वसंत पानी की कहानी - नोट्स

CBSE पुनरावृति नोट्स
CLASS - 8 hindi
पाठ - 16 पानी की कहानी
- रामचंद्र तिवारी

पाठ का सारांश- इस पाठ में विज्ञान संबंधी विषय को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इसमें पानी का मानवीकरण करते हुए उसकी विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन किया गया है। इसमें पानी के निर्माण तथा उसके अस्तित्व बचाए रखने की जानकारी दी गई हैं। इसके अलावा ओस की एक बूँद अनेक अवस्थाओं से गुज़रकर वायु, बादल, समुद्र, ज्वालामुखी फिर नदी और नल के पानी से होते हुए पेड़ की पत्ती तक की यात्रा करने का वर्णन यानी ‘बूँद की कहानी उसी की जुबानी’ प्रस्तुत किया गया हैं।
लेखक अपने पथ पर बढ़ता जा रहा था कि बेर की झाड़ी के नीचे पहुँचते ही उसके हाथ पर ओस की बूँद आ गिरी। बूँद उसकी कलाई से सरककर हथेली पर आ गई। अचानक बूँद के दो कण हो गए। वे दोनों हिल-हिलकर कुछ स्वर उत्पन्न कर रहे थे। लेखक ने भी महसूस किया कि कहीं से ‘सुनी-सुनो’ की आवाज़ आ रही है। लेखक ने ध्यान से सुना तो पाया कि यह आवाज़ उन्हीं कणों से आ रही है। अब लेखक उस 'सुनी-सुनो' की आवाज़ को अनसुनी न कर सका। उसके ‘कहो’ कहते ही बूँद ने खुशी से कहा। “मैं ओस हूँ, जिसे लोग जल और पानी भी कहते हैं तथा मैं बेर के पेड़ से आई हूँ।” लेखक ने जिज्ञासावश पूछा, ‘क्या पेड़ में फव्वारा है?’ लेखक के अविश्वास से दुखी बूँद ने लेखक को अपनी कहानी बतानी शुरू की।
बूँद ने कहा जब वह ज़मीन में इधर-उधर घूम रही थी तभी पेड़ की असंख्य जड़ों ने उसे अपनी ओर खींच लिया। कुछ बूंदों को वे खा जाते हैं और कुछ को घृणापूर्वक बाहर फेंक देते हैं। वह (बूँद) अपने अंदर खनिज पदार्थों को लिए घूम रही थी कि एक रोएँ (जड़) ने उसे अपने अंदर खींच लिया। उसे कुछ आगे की ओर खींच रहे थे तो कुछ पीछे से आगे बढ़ने के लिए धक्का दे रहे थे। तीन दिन तक यह साँसत भोगने के बाद वह पत्तों से होकर निकल भागी। बाहर रात होनेवाली थी। सूर्य की शक्ति न मिल पाने के कारण वह उड़ न सकी। रातभर पत्तों पर पड़ी रहने के बाद लेखक को देखते ही उसके हाथ पर आ गिरी।
बूँद की कहानी सुनकर लेखक को दुख हुआ। उसने बूँद को कहा कि अब वह उसके हाथ पर सुरक्षित है। उसका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। सूरज निकलने में कुछ समय शेष था। उनकी शक्ति पाते ही बूँद उड़ जाती। सूरज निकलने तक का समय बिताने के लिए बूँद विचित्र घटनाओं से परिपूर्ण जीवन की कहानी सुनाने लगी।
बहुत समय पहले उसके (बूँद के) पुरखे हद्रजन (हाइड्रोजन) और ओषजन (ऑक्सीजन) नामक दो गैसों के रूप में सूर्यमंडल में विद्यमान थे। उनके वंशज अब भी वहाँ हैं। वे सूर्य का मुँह आलोकित किए हुए हैं। एक दिन की बात है कि एक प्रचंड प्रकाश-पिंड सूर्य की ओर बढ़ता आ रहा था। ऐसा लगा कि यह प्रकाश-पिंड सूर्य से टकराकर सब कुछ नष्ट कर देगा, पर वह सूर्य से सहस्रों मील दूर से निकल गया। सूर्य से लाखों गुना बड़े इस प्रकाश-पिंड की शक्ति इतनी अधिक थी कि सूर्य का एक भाग टूटकर उसके पीछे चला। यह टूटा भाग इतनी खिंचाव शक्ति न सहन कर पाने के कारण कई और खंडों में टूट गया। उन्हीं में से एक हमारी पृथ्वी है। उसका (बूँद का) ग्रह ठंडा होता गया और अरबों वर्ष पहले हद्रजन और ओषजन की रासायनिक प्रक्रिया के उपरांत उसका जन्म हुआ। अपना प्रत्यक्ष अस्तित्व गवाकर उन्होंने बूँद को पैदा किया, कुछ समय तक वह पृथ्वी के आसपास वाष्प रूप में मैंडराती रही। फिर क्या हुआ पता नहीं, पर जब उसे होश आया तो स्वयं को ठोस बर्फ के रूप में पाया। अब वह अपने भाप-रूप के सत्रहवें भाग में बची थी। उसने देखा कि उसके चारों ओर असंख्य साथी बिखरे पड़े हैं। सूर्य की किरणें पड़ने से इनका सौंदर्य बिखर जाता था। लाखों वर्ष यूँ ही आनंद में बीत गए। यह समय दाल में नमक के बराबर ही था। ऐसे दीर्घजीवी से बात करके लेखक स्वयं को धन्य मान रहा था।
बूँद ने बताया कि एक दिन अचानक उसके जैसे ही बर्फ बने भाई-बहनों के भार के कारण नीचेवाले भाई दब गए और पानी बन गए। इससे वे सभी फिसलते चले गए। वह कई मास समुद्र में यूँ ही भटकती रही। फिर एक दिन गर्म धार के प्रभाववश वह पिघलकर पानी बन गई और समुद्र के खारे पानी में मिल गई। अब तक वह जान चुकी थी कि समुद्र में भी नाना प्रकार के जीव-जंतुओं का साम्राज्य है। बूँद ने एक दिन समुद्र की गहराई में जाने का निश्चय किया। मार्ग में उसने नाना प्रकार के विचित्र जीव-जन्तु देखें जिनमें धीरे रंगनेवाले घोंघे, जालीदार मछलियाँ, भारी-भारी कछुवे, मनुष्य से अधिक लंबी मछलियाँ तथा लालटेन के प्रकाशवाली मछली देखी। इसके समीप जो भी अनजान जीव आता था, वह खा जाती थी। समुद्र में जाते हुए और अधिक गहराई में उसने जंगल देखा जहाँ छोटे ठिंगने, मोटे पत्तेवाले पेड़, पहाड़ियाँ और घाटियाँ हैं। इनकी गुफ़ाओं में रहनेवाले नाना प्रकार के जीव महा आलसी थे। उसे यह देखने में कई साल लग गए। इस समय वह पानी की तीन मील मोटी परत के नीचे थी। बूँद ज़मीन में घुसकर अपनी जान बचाने का प्रयास करने लगी। समुद्र के जलकण भी तो अपनी जान बचाने का यही तरीका अपनाते हैं। बूँद अपने अन्य भाइयों के साथ चट्टान में घुस गई। कई वर्षों तक कई मील मोटी चट्टान में रहने के बाद वह अपने साथियों के साथ पृथ्वी का रहस्य जानने निकल पड़ी। वह अपने साथियों के साथ ऐसी जगह पर पहुँची जहाँ कुछ भी ठोस न था। बड़ी-बड़ी लाल-पीली चट्टानें बहने के लिए उतावली थीं। उतावली तथा खुशी में डूबी बूँद अचानक ऐसी जगह पहुँची जहाँ तापमान बहुत ऊँचा था। अपनी जान बचाने के लिए वह दूसरे स्थान की ओर भाग निकली। अचानक एक बड़ा-सा धमाका हुआ और वह अपने साथियों समेत बाहर फेंक दी गई। वह आकाश में उड़ चली। उसने पीछे मुड़कर देखा कि पृथ्वी फट गई है। उसमें से धुआँ, रेत, पिघली धातुएँ तथा लपटें निकल रही हैं। वह इस शानदार दृश्य को देखने के लिए बार-बार इच्छुक थी। मनुष्य इसे ‘ज्वालामुखी’ कहते हैं।
आसमान में उसे भाप का बड़ा दल मिला तथा उसकी सहेली आँधी भी मिली। आँधी उसे पीठ पर लादे इधर-उधर घुमाती थी। आसमान में स्वच्छंद किलोलें करना उसे बहुत अच्छा लग रहा था। बहुत-से भाप-कणों के मिलने के कारण वह भारी हो गई और बूँद बनकर पहाड़ पर कूद पड़ी। अन्य साथियों के साथ मैली-कुचैली होकर बहने में अद्भुत आनंद का अनुभव किया। वह अब अपने साथियों के साथ एक चट्टान पर गिरी जिससे चट्टान टूटकर खंड-खंड हो गई। उसकी इच्छा अब समतल भूमि पर जाने की थी इसलिए वह एक छोटी धारा में मिल गई। सरिता के वे दिन बड़े मज़े के थे। बहते-बहते एक दिन वह नगर के पास पहुँची। नदी के तट पर एक चिमनी देखकर उसकी उत्सुकता बढ़ी। वह उधर बढ़ी कि एक मोटे पाइप में खींच ली गई और किस्मत से एक दिन वह नल के टूटे भाग से वह भाग निकली और पृथ्वी में समा गई तथा घूमफिरकर इस बेर के पेड़ के पास आ पहुँची थी।
अब तक सूर्य निकल चुका था। सूर्य की शक्ति पाकर ओस की बूँद धीरे-धीरे छँटी और गायब हो गई।