लेदारी करके पैसा कमाकर उन्हें दे।
  • एक दिन गूँगा भाग गया। सबके खाना खा चुकने के पश्चात् गूँगे ने आकर इशारे से खाना माँगा चमेली ने गुस्से में रोटियाँ उसके आगे फेंक दी। पहले तो गूँगे ने गुस्से में रोटी छुई तक नहीं पर फिर न जाने क्या सोचकर उसने रोटियाँ उठाकर खा ली। फिर तो अक्सर गूँगा भाग जाता था।
  • एक बार चमेली के पुत्र बसंता ने कसकर गूँगे को चपत जड़ दी गूँगे का हाथ उठा फिर न जाने क्या सोचकर रूक गया। उसकी आँखों में पानी भर आया और वह रोने लगा। चमेली के आने पर बसंता बताता है कि गूँगा उसे मारना चाहता था। गूँगा सुन नहीं सकता पर चमेली की भाव-भंगिमा से सब कुछ समझ जाता है। चमेली ने गूँगे को मारने के लिये हाथ उठाया तो गूँगे ने उसका हाथ पकड़ लिया। चमेली को लगा जैसे उसके पुत्र ने उसका हाथ पकड़ लिया हो। उसने घृणा से अपना हाथ छुड़ा लिया। उसने सोचा कि यदि उसका बेटा गूँगा होता तो वह भी ऐसे ही कष्ट उठाता।
  • गूँगे के हाथ पकड़ने से चमेली को उसके शारीरिक बल का अंदाजा हुआ कि गूँगा बसंता से कहीं अधिक ताकतवर है। परन्तु फिर भी उसने अपना हाथ बसंता पर नहीं चलाया था। इसीलिये कि बसंता बसंता है... गूँगा गूँगा है। किन्तु पुत्र की ममता ने इस विषय पर चादर डाल दी।
  • एक बार घृणा से विक्षुब्ध चमेली ने गूँगे से कहा- क्यों रे, तूने चोरी की है। गूँगा चुप हो गया। चमेली ने हाथ पकड़ कर द्वार से निकल जाने को कहा। गूँगे की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। चमेली उस पर खूब चिल्लाई, उसे बहुत बुरा-भला कहा। लेकिन जैसे मन्दिर की मूर्ति कोई उत्तर नहीं देती वैसे ही उसने भी कुछ नहीं कहा। उसे केवल इतना ही समझ में आया कि मालकिन नाराज है। और उसे घर से निकल जाने को कह रही है। उसे इस बात पर हैरानी और अविश्वास हो रहा था। अन्ततः चमेली ने उसे हाथ पकड़ कर दरवाजे से बाहर धकेल दिया।
  • करीब एक घंटे बाद शकुन्तला और बसंता यह कहकर चिल्ला उठे- ‘अम्मा ! अम्मा! चमेली ने देखा के गूँगा खून से भीगा था। उसका सिर फट गया था। वह सड़क पार के लड़कों से पिटकर आया था। क्योंकि वह गूँगा होने के कारण उनसे दबना नहीं चाहता था। दरवाजे की दहलीज पर सिर रखकर वह कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था। चमेली चुपचाप देखती रही। चमेली सोचती रही कि आज के दिन ऐसा कौन है जो गूँगा नहीं हैं गूँगा भी स्नेह चाहता हैं, समानता चाहता है।