आय और रोज़गार का निर्धारण - नोट्स

CBSE कक्षा 12 अर्थशास्त्र
पाठ - 4 आय निर्धारण

पुनरावृत्ति नोट्स

स्मरणीय बिन्दु-
  • एक अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों द्वारा एक दिए हुए आय स्तर पर एवं एक निश्चित समयावधि में समस्त अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के नियोजित क्रय के कुल मूल्य को समग्र मांग कहते हैं। एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं व सेवाओं की कुल मांग को समग्र मांग (AD) कहते हैं इसे कुल व्यय के रूप में मापा जाता है।
आय व रोजगार का परंपरावादी सिद्धांत (Classical Theory of Income and Employment)
  • अर्थव्यवस्था सदा पूर्ण रोजगार की स्थिति में रहती हैं-
    • यह से (Say) के बाज़ार नियम पर आधारित हैं। उपर्युक्त मत फ्रांसीसी अर्थशास्त्र जे०बी०से० द्वारा प्रतिपादित बाज़ार नियम यह हैं कि 'पूर्ति अपनी माँग स्वयं उत्पन्न करती हैं' अर्थात उत्पादन की प्रत्येक क्रिया से आय सृजित होती है और आय से माँग उत्पन्न होती हैं जिससे समस्त उत्पादन बिक जाते हैं।
    • लोचशील कीमत, लोचशील ब्याज-दर, लोचशील मजदूरी के कारण अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार संतुलन की अवस्था स्वतः स्थापित हो जाती है।
समग्रपूर्ति पर परंपरावादी व केन्स का मत (Classical and Keynsian opinion on AS)
  • केन्सीय विचारधारा के अनुसार 'समग्र पूर्ति कीमतों के प्रति पूर्ण लोचदार होती है। 'दूसरे शब्दों में सभी फर्में चालू कीमतों पर वस्तु की कितनी ही मात्रा उत्पादन करने को तैयार रहती है। जब तक पूर्ण रोजगार की स्थिति प्राप्त नहीं हो जाती। फलस्वरूप केन्सीय समग्र पूर्ति वक्र रोजगार की स्थिति प्राप्त होने से पहले पूर्ण लोचदार होता है जिसका कारण ये दो मान्यताएँ हैं-
    1. मज़दूरी-कीमत कठोरता, 2. श्रम की स्थिर सीमांत उत्पादित मान्यताएँ
समग्र माँग का अर्थ एवं घटक (Meaning Components of Aggregate Demand or AD)
  • समग्र माँग का आशय उस मुद्रा राशि से है जिसे समस्त क्रेता अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं के क्रय पर, किसी विशेष अवधि में, खर्च करने को तैयार है।
    जहाँ C = निजी उपभोग माँग
    I = निजी निवेश माँग, G = सरकारी व्यय, X - M = शुद्ध निर्यात
    AD = C + I + G + (X - M) दो क्षेत्र वाली अर्थव्यवस्था में (AD = C + I)
समग्र पूर्ति (Aggregate Supply or AS)
  • अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल पूर्ति को मोटे रूप में समग्र पूर्ति कहते हैं।
उपभोग फलन (Consumption Function)
  • आय और उपभोग के बीच फलनात्मक संबंध को उपभोग प्रवृत्ति (या उपभोग फलन) कहते हैं अर्थात् आय का कितना भाग, उपभोग वस्तुओं पर खर्च किया गया है।
  • उपभोग फलन को हम निम्न समीकरण द्वारा प्रकट करते हैं। C = a + by
बचत फलन (Saving Function)
  • आय में से उपभोग पर खर्च करने के बाद शेष भाग बचत कहलाती हैं। सूत्र के रूप में
    बचत = आय - उपभोग
  • आय और बचत में फलनात्मक संबंध को बचत प्रवृत्ति या बचत फलन कहते हैं।
    सूत्र के रूप में- S = f(y) यहाँ S = बचत, Y = आय, f = फलनात्मक सम्बन्ध
  • बचत फलन का समीकरण - S = S¯ + MPS.Y
औसत उपभोग प्रवृत्ति (Average Propensity to Consume or APC)
  • समग्र उपभोग और समग्र आय के अनुपात की औसत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं। यह कुल आय का वह भाग है जो उपभोग पर खर्च किया जाता हैं।
  • समीकरण के रूप में: APC=Cy
APC के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण बिन्दु
  1. APC इकाई से अधिक रहता है जब तक उपभोग राष्ट्रीय आय से अधिक होता है। समविच्छेद बिन्दु से पहले, APC > 1.
  2. APC = 1 समविच्छेद बिन्दु पर यह इकाई के बराबर होता है जब उपभोग और आय बराबर होता है। C = Y
  3. आय बढ़ने के कारण APC लगातार घटती है।
  4. APC कभी भी शून्य नहीं हो सकती, क्योंकि आय के शून्य स्तर पर भी स्वायत उपभोग होता है।
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Consume or MPC)
  • आय परिवर्तन के कारण, उपभोग में परिवर्तन के अनुपात को, सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) कहते हैं।
    MPC=ΔCΔY
  • MPC का मान शून्य तथा एक के बीच में रहता है। लेकिन यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय उपभोग हो जाती है तब ΔC=ΔY अतः MPC = 1, इसी प्रकार यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय की बचत कर ली जाती है तो ΔC=0, अतः MPC = 0.
औसत बचत प्रवृत्ति (Average Propensity to Save on APS)
  • कुल बचत और कुल आय का अनुपात, औसत बचत प्रवृत्ति (APS) कहलाती है। कुल बचत (S) को कुल आय (Y) से भाग करने पर APS ज्ञात किया जाता है।
  • सूत्र के रूप में- APS=SY
औसत बचत प्रवृत्ति APS की विशेषताएँ
  1. APS कभी भी इकाई या इकाई से अधिक नहीं हो सकती क्योंकि कभी भी बचत आय के बराबर तथा आय से अधिक नहीं हो सकती।
  2. APS शून्य हो सकती है: समविच्छेद बिन्दु पर जब C = Y है तब S = 0.
  3. APS ऋणात्मक या इकाई से कम हो सकता है। समविच्छेद बिन्दु से नीचे स्तर पर APS ऋणात्मक होती है। क्योंकि अर्थव्यवस्था में अबचत (Dissavings) होती है तथा C > Y.
  4. APS आय के बढ़ने के साथ बढ़ती हैं।
सीमांत बचत प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Save on MPS)
  • आय में परिवर्तन के फलस्वरूप बचत में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत बचत प्रवृत्ति MPS कहते हैं।
  • समीकरण के रूप में- APS=ΔSΔY
  • MPS का मान शून्य तथा इकाई (एक) के बीच में रहता है। लेकिन यदि-
    1. यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय की बचत की ली जाती है, तब ΔS=ΔY, अतः MPS = 1.
    2. यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय, उपभोग कर ली जाती है, तब ΔS=0, अतः MPS = 0.
औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) तथा औसत प्रवृत्ति (APS) में सम्बन्ध
  • सदैव APC + APS = 1 यह सदैव ऐसा ही होता है, क्योंकि आय को या तो उपभोग किया जाता है या फिर आय की बचत की जाती है।
    प्रमाण: Y = C + S दोनों पक्षों का Y से भाग देने पर
    YY=CY+SY
    1 = APC + APS अथवा APC = 1 - APS या APS = 1-APC। इस प्रकार APC तथा APS का योग हमेशा इकाई के बराबर होता है।
MPC और MPS में संबंध (Relationship between MPC and MPS)
  • सदैव MPC + MPS = 1; MPC हमेशा सकारात्मक होती है तथा 1 से कम होती है। इसलिए MPS भी सकारात्मक तथा 1 से कम होनी चाहिए। प्रमाण ΔY=ΔC+ΔS.
    दोनों पक्षों को AY से भाग करने पर
    ΔYΔY=ΔCΔY+ΔSΔY
    1 = MPC + MPS अथवा MPC = 1 - MPS अथवा MPC = 1 - MPC
  • एक अर्थव्यवस्था में एक वित्तीय वर्ष में पूँजीगत वस्तुओं के स्टॉक में वृद्धि को पूँजी निर्माण / निवेश कहते हैं।
    1. प्रेरित निवेश
    2. स्वतंत्र निवेश
समता बिंदु (Break-even Point)
  • समता बिंदु से तात्पर्य आय के स्तर में उस बिंदु से है जिस बिंदु पर उपभोग, आय के बराबर हो जाता है।
निवेश फलन
  • निवेश से अभिप्राय एक लेखावर्ष में अर्थव्यवस्था की वास्तविक पूँजी के स्टॉक (जैसे मशीनों इमारतों, माल आदि का स्टॉक) में शुद्ध वृद्धि से है। यह दो प्रकार का होता है-
    1. प्रेरित निवेश
    2. स्वायत्त निवेश
आय तथा रोजगार के संतुलन स्तर का निर्धारण (Determination of Equilibrium Level of Income and Employment)
  • आय तथा रोजगार निर्धारण के आधुनिक सिद्धांत के अनुसार, किसी अर्थव्यस्था में किसी निश्चित समय में, आय तथा रोजगार का निर्धार्न उस स्तर पर होता है। जहाँ समग्र माँग तथ समग्र पूर्ति बराबर होते हैं। इस स्थिति में बचत तथा निवेश भी बराबर होते हैं।
निवेश गुणक (Investment Multiplier)
  • निवेश में वृद्धि के फलस्वरूप, आय में वृद्धि के अनुपात का निवेश गुणक कहते हैं।
निवेश गुणांक (K) का MPC और MPS से संबंध (Relationship of Multiplier with MPC and MPS)
  • K=11MPC=1MPS
  • गुणक (K) और MPC में सीधा संबंध है अर्थात् MPC बढ़ने पर गुणक बढ़ता है और MPC घटने पर गुणक भी घटता है।
  • गुणक (K) और MPS में विपरीत संबंध है अर्थात् MPS बढ़ने से गुणक कम हो जाता है और MPS गिरने से गुणक बढ़ जाता है।
अवस्फीतिक अंतराल और इसका माप (Deflationary Gap and its Measurement)
  • किसी अर्थव्यस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति को बनाए रखने के लिए जितनी समग्र माँग की आवश्यकता होती है, यदि समग्र माँग उससे कम हो तो इन दोनों के अंतर को अवस्फीतिक अंतराल कहा जाता है, ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था में अनैच्छिक बेरोजगारी पाई जाती है।
अधिमाँग (Excess DEmand)
  • अधिमाँग से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें समग्र माँग अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार स्तर के अनुरूप समग्र पूर्ति से अधिक होती है।
अधिमाँग को ठीक करने के उपाय (Measures to Correct Excess Demand)
  • राजकोषीय नीति या बजट घाटे में कमी
  • आय नीति
  • व्यय नीति
  • सार्वजनिक ऋण
  • घाटे की वित्त व्यवस्था
  • मौद्रिक नीति
  • मात्रात्माक्र उपाय
    • बैंक दर
    • खुले बाजार की क्रियाएँ
    • नकद-रिजर्व अनुपात
    • सांविधिक तरल अनुपात
  • गुणात्मक उपाय
    • सीमांत आवश्यकताएँ
    • नैतिक दबाव
न्यून (अभावी) माँग को ठीक करने के उपाय (Measures to Correct Deficient Demand)
  • राजकोषीय नीति
    1. सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
    2. करों में कमी
    3. सार्वजनिक ऋणों में कमी
    4. घाटे की वित्त व्यवस्था
  • मौद्धिक नीति
    1. बैंक दर
    2. खुली बाज़ार प्रक्रिया
    3. सदस्य बैंकों के रिजर्व अनुपात में परिवर्तन
    4. सीमांत अनिवार्यताओं में परिवर्तन
  • एक अर्थव्यवस्था की सभी उत्पादक इकाईयों द्वारा एक निश्चित समयावधि में सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के नियोजित उत्पादन के कुल मूल्य को समग्र पूर्ति कहते हैं। समग्र पूर्ति के मौद्रिक मूल्य को ही राष्ट्रीय आय कहते हैं। अर्थात् राष्ट्रीय आय सदैव समग्र पूर्ति के समान होती है।
    AS = C + S
  • समग्र पूर्ति देश के राष्ट्रीय आय को प्रदर्शित करती है।
    AS = Y (राष्ट्रीय आय)
  • उपभोग फलन आय (Y) और उपभोग (C) को बीच फलनात्मक सम्बन्ध को दर्शाता है।
    C = f(Y)
    यहाँ C = उपभोग, Y = आय, f = फलनात्मक सम्बन्ध
    उपभोग फलन की समीकरण: C = C¯ + MPC. Y
    स्वायत्त उपभोग (C¯): आय के शून्य स्तर पर जो उपभोग होता है उसे स्वायत्त उपभोग कहते हैं। जो आय में परिवर्तन होने पर भी परिवर्तित नहीं होता है, अर्थात् यह आय बेलोचदार होता है।
  • प्रेरित निवेश- प्रेरित निवेश वह निवेश है जो लाभ कमाने कफी भावना से प्रेरित होकर किया जाता है। प्रेरित निवेश का आय से सीधा सम्बन्ध होता है।
  • स्वतंत्र (स्वायत्त ) निवेश- स्वायत्त निवेश वह निवेश है जो आय के स्तर में परिवर्तन से प्रभावित नहीं होता अर्थात् आय निरपेक्ष होता है।
  • नियोजित बचत- एक अर्थव्यवस्था के सभी गृहस्थ (बचतकर्ता) एक निश्चित समय अवधि में आय के विभिन्न स्तरों पर जितनी बचत करने की योजना बनाते हैं, नियोजित बचत कहलाती है।
  • नियोजित निवेश- एक अर्थव्यवस्था को सभी निवेशकर्ता आय को विभिन्न स्तरों पर जितना निवेश करने की योजना बनाते हैं, नियोजित निवेश कहलाती है।
  • वास्तविक बचत- अर्थव्यवस्था में दी गई अवधि के अंत में आय में से उपभोग व्यय घटाने के बाद, जो कुछ वास्तव में शेष बचता है, उसे वास्तविक बचत कहते हैं।
  • वास्तविक निवेश- किसी अर्थव्यवस्था में एक वित्तीय वर्ष में किए गए कुल निवेश को वास्तविक निवेश कहा जाता है। इसका आकलन अवधि के समाप्ति पर किया जाती है।
  • आय का संतुलन स्तर- आय का वह स्तर है जहाँ समग्र माँग, उत्पादन के स्तर (समग्र पूर्ति) क बराबर होती है अत: AD = AS या S = I.
  • पूर्ण रोजगार- इससे अभिप्राय अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति से है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति जो योग्य है तथा प्रचलित मौद्रिक मजदूरी की दर पर काम करने को तैयार है, को रोजगार मिल जाता है।
  • ऐच्छिक बेरोजगारी- ऐच्छिक बेरोजगारी से अभिप्रायः उस स्थिति से है, जिसमें बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य उपलब्ध होने के बावजूद योग्य व्यक्ति कार्य करने को तैयार नहीं है।
  • अनैच्छिक बेरोजगारी- अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति है जहाँ कार्य करने के इच्छुक व योग्य व्यक्ति प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य करने के लिए इच्छुक है लेकिन उन्हें कार्य नहीं मिलता।
  • निवेश गुणक- निवेश में परिवर्तन को फलस्वरूप आय में परिवर्तन को अनुपात को निवेश गुणक कहते हैं।
    K=ΔYΔI या अथवा K=11MPC अथवा K=1MPS. इसका अधिकतम मान अनंत तथा न्यूनतम मान एक होता है।
  • जब समग्र मांग (AD), पूर्ण रोजगार स्तर पर समग्र पूर्ति (AS) से अधिक हो जाए तो उसे अत्यधिक मांग कहते हैं।
  • जब समग्र मांग (AD), पूर्ण रोजगार स्तर पर समग्र पूर्ति (AS) से कम होती है, उसे अभावी माँग कहते हैं।
  • स्फीति अंतराल, वास्तविक समग्र मांग और पूर्ण रोजगार संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक समग्र मांग के बीच का अंतर होता है। यह समग्र मांग के आधिक्य का माप है। यह अर्थव्यवस्था में स्फीतिकारी प्रभाव उत्पन्न करता है।
  • अवस्फीति अंतराल, वास्तविक समग्र मांग और पूर्ण रोजगार संतुलन को बनाए रखने के आवश्यक समग्र मांग के बीच का अंतर होता है। यह समग्र मांग में कमी का माप है। यह अर्थव्यवस्था अवस्फीति (मंदी) उत्पन्न करता है।
अधिमांग (स्फीतिक अंतराल) तथा अभावी मांग (अवस्फीतिक अंतराल) के नियंत्रत काने की विधियाँ
  • राजकोषीय उपाय या राजकोषीय नीति
    • कर की दर में परिवर्तन
    • सार्वजनिक व्यय में परिवर्तन
    • सार्वजनिक ऋण में परिवर्तन
    • घाटे की वित्त व्यवस्था (नये नोटों की छपाई)
  • मौद्रिक उपाय या मौद्रिक नीति
    • परिमाणात्मक उपाय
      • बैंक दर
      • रेपो दर
      • रिवर्स रेपो दर
      • खुले बाजार की क्रियाएँ
      • वैधानिक तरलता अनुपात
      • नगद आरक्षित अनुपात
    • गुणात्मक / चयनात्मक उपाय
      • सीमांत आवश्यकता का
      • निर्धारण
      • साख की राशनिंग