पृथ्वी पर जीवन-पुनरावृति नोट्स

                                                                    सीबीएसई कक्षा - 11

विषय - भूगोल
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 15 पृथ्वी पर जीवन


महत्त्वपूर्ण तथ्य-

  • सभी पौधों, जंतुओ, प्राणियों (जिसमें पृथ्वी पर रहने वाले सूक्ष्म जीव भी हैं) और उनके चारों ओर के पर्यावरण के पारस्परिक अंतर्संबंधन से जैवमंडल बना है।
  • जैवमंडल तथा इसके घटक पर्यावरण के ज़्यादा आवश्यक तत्व हैं।
  • परिस्थितिकी शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दो ओइकोस एवं लोजी से मिलकर बना है। ओइकोस का शाब्दिक अर्थ, घर तथा लोजी का अर्थ विज्ञान के अध्ययन से है।
  1. सम्पूर्ण पृथ्वी पर जीवन पाया जाता है। समुद्री तल से हवा में कई किलोमीटर तक, सूखी घाटियों में, जीवधारी विषुवत वृत्त से ध्रुवों तक, बर्फीले जल में, जलमग्न भागों में व हज़ारों मीटर गहरे धरातल के भौम जल तक में पाए जाते हैं।
  2. पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवधारी जो मिलकर जैवमंडल बनाते हैं-ये पर्यावरण के दूसरे मंडलों के साथ पारस्परिक क्रिया करते हैं। जैवमंडल में पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवित घटक  सम्मिलित हैं।
  3. जैवमंडल सभी पौधों, जंतुओं, प्राणियों व उनके चारों ओर के पर्यावरण के पारस्परिक अंतर्संबंध से बना है।ज़्यादातर जीव स्थलमंडल पर ही मिलते हैं लेकिन कुछ जलमंडल तथा वायुमंडल में भी रहते हैं। बहुत से ऐसे जीव भी हैं, जो एक मंडल से दूसरे मंडल में स्वतंत्र रूप से विचरण करते हैं।
  4. पर्यावरण के महत्त्वपूर्ण तत्व जैवमंडल के घटक हैं। ये तत्व अन्य प्राकृतिक घटकों, जैसे-भूमि, जल व मिट्टी के साथ पारस्परिक क्रिया करते हैं। ये वायुमंडल के तत्वों जैसे तापमान, वर्षा, आर्द्रता व सूर्य के प्रकाश से भी प्रभावित होते हैं।
  5. इकोलोजी शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों 'ओइकोस' और 'लोजी' से मिलकर बना है। ओइकोस का शाब्दिक अर्थ 'घर' तथा 'लोजी' का अर्थ विज्ञान या अध्ययन से है। शाब्दिक अर्थानुसार इकोलोजी पृथ्वी पर मनुष्यों, जंतुओं, पौधों व सुक्ष्म जीवाणुओं के 'घर' के रूप में अध्ययन है।
  6. जर्मन प्राणीशास्त्री अर्नस्ट हैक्कल ने सबसे पहले सन् 1869 में आइकोलोजी शब्द का इस्तेमाल किया, पारिस्थितिकी के ज्ञाता के रूप में जाने जाते हैं। जैविक व अजैविक घटकों के परस्पर संपर्क के अध्ययन को ही पारिस्थितिकी विज्ञान कहते हैं। अतः जीवधारियों का आपस में व उनका भौतिक पर्यावरण से अंतर्संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन भी पारिस्थितिकी है।
  7. परितंत्र मुख्यतः दो प्रकार के हैं-स्थलीय परितंत्र व जलीय परितंत्र। स्थलीय परितंत्र को पुनः बायोम में विभाजित किया जा सकता है।
  8. बायोम पौधों व प्राणियों का एक समुदाय है, जो एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है। पृथ्वी पर विविध बायोम की सीमा का निर्धारण जलवायु व अपक्षय संबंधी तत्व करते हैं।

    विश्व में प्रमुख बायोम
    • वन
    • पर्वतीय
    • मरुस्थलीय
    • घास भूमि
    • जलीय
  9. संरचना की दृष्टि से सभी परितंत्र में जैविक व अजैविक कारक होते हैं। अजैविक या भौतिक कारकों में वर्षा, सूर्य का प्रकाश, आर्द्रता, मृदा की स्थिति, तापमान, व अजैविक या अकार्बनिक तत्व (नाइट्रोजन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटशियम, कार्बन डाइऑक्साइड, जल आदि) सम्मिलित हैं।
  10. जैविक कारकों में उत्पादक, उपभोक्ता (प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक) तथा अपघटक सम्मिलित हैं। उत्पादकों में सभी हरे पौधे में शामिल हैं जो प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के माध्यम से  अपना भोजन स्वम बनाते हैं।
  11. प्रथम श्रेणी के उपभोक्ताओं में शाकाहारी जंतु जैसे-हिरण, बकरी, चूहे और सभी पौधों पर निर्भर जीव शामिल हैं। द्वितीयक श्रेणी के उपभोक्ताओं में सभी माँसाहारी, जैसे-साँप, बाघ, शेर आदि शामिल हैं।
  12. अपघटक से अभिप्राय, जो मृत जीवों पर निर्भर हैं, जैसे-कौवा और गिद्ध तथा कुछ अन्य अपघटक, जैसे-बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्म जीवाणु मृतकों को अपघटित कर उन्हें सरल पदार्थों में परिवर्तित करते हैं।
  13. परितंत्र के जीवाणु एक खाद्य शृंखला से परस्पर जुड़े हुए होते हैं। उदाहरण:-पौधे पर जीवित रहने वाला एक कीड़ा एक मेढ़क का भोजन है, जो मेंढक साँप का भोजन है और साँप एक बाज द्वारा खा लिया जाता है। यह खाद्य क्रम और इस क्रम से एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा प्रवाह ही खाद्य शृंखला कहलाती है।
  14. सामान्यतः दो तरह की खाद्य शृंखलाएँ मिलती हैं-चराई खाद्य शृंखला तथा अपरद खाद्य शृंखला। चराई खाद्य शृंखला पौधों से शुरू होकर माँसाहारी तक चली जाती है, जिसमें शाकाहारी मध्यम स्तर पर है।
  15. संसार के प्रमुख बायोम-घासभूमि बायोम, जलीय बायोम, वन बायोम, मरुस्थलीय बायोम तथा उच्च प्रादेशीय बायोम।
  16. ऊर्जा का मूल स्रोत सूर्य है,जिसके अंतर्गत संपूर्ण जीवन निर्भर है। यही ऊर्जा जैवमंडल में प्रकाश संश्लेषण क्रिया के माध्यमसे जीवन प्रक्रिया शुरू करती है जो हरे पौधों के लिए भोजन व ऊर्जा का मुख्य नींव है।
  17. धरती पर पहुँचने वाले सूर्याताप का बहुत छोटा भाग (केवल 0.1 प्रतिशत) प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में काम आता है। इसका आधे से ज़्यादा भाग पौधे की श्वसन विसर्जन क्रिया में और शेष भाग अस्थायी रूप से पौधे के अन्य भागों में संचित हो जाता है।
  18. प्रकाश संश्लेषण क्रिया का प्रमुख सह परिणाम ऑक्सीजन है। सूर्य प्रकाश में प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान जल अणुओं के विघटन से ऑक्सीजन उत्पन्न होता है और पौधों की वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया के समय भी यह वायुमंडल में पहुँचता है।
  19. कुछ अन्य जंतु पौधों व प्राणियों के भक्षण से खनिज का निर्माण होता है। जीवधारियों की मृत्यु के बाद ये खनिज अपघटित व प्रवाहित होकर मिट्टी व जल में मिल जाते हैं।