फणीश्वर नाथ रेणु - महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

 सीबीएसई कक्षा -12 हिंदी कोर

महत्वपूर्ण प्रश्न
पाठ – 14

फणीश्वर नाथ रेणु (पहलवान की ढोलक)


महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

1. ‘ढोल में तो जैसे पहलवान की जान बसी थी’ - ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।

उत्तर- लुट्टन सिंह जब जवानी के जोश में आकर चाँद सिंह नामक मँजे हुए पहलवान को ललकार बैठा, तो सारा जनसमूह, राजा और पहलवानों की समूह आदि की यह धारणा थी कि यह कच्चा किशोर जिसने कुश्ती कभी सीखी नहीं है, पहले दाँव में ही ढेर हो जाएगा। हालाँकि लुट्टन सिंह की नसों में बिजली और मन में जीत का जज़्बा उबाल खा रहा था। उसे किसी की परवाह ने थी। हाँ ढोल की थाप में उसे एक-एक दाँव-पेंच का मार्गदर्शन जरूर मिल रहा था। उसी थाप का अनुसरण करते हुए उसने ‘शेर के बच्चे’ को खूब धोया, उठा-उठा कर पटका और हरा दिया। इस जीत में एक मात्र ढोल ही उसके साथ था। अतः जीतकर वह सबसे पहले ढोल के पास दौड़ा और उसे प्रणाम किया।

2. ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी के प्रारंभ में चित्रित प्रकृति का स्वरूप कहानी की भयावहता की ओर संकेत करता है। इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर- कहानी के प्रारंभ में प्रकृति का स्वरूप कहानी की भयावहता की ओर संकेत करता है। रात के भयावह वर्णन में बताया गया है कि चारों तरफ सन्नाटा है। सियारों का क्रंदन व उल्लू की डरावनी आवाज निस्तब्धता को कभी-कभी भंग कर देती थी। गाँव की झोंपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज़ सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकारकर रो पड़ते थे। इससे रात्रि की निस्तब्धता में बाधा नहीं पड़ती थी।

3. पहलवान लुट्टन के सुख-चैन भरे दिनों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर- पहलवान लुट्टन के सुख-चैन के दिन तब शुरू हुए जब उसने चाँद सिंह को कुश्ती में हराकर अपना नाम रोशन किया। राजा ने उसे दरबार में रखा। इससे उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन व राजा की स्नेह-दृष्टि मिलने से उसने सभी नामी पहलवानों को जमीन सुँघा दी। अब वह दर्शनीय जीव बन गया। मेलों में वह लंबा चोगा व अस्त-व्यस्त पगड़ी पहनकर मस्त हाथी की तरह चलता था। हलवाई उसे मिठाई खिलाते थे।

4. लुट्टन के राज-पहलवान बन जाने के बाद की दिनचर्या पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- लुट्टन जब राज-पहलवान बन गया तो उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन मिलने से वह राज दरबार का दर्शनीय जीव बन गया। ठाकुरबाड़े के सामने पहलवान गरजता-‘महावीर’। लोग समझ लेते पहलवान बोला। मेलों में वह घुटने तक लंबा चोगा पहनकर अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मतवाले हाथी की तरह चलता था। मेले के दंगल में वह लैंगोट पहन, शरीर पर मिट्टी मलकर स्वयं को साँड़ या भैंसा साबित करता रहता था।

5. ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी का प्रतिपाद्य बताइए।

अथवा

‘पहलवान की ढोलक’ पात्र के आधार पर लुट्टन का चरित्र-चित्रण कीजिए।

उत्तर- लुट्टन पहलवान के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(i) व्यक्तित्व-लुट्टन सिंह लंबा-चौड़ा व ताकतवर व्यक्ति था। वह लंबा चोगा व अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधता था। वह इकलौती संतान था। नौ वर्ष की आयु में उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। उसका पालन-पोषण विधवा सास ने किया थीं।

(ii) भाग्यहीन-लुट्टन का भाग्य शुरू से ही खराब था। बचपन में माता-पिता गुजर गए। पत्नी युवावस्था में ही चल बसी थी। गाँव की महामारी की भेंट उसके दोनों लड़के चढ़ गए। इस प्रकार वह सदैव पीड़ित रहा।

(iii) साहसी-लुट्टन साहसी था। उसने इसके बल पर चाँद सिंह जैरो पहलवान को चुनौती दी तथा उसे हराया। ‘काला खाँ’ जैसे पहलवान को भी चित कर दिया। महामारी में भी वह सारी रात ढोल बजाता था।

(iv) संवेदनशील-लुट्टन में संवेदना थी। वह अपनी सास पर हुए अत्याचारों को सहन नहीं कर सका और पहलवान बन गया। गाँव में महामारी के समय निराशा का माहौल था। ऐसे में वह रात में ढोल बजाकर लोगों में जीने के लिए उत्साह पैदा करता था।

7. ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी का प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- यह कहानी व्यवस्था के बदलने के साथ लोक कला और इसके कलाकार के अप्रासंगिक हो जाने को रेखांकित करती है। राजा साहब के मरते ही नयी व्यवस्था ने जन्म लिया। पुराने संबंध समाप्त कर दिए गए। पहलवानी जैसा लोकखेल समाप्त कर दिया गया। यह ‘भारत’ पर ‘इंडिया’ के छा जाने का प्रतीक है। यह व्यवस्था लोक कलाकार को भूखा मरने पर मजबूर कर देती है।

8. लुट्टन लो गाँव वापस क्यों लौटना पड़ा?

उत्तर- तत्कालीन राजा कुश्ती के शौकीन थे, परन्तु उनकी मृत्यु के बाद विलायत से शिक्षा पाए राजकुमार ने सत्ता सँभाली। उन्होंने राजकाज से लेकर महल के तौर-तरीकों में भी परिवर्तन कर दिए। मनोरंजन के साधनों में कुश्ती का स्थान घुड़सवारी ने ले लिया। अतः पहलवानों पर राजकीय खर्च का बहाना बनाकर उन्हें जवाब दे दिया गया। इस कारण लुट्टन को गाँव वापस लौटना पड़ा।

9. पहलवान के बेटों की मृत्यु पर गाँववालों की हिम्मत क्यों टूट गई?

उत्तर- पहलवान के दोनों बेठे गाँव में फैली महामारी की चपेट में आकर चल बसे। इस घटना से गाँववालों की हिम्मत टूट गई क्योंकि वे पहलवान को अपना सहारा मानते थे। अब उन्हें लगा कि पहलवान अंदर से टूट जाएगा तथा उनकी सहायता करने वाला कोई नहीं रहेगा।

10. ‘पहलवान की ढोलक; कहानी में किस प्रकार पुरानी व्यवस्था और नई व्यवस्था के टकराव से उत्पन्न समस्या को व्यस्त किया गया है? लिखिए।

उत्तर- ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी में पुरानी व्यवस्था और नई व्यवस्था के टकराव से उत्पन्न समस्या यह है-

(i) पुरानी व्यवस्था में कलाकारों और पहलवानों को राजाओं का आश्रय एवं संरक्षण प्राप्त था। वे शाही खर्चे पर जीवित रहते थे, पर नई व्यवस्था में ऐसा न था।

(ii) पुरानी व्यवस्था में राजदरबार और जनता द्वारा इन कलाकारों को मान-सम्मान दिया जाता था, पर नई व्यवस्था में उन्हें सम्मान देने का प्रचलन न रहा।

पाठ पर आधारित अन्य प्रश्नोत्तर

1. लुट्टन को पहलवान बनने की प्रेरणा कैसे मिली ?

उत्तर- लुट्टन जब नौ साल का था तो उसके माता-पिता का देहांत हो गया था। सौभाग्य से उसकी शादी हो चुकी थी। अनाथ लुट्टन को उसकी विधवा सास ने पाल-पोसकर बड़ा किया। उसकी सास को गाँव वाले परेशान करते थे। लोगों से बदला लेने के लिए उसने पहलवान बनने की ठानी। धारोष्ण दूध पीकर, कसरत कर उसने अपना बदन गठीला और ताकतवर बना लिया। कुश्ती के दाँवपेंच सीखकर लुट्टन पहलवान बन गया।

2. रात के भयानक सन्नाटे में लुट्टन की ढोलक क्या करिश्मा करती थी ?

उत्तर- रात के भयानक सन्नाटे में लुट्टन की ढोलक महामारी से जूझते लोगों को हिम्मत बँधाती थी। ढोलक की आवाज से रात की विभीषिका और सन्नाटा कम होता था। महामारी से पीड़ित लोगों की नसों में बिजली-सी दौड़ जाती थी, उनकी आँखों के सामने दंगल का दृश्य साकार हो जाता था और वे अपनी पीड़ा भूल खुशी-खुशी मौत को गले लगा लेते थे। इस प्रकार ढोल की आवाज, बीमार-मृतप्राय गाँववालों की नसों में संजीवनी शक्ति को भर बीमारी से लड़ने की प्रेरणा देती थी।

3. लुट्टन ने सर्वाधिक हिम्मत कब दिखाई ?

उत्तर- लुट्टन सिंह ने सर्वाधिक हिम्मत तब दिखाई जब दोनों बेटों की मृत्यु पर वह रोया नहीं बल्कि हिम्मत से काम लेकर अकेले उनका अंतिम संस्कार किया। यही नहीं, जिस दिन पहलवान के दोनों बेटे महामारी की चपेट में आकर मर गए पर उस रात को भी पहलवान ढोलक बजाकर लोगों को हिम्मत बँधा रहा था। श्यामनगर के दंगल में पूरा जनसमुदाय चाँद सिंह के पक्ष में था चाँद सिंह को हराते समय लुट्टन ने हिम्मत दिखाई और बिना हताश हुए दंगल में चाँद सिंह को चित कर दिया।

4. लुट्टन सिंहराज पहलवान कैसे बना ?

उतर- श्यामनगर के राजा कुश्ती के शौकीन थे। उन्होंने दंगल का आयोजन किया। पहलवान लुट्टन सिह भी दंगल देखने पहुँचा। चांदसिंह नामक पहलवान जो शेर के बच्चे के नाम से प्रसिद्ध था, कोई भी पहलवान उससे भिड़ने की हिम्मत नहीं करता था। चाँदसिंह अखाड़े में अकेला गरज रहा था। लुट्टन सिंह ने चाँदसिंह को चुनौती दे दी और चाँदसिंह से भिड़ गया। ढोल की आवाज सुनकर लुट्टन की नस-नस में जोश भर गया। उसने चाँदसिंह को चारों खाने चित कर दिया। राजासाहब ने लुट्टन की वीरता से प्रभावित होकर उसे राजपहलवान बना दिया।

5. पहलवान की अंतिम इच्छा क्या थी ?

उत्तर- पहलवान की अंतिम इच्छा थी कि उसे चिता पर पेट के बल लिटाया जाए क्योंकि वह जिंदगी में कभी चित नहीं हुआ था। उसकी दूसरी इच्छा थी कि उसकी चिता को आग देते समय ढोल अवश्य बजाया जाए।

6. ढोल की आवाज और लुट्टन के में दाँवपेंच संबंध बताइए।

उत्तर- ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँवपेंच में संबंध

  • चट धा, गिड़ धा ® आजा भिड़ जा।
  • चटाक चट धा ® उठाकर पटक दे।
  • चट गिड़ धा ® मत डरना।
  • धाक धिना तिरकट तिना ® दाँव काटो, बाहर हो जाओ।
  • धिना धिना, धिक धिना ® चित करो