कबीर - पुनरावृति नोट्स

 कक्षा 11 हिंदी कोर

पुनरावृति नोट्स
पाठ - 01 कबीर के पद


पाठ का सारांश - पहले पद  में कबीर ने परमात्मा को सृष्टि के कण-कण में देखा है, ज्योति रूप में स्वीकार है तथा उसकी व्याप्ति चराचर संसार में दिखाई है | इसी व्याप्ति को अद्द्वैत सता के रूप में देखते हुए विभिन्न उदाहरणों के द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति दी है |

कबीरदास ने आत्मा और परमात्मा को एक रूप में ही देखा है | संसार के लोग अज्ञानवश इन्हें अलग-अलग मानते है | कवि पानी, पवन, प्रकाश आदि के उदाहरण देकर उन्हें एक जैसा बताता है | बाढ़ी लकड़ी को काटता है, परंतु आग को कोई नही काट सकता | परमात्मा सभी के हृदय में विधमान है | माया के कारण इसमें अंतर दिखाई देता है |

दूसरे पड़ में कबीर ने बाहय आडंबरों पर चोट करते हुए कहा है कि अधिकतर लोग अपने भीतर की ताकत को न पहचानकर अनजाने में अवास्तविक संसार से रिश्ता बना बैठते है और वास्तवकि संसार से बेखबर रहते है |

कवि के अनुसार यह संसार पागल हो गया है | यहाँ सच कहने वाले का विरोध तथा झूठ पर विश्वाश किया जाता है हिंदू और मुसलमान राम और रहीम के नाम पर लड़ रहे है, जबकि दोनों ही ईश्वर का मर्म नही जानते | दोनों बाहय आडंबरों में उलझे हुए है | नियम, धर्म, टोपी, माला, छाप, तिलक, पीर, औलिया, पत्थर पूजने वाले और कुरान की व्याख्या करने वाले खोखले गुरु-शिष्यों को आडंबर बताकर, उनकी निंदा की गई है |