शमशेर बहादुर सिंह - महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

 सीबीएसई कक्षा -12 हिंदी कोर

महत्वपूर्ण प्रश्न
पाठ – 06

शमशेर बहादुर सिंह (उषा)


महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

1. सूर्योदय से पहले आकाश में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं? ‘उषा’ कविता के आधार पर बताइए |

अथवा

‘उषा’ कविता के आधार पर सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण कीजिए |

उत्तर- सूर्योदय से पहले आकाश का रंग शंख जैसा नीला था, उसके बाद आकाश राख से लीपे चौके जैसा हो गया | सुबह की नमी के कारण वह नीला प्रतीत होता है | सूर्य की प्रारंभिक किरणों से आकाश ऐसा लगा मानो काली सिल पर थोड़ा केसर डालकर उसे धो दिया गया हो या फिर काली स्लेट पर लाल खड़िया मिट्टी मल दी गई हो | सूर्योदय के साथ ऐसा लगा जैसे नील स्वच्छ जल में किसी गोरी युवती का प्रतिबिंब झिलमिला रहा हो |

2. ‘उषा’ कविता के आधार पर उस जादू को स्पष्ट कीजिए जो सूर्योदय के साथ टूट जाता है |

उत्तर- सूर्योदय से पूर्व उषा का दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है | भोर के समय सूर्य के किरणें जादू के समान लगता हैं | इस समय आकाश का सौंदर्य क्षण-क्षण में परिवर्तित होता रहता है | यह उषा का जादू है | नीले आकाश का शंख-सा पवित्र होना, काली सिल पर केसर डालकर धोना, काली स्लेट पर लाल खड़िया मल देना, नीले जल में गोरी नायिका का झिलमिलाता प्रतिबिंब आदि दृश्य उषा के जादू के समान लगते हैं | सूर्योदय होने के साथ ही ये दृश्य समाप्त हो जाते हैं |

3. ‘स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मॉल दी हो किसी ने |’ इसका आशय स्पष्ट कीजिए |

उत्तर- कवि कहता है कि सुभ के समय अँधेरा होने के कारण आकाश स्लेट के समान लगता है | उस समय सूर्य की लालिमा युक्त किरणों से ऐसा लगता है जैसे किसी ने काली स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दिया हो | कवि आकाश में उभरे लाल-लाल धब्बों के बारे में बताना चाहता है |

4. भोर के नभ को राख से लीपा, गीला चौका की संज्ञा दी गई है | क्यों?

उत्तर- कवि कहता है कि भोर के समय ओस के कारण आकाश नमी युक्त व धुँधला होता है | राख से लिपा हुआ चौका भी मटमैल रंग होता है | दोनों का रंग लगभग एक जैसा होने के कारण कवि ने भोर के नभ को राख से लीपा गीला चौका की संज्ञा दी है | दूसरे, चौके को लीपे जाने से वह स्वच्छ हो जाता है | इसी तरह भोर का नभ भी पवित्र होता है |

5. ‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता व उज्ज्वलता से संबंधित पंक्तियों को बताइए |

उत्तर- पवित्रता – राख से लीपा हुआ चौका |

निमर्लता – बहुत काली सिल ज़रा से केसर से कि जैसे धुल गई हो |

उज्ज्वलता – नीले जल में या किसी को

गौर झिलमिल देह

जैसे हिल रही हो |

6. सिल और स्लेट का उदाहरण देकर कवि ने आकाश के रंग के बारे में क्या कहा है?

उत्तर- कवि ने सिल और स्लेट के रंग की समानता आकाश के रंग से की है | भोर के समय का आकाश का रंग गहरा नीला-काला होता है और उसमें थोड़ी-थोड़ी सूर्योदय की लालिमा मिली हुई है |

7. ‘उषा’ कविता में भोर के नभ की तुलना किससे की गई है और क्यों?

उत्तर- उषा कविता में प्रातः कालीन नभ की तुलना राख से लीपे गए गीले चौके से की है | इस समय आकाश गम एवं धुँधला होता है | इसका रंग राख से लीपे चूल्हे जैसा मटमैला होता है | जिस प्रकार चुल्हा-चौका सुख कर साफ़ हो जाता है उसी प्रकार कुछ देर बाद आकाश भी स्वच्छ एवं निर्मल हो जाता है |

अर्थ-ग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर

“प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लोपा चौंका

(अभी गीला पड़ा है)

बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर

से कि जैसे धुल गई हो

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक

मल दी हो किसी ने

नील जल में या किसी की

गौर झिलमिल देह

जैसे हिल रही हो।

और .....

जादू टूटता है इस उषा का अब

सूर्योदय हो रहा है।”

1. उषा कविता में सूर्योदय के किस रूप को चित्रित किया गया है?

उत्तर- कवि ने प्रातःकालीन, परिवर्तनशील सौंदर्य का दृश्य बिंब मानवीय क्रियाकलापों के माध्यम से व्यक्त किया है।

2. भोर के नभ और राख से लीपे गए चौके में क्या समानता है?

उत्तर- भोर के नभ और राख से लीपे गए चौके में यह समानता है कि दोनों ही गहरे सलेटी रंग के हैं, पवित्र हैं। नमी से युक्त हैं।

3. स्लेट पर लाल... पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- भोर का नभ लालिमा से युक्त स्याही लिए हुए होता है। अतः लाल खड़िया चाक से मली गई स्लेट जैसा प्रतीत होता है।

4. उषा का जादू किसे कहा गया है?

उत्तर- विविध रूप रंग बदलती सुबह व्यक्ति पर जादुई प्रभाव डालते हुए उसे मंत्र मुग्ध कर देती है।