अंतरा - अमरकांत - पुनरावृति नोट्स

 CBSE कक्षा 11 हिंदी (ऐच्छिक)

अंतरा गद्य-खण्ड
पाठ-2 दोपहर का भोजन
पुनरावृत्ति नोट्स


विधा- कहानी
कहानीकारी- अमरकांत

जीवन-परिचय-

  • जन्म जुलाई सन् 1925 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के भगलपुर (नगरा) नामक गाँव में। वास्तविक नाम-श्रीराम वर्मा।

रचनाएँ-

  • कहानी संग्रह- जिन्दगी और जोंक, देश के लोग, मौत का नगर, मित्र-मिलन, कुहासा आदि।
  • उपन्यास- सूखा पता, पराई डाल का पंछी, सुख-जीवी, बीच की दीवार, काले उजले दिन, ग्राम सेविका, इन्हीं हथियारों से आदि।

साहित्यिक विशेषताएँ-

  1. अमरकांत नई कहानी आंदोलन के एक प्रमुख कहानीकार हैं।
  2. चित्रात्मकता।

भाषा-शैली-

  • इन्होंने अपनी अधिकांश कहानियों में बोल-चाल की सहज, सरल भाषा का प्रयोग किया है। प्रसंग व पात्रानुसार आंचलिक मुहावरों व शब्दों के प्रयोग से भाषा रोचक व जीवंत बन गई है। कहीं-कहीं तत्सम् शब्दों के अतिरिक्त अरबी, फारसी, अंग्रेजी व देशज शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। वर्णनात्मक शैली को प्रभावी बनाने के लिए संवादों का यदा-कदा प्रयोग।

पाठ-परिचय-

  • ‘दोपहर का भोजन’ गरीबी से जूझते एक निम्न मध्यवर्गीय शहरी परिवार की कहानी है। जिसके मुखिया की अचानक नौकरी छूट जाने के कारण परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो जाता है। परिवार के सदस्यों को भरपेट भोजन तक नसीब नहीं हो रहा है। पूरे परिवार का संघर्ष भावी उम्मीदों पर टिका है। सिद्धेश्वरी संकट की इस घड़ी में परिवार के सभी सदस्यों को एकजुट एवं चिंतामुक्त रखने का अथक प्रयास करती है। वह अपने परिवार को टूटने से बचाने का हर संभव प्रयत्न करती है।

स्मरणीय बिन्दु-

  • सिद्धेश्वरी तथा मुंशीजी के परिवार में उनके अतिरिक्त उनके तीन पुत्र हैं- 21 वर्षीय बड़ा बेटा रामचंद्र, 18 वर्षीय मैंझला बेटा मोहन तथा छः वर्षोंय छोटा बेटा प्रमोद।
  • रामचंद्र एक स्थानीय दैनिक समाचार-पत्र के दफ्तर में प्रूफ रीडींग का काम सीखता है तथा नौकरी की तलाश में हैं। मोहन हाईस्कूल के इम्तिहान की तैयारी कर रहा है।
  • दोपहर का भोजन- सिद्धेश्वरी पाठ की जीवंत पात्र, वह अत्यंत अभाव में अपने परिवार की गाड़ी को खींच रही है। परिवार की स्थिति अत्यंत दयनीय होने पर भी वह परिवार को जोड़ने का पूरा प्रयास करती है। परिवार को जोड़े रखने के लिए वह झूठ का सहारा भी लेती है। उसका अथक प्रयास रहा है कि घर के सभी सदस्यों को सुख पहुँचाए, भले ही स्वयं कष्टों में जीती रहे। वह परिवार के सदस्यों के सामने एक दूसरे की कमी न बताकर उनकी बातों को छिपाती है ताकि किसी भी सदस्य को मानसिक कष्ट न हो। ये सभी बातें उसके अपार धैर्य को दर्शाती हैं। सिद्धेश्वरी ने झूठ बोलकर कोई पाप नहीं किया बल्कि परिवार के सभी सदस्यों को एक-दूसरे से जोड़े रखा है। ऐसा झूठ जो किसी भलाई के लिए बोला जाए उसे बोलने में कोई बुराई नहीं है।
  • घर के सभी सदस्य रामचंद्र, मोहन तथा मुंशीजी बारी-बारी भोजन के लिए आते हैं। सभी मन ही मन इस वास्तविकता से परिचित हैं कि घर में पर्याप्त भोजन नहीं है। वे सभी कुछ न कुछ बहाना बनाकर आधे पेट ही भोजन करके उठ जाते हैं।
  • रामचंद्र के भोजन के दौरान सिद्धेश्वरी मंझले बेटे मोहन की पढ़ाई की झूठी तारीफ करती है। वह मोहन से झूठमूठ कहती है कि रामचंद्र उसकी प्रशंसा करता है। मुंशी जी से भी वह झूठ बोलती है कि रामचंद्र उन्हें देवता के समान कहता है। ‘मकान किराया नियंत्रण विभाग के क्लर्क के पद से उनकी छंटनी हो चुकी थी और आजकल मुंशीजी काम की तलाश में हैं। मुंशी जी भोजन करते समय सिद्धेश्वरी से नजरें चुराते हैं। उन्हें मालूम हैं कि घर में भोजन बहुत कम है और वह स्वयं को इस स्थिति का जिम्मेदार मानते हैं।
  • भोजन के दौरान सिद्धेश्वरी एवम् मुंशी जी असंबद्ध बातें करते हैं जैसे बारिश का न होना, मक्खियों का होना, फूफा की बीमारी तथा गंगाशरण बाबू की लड़की की शादी-हालांकि इन बातों का कोई महत्व नहीं है फिर भी ये सभी बातें पाठ से जुड़ी हुई है। ये सभी बातें उनके मन की व्यथा, जीवन के अभाव आदि को दर्शाती हैं। इन बातों को करके शायद वे मूल विषय (गरीबी एवं अभाव) से बचना चाहते थे तथा अपने दुखों को कम करना चाहते थे।
  • सिद्धेश्वरी पर्याप्त भोजन न होते हुए भी सदस्यों से और भोजन लेने का आग्रह करती है। ऐसा करके वह घर के सदस्यों को गरीबी एवं अभाव का एहसास नहीं होने देना चाहती। वह सदस्यों की एक-दूसरे के विषय में झूठी तारीफ करके गरीबी, अभावग्रस्त एवं संघर्षपूर्ण वातावरण में भी उन्हें एकजुट तथा खुशहाल रखने की कोशिश करती है।
  • सबको भोजन करवाने के पश्चात् सिद्धेश्वरी जब स्वयं भोजन करने बैठती है। तो उसके हिस्से थोड़ी-सी दाल, जरा-सी चने की तरकारी तथा मात्र एक रोटी आती है। तब उसे अचानक अपने सबसे छोटे पुत्र प्रमोद का ध्यान आता है, जिसने अभी तक भोजन नहीं किया था। वह आधी रोटी तोड़कर प्रमोद के लिए रख देती है। तथा शेष आधी लेकर भोजन करने बैठ जाती है। पहला ग्रास मुँह में रखते ही उसकी आँखों से टपटप आँसू गिरने लगे जो उसकी विवशता को बयान करते हैं।