अंतराल - हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी - पुनरावृति नोट्स

 CBSE कक्षा 11 हिंदी (ऐच्छिक)

अन्तराल भाग-1
पाठ-2 हुसैन की कहानी अपनी जबानी
पुनरावृत्ति नोट्स


विधा- आत्मकथा
(आत्मकथा स्वयं लेखक द्वारा अपने जीवन का सम्बद्ध वर्णन है। लेखक उत्तम पुरूष का प्रयोग करते हुए अपनी जीवनी लिखता है तो वही आत्मकथा बन जाती है। आत्मकथा जीवनी का ही रूप है। पाठ का शीर्षक अपने आप में विधा का द्योतक है)
लेखक- मकबूल फिदा हुसैन

प्रेरणा-

  • यदि विद्यार्थी जीवन में प्रतिभा विकास का सही अवसर और दिशा मिल जाए जो विद्यार्थी का जीवन धन्य हो जाता है। अतः अभिभावक और शिक्षक दोनों को अपने बच्चों की शैक्षणिक योग्याताओं से इतर प्रतिभा को पहचान कर उसके विकास में सहयोग देकर उसके उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।

मुख्य स्मरणीय बिन्दु-

  • ‘हुसैन की कहानी अपनी जबानी’ का पहला अंश ‘बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल’ उनके विद्यार्थी जीवन से जुड़ा है जहाँ उनकी रचनात्मक प्रतिभा के अंकुर फूटे। उनकी प्रतिभा सबके सामने आई।
  • दूसरा अंश ‘रानीपुर बाजार’ है जहाँ हुसैन से अपने पारिवारिक व्यवसाय को स्वीकार करने की अपेक्षा की जा रही थी। किन्तु वहाँ भी हुसैन के अन्दर का कलाकार उनसे चित्रकारी कराता रहा। अंततः हुसैन के पिताजी ने अपने बेटे के हुनर को पहचाना और उनकी रोशन ख्याली ने हुसैन को एक महान चित्रकार बना दिया।
  • दादाजी की मृत्यु के बाद हुसैन दादा के कमरे में ही बंद रहता और उनके बिस्तर में ही सोता। हुसैन के इस तरह गुमसुम रहने के कारण उसके अब्बा ने उसे बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल भेज दिया। बोर्डिंग में मकबूल के छः दोस्त बने-मोहम्मद इब्राहीम गोहर अली, अरशद, हामिद कंबर हुसैन, अब्बास जी अहमद, अब्बास अली फिदा, अत्तार आदि। सभी में दो साल तक दोस्ती रही। फिर सभी भिन्न-भिन्न दिशाओं में चले गए। दो साल की नजदीकी तमाम उम्र कभी दिल की दूरी में बदल नहीं पाई। विद्यालय में मकबूल ने ड्राइंग मास्टर द्वारा ब्लैकबोर्ड पर बनाई चिड़िया को अपनी स्लेट पर हुबहू बनाकर तथा दो अक्टूबर को गाँधी जयन्ती के अवसर पर गाँधी जी का पोट्रेट ब्लैकबोर्ड पर बनाकर अपनी जन्मजात कला का परिचय दिया।
  • रानीपुर बाजार में चाचा मुरादअली की दुकान पर बैठकर उनका सारा ध्यान ड्राइंग और पेटिंग पर रहता था। वह दुकान पर बैठे-बैठे आने जाने वालों के चित्र बनाता रहता जिनमें से घूँघटताने मेहतरानी, गेहूँ की बोरी उठाए मजदूर की पेंचावली पगड़ी का स्केच, बुकरा पहले औरत और बकरी के बच्चे का स्केच आदि प्रमुख थे। एक बार ‘सिंहगढ़’ फिल्म का पोस्टर देखकर मकबूल को ऑयल पेंटिंग बनाने का विचार आया। उसने अपनी किताबें बेचकर ऑयल कलर खरीदा तथा अपनी पहली पेंटिंग बनाई। पेंटिंग देखकर पिता ने पुत्र को गले लगा लिया।
  • एक बार इंदौर के सर्राफा बाजार में लैंडस्केप बनाते समय बेन्द्रे साहब से मुलाकात हुई। फिर दोनों लैंडस्केप पेंट करने लगे। मकबूल ने एक दिन बेन्द्रे को अपने पिता से मिलवाया। बेन्द्रे ने मकबूल के काम पर उनसे बात की। मकबूल के पिता ने बंबई से ‘विनसर न्यूटन’ ऑयल ट्यूब और कैनवस मँगवाए। उन्होंने बेटे के लिए सारी पुरानी मान्यताओं को नज़रअंदाज कर, अपने बेटे को जिन्दगी में रंग भरने की इजाजत दे दी। ये हुसैन के जीवन की ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएँ थी, जिनकी हुसैन को एक प्रसिद्ध चित्रकार बनाने में विशेष भूमिका रही।