संविधान का राजनीतिक दर्शन - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 11 राजनीति विज्ञान
पाठ - 10 संविधान का राजनीतिक दर्शन
पुनरावृति नोटस

स्मरणीय बिंदु:-
संविधान के दर्शन से आशय संविधान में उल्लेखनीय देश के मूल्य व आदर्शो से है जैसे भारतीय संविधान स्वतंत्रता, समानता, लोकतंत्र, समाजिक न्याय आदि के लिए प्रतिबद्ध है। इस सबके साथ उसके दर्शन को शांतिपूर्ण तथा लोकतांत्रिक तरीके से अमल किया जाये। भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता, अल्प संख्यकों के अधिकारों का सम्मान, धार्मिक समूहों के अधिकार सार्वभौम मताधिकार, संघवाद आदि का भी समावेश हुआ है संविधान के दर्शन का सर्वोत्तम सार-संक्षेप संविधान की प्रस्तावना में वर्णित है।
संविधान का राजनीतिक दर्शन
  • संविधान के दर्शन से अभिप्राय संविधान की बुनियादी अवधारणाओं से है जैसे अधिकार, नागरिकता, लोकतंत्र आदि।
  • संविधान में निहित आदर्श जैसे समानता, स्वतंत्रता हमें संविधान के दर्शन करवाते हैं।
  • हमारा संविधान इस बात पर जोर देता है कि उसके दर्शन पर शांतिपूर्ण व लोकतांत्रिक तरीके से अमल किया जाए तथा उन मूल्यों को जिन पर नीतियां बनी हैं, इन नैतिक बुनियादी अवधारणाओं पर चल कर उद्देश्य प्राप्त करें।
संविधान का मुख्य सार- संविधान की प्रस्तावना प्रस्तावना हमारे संविधान की आत्मा है
भारतीय संविधान की विशेषताएं अर्थात् उप्लाधियाँ
  1. लिखित विस्तृत
  2. कठोर व लचीलेपन का मिश्रण
  3. संघात्मक सरकार
  4. मौलिक आधिकार
  5. मौलिक कर्त्तव्य
  6. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत
  7. स्वतंत्र तथा निष्पक्ष न्यायपालिका
  8. इकहरी नागरिकता
  9. संसदीय शासन प्रणाली
  10. सामजिक न्याय
  11. राष्ट्रीय एकता धर्म एकता
  12. धर्म निष्पक्षता
  13. अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान
  14. मुलभुत ढांचा संशोधनों के बाद भी बरकरार
  15. सार्वभौमिक मताधिकार
  16. राष्ट्रीय पहचान
जवाहर लाल नेहरू के अनुसार-'भारतीय संविधान का निर्माण परंपरागत सामाजिक ऊँच नीच के बंधनों को तोड़ने और स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय के नए युग में प्रवेश के लिए हुआ। यह कमजोर लोगों को उनका वाजिब हक सामुदायिक रूप में हासिल करने की ताकत देता है।”
संविधान की कुछ विशेषताओं का वर्णन:-
  • स्वतंत्रता- संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 में स्वतंत्रता से संबधित प्रावधान इसके अंतर्गत भारत के सभी नागरिकों को विचार -विमर्श अभिव्यक्ति, सभा व सम्मेलन करने की स्वतंत्रता है।
  • सामाजिक न्याय- भारत के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त हो। उदाहरण- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान।
  • अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान- अल्पसंख्यक समुदायों को इच्छानुसार शैक्षिक संस्थाओं को स्थापित करने का भी अधिकार है।
  • धर्म-निरपेक्षता- धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है ‘सर्वधर्म समभाव’ धर्म से दूरी बनाए रखना है। हमारा संविधान धर्म के आधार पर भेद नही करता। राज्य धर्म में और धर्म राज्य में हस्तक्षेप नहीं करता परंतु धर्म के नाम पर किसी व्यक्ति के आत्म सम्मान को ठेस पहुँचाने पर राज्य हस्तक्षेप करता है। राज्य किसी धार्मिक शिक्षा संस्था को आर्थिक सहायता भी दे सकता है।
  • सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार - देश के सभी वयस्क नागरिकों (18 वर्ष) को अपने प्रतिनिधियों की चयन प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार है। यह अधिकार बिना जाति लिंग भेदभाव के सभी नागरिकों को प्राप्त है।
  • संघवाद- भारतीय संविधान में शक्तियों का विकेन्द्रीकरण है। इसमें दो सरकारों की बात की गई है a) एक केन्द्रीय सरकार- संपूर्ण राष्ट्र के लिए
    b) दूसरी राज्य सरकार- प्रत्येक राज्य के लिए अपनी सरकार दो सरकारो के बाद भी अधिक शक्तियाँ केन्द्र सरकार के पास हैं। राज्यों की जिम्मेदारियाँ अधिक है।
प्रक्रियागत उपलिब्ध:-
  • संविधान का विश्वास राजनीतिक विचार विमर्श से है। संविधान सभा असहमति को भी सकारात्मक रूप से देखती है।
  • संविधान सभा किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर फैसला बहुमत से नहीं, सबकी अनुमति से लेना चाहते थी। वे समझौतों को महत्व देते थे। (शिक्षक कक्षा में बहुमत व सर्वे अनुमति को स्पष्ट करेंगे।) संविधान सभा जिन बातों पर अडिग रही वही हमारे संविधान को विशेष बनाती है।
संविधान की आलोचना के बिन्दु:-
  1. बहुत लंबा तथा विस्तृत-395 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ।
  2. पश्चिमी देशों के संविधानों से इसके प्रावधान लिए गए हैं।
  3. संविधान के निर्माण में सभी समूहों के प्रतिनिधि उपस्थित नहीं थे।
  4. संविधान कसा हुआ दस्तावेज़ न होकर अस्त व्यस्त है।
  5. संविधान में सबकी नुमाइंदगी नही हो सकी है।
  6. भारतीय परिस्थितियां के अनुकुल नही है।
  7. संविधान में विश्व के अन्य संविधानों से उधार लिये गये प्रावधान है।
    1. यदि हम इन अलोचनाओं पर विचार करे तो इनमें बहुत अधिक सत्यता नहीं पाते हैं। इस बात की बहुत संभावना हर संविधान में रह सकती है कि कुछ व्यतव्य व ब्यौरे संविधान से बाहर रह जाये।
    2. भारतीय संविधान सभा में अधिकतर अगड़ी जाति से सम्बंधित सदस्य थे किंतु फिर भी भीमराव अम्बेडकर की जन्मतिथि को त्यौहार समान बनाने वाले तबके भी समाज में है। इससे स्पष्ट होता हैं कि संविधान में उनकी अनेक आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति हुई है।
    3. संविधान निर्माताओं के मन में परम्परागत भारतीय व पश्चिमी मूल्यों के स्वरूप मेल का भाव था। यह संविधान सचेत चयन का परिणाम है न कि नकल का।
सीमाएँ:-
भारत का संविधान हर तरह से पूर्ण व त्रुटिहीन दस्तावेज़ है। ऐसा भी नहीं है। संविधान की कुछ निम्न सीमाएं है।
  1. भारतीय संविधान में राष्ट्रीय एकता की धारणा बहुत केन्द्रीकृत है।
  2. इसमें लिंग गत न्याय के कुछ महत्वपूर्ण मसलों खासकर परिवार से जुड़े मुद्दो पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया है।
  3. एक गरीब व विकासशील देश में कुछ बुनियादी सामाजिक आर्थिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों के बजाय राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों में डाला गया है जो न्याय परक नही है।
  4. संविधान की यह सीमाएं उसके दर्शन पर प्रभावी नही होती है। आम नागरिक से राजनेता तक संविधान के अन्तनिर्हित आदर्शो व दर्शन में विश्वास रखता है।
महत्वपूर्ण बिन्दु:-
  1. संविधान का आदर्श संक्षिप्त रूप में प्रस्तावना में वर्णित है।
  2. संविधान लोकतांत्रिक बदलाव का सशक्त साधन है।
  3. भारतीय संविधान में समानता स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय मौलिक अधिकार के साथ नीति निर्देशक सिद्धान्त व मौलिक कर्त्तव्यों का भी उल्लेख मिलता है।