सामाजिक न्याय - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 11 राजनीति विज्ञान
पाठ - 4 सामाजिक न्याय
पुनरावृति नोटस

स्मरणीय बिंदु:-
प्राचीन काल से भारत तथा चीन के विद्वानों ने न्याय की व्याख्या अपनी व्यवस्था के अनुसार की। यूनान के दार्शनिक प्लैटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में न्याय के सिद्धान्त पर अपने विचार दिये।
न्याय- न्याय अंग्रेज़ी शब्द Justice लेटिन भाषा के शब्द से निकला है जिसका अर्थ बन्धन या बाँधना (Bond of Tie) अर्थात् न्याय समाज में व्यक्ति को व्यक्ति से बांधने की व्यवस्था है। आज न्याय का अर्थ है जो उचित हो (Just) किसी समाज में जो उचित है जो व्यक्तिगत व सामाजिक हितों में सामंजस्य उत्पन्न करता हो जो निष्पक्ष, स्वार्थहीन तथा तर्कसगंत है।
  • न्याय का संबंध हमारे जीवन व सार्वजनिक जीवन से जुड़े नियमों से होता है। जिसके द्वारा सामाजिक लाभ कर्तव्यों का बंटवारा किया जाता है।
  • प्राचीन भारतीय समाज में न्याय धर्म के साथ जुडा था जिसकी स्थापना राजा का परम कर्तव्य था |
  • चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशस के अनुसार गलत करने वालों को दण्डित व भले लोगों को पुरस्कृत करके न्याय की स्थापना की जानी चाहिये।
  • प्लेटों ने अपनी पुस्तक 'द रिपब्लिक' में न्याय की चर्चा की है।
  • सुकरात के अनुसार यदि सभी अन्यायी हो जायेगे तो कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा |
  • साधारण शब्दों में हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा देना न्याय है।
  • जर्मनी दार्शनिक इमैनुएल के अनुसार हर व्यक्ति का प्राप्य उसकी प्रतिभा या विकास के लिये अवसरों की प्राप्ति है।
सामाजिक न्याय की स्थापना क तीन सिद्धांत:-
  • समान लोगों के प्रति समान बर्ताव: सभी के लिये समान अधिकार तथा भेदभाव की मनाही हे | नागरिकों को उनके वर्ग जाति नस्ल या लिंग के आधार पर नहीं बल्कि उनके काम व कार्यकलापों के आधार पर जांचा जाना चाहिये अगर भिन्न जातियों के दो व्यक्ति एक ही काम कर रहें हो तो उन्हें समान पारिश्रमिक मिलना चाहिए।
  • समानुपातिक न्यायः कुछ परिस्थितियां ऐसी भी हो सकती है जहां समान बर्ताव अन्याय होगा जैसा परीक्षा में बैठने वाले सभी छात्रों को एक जैसे अंक दिये जायें। यह न्याय नहीं हो सकता अत: मेहनत कौशल व संभावित खतरे आदि को ध्यान में रखकर अलग-अलग पारिश्रमिक दिया जाना न्याय संगत होगा |
  • विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल: जब कर्त्तव्यों व पारिश्रमिक का निर्धारण किया जाये तो लोगों की विशेष जरूरतों का ख्याल रखा जाना चाहिए। जो लोग कुछ महत्वपूर्ण संदर्भों मं समान नहीं है उनके साथ भिन्न ढंग से बर्ताव करके उनका ख्याल किया जाना चाहिए।
न्यायपूर्ण बंटवारा:-
  • सामाजिक न्याय का अर्थ वस्तुओं और सेवाओं के न्यायपूर्ण वितरण से भी है। यह वितरण समाज के विभिन्न समूहों और व्यक्तियों के बीच होता है ताकि नागरिकों को जीने का समान धरातल मिल सकें, जैसा भारत में छुआछूत प्रथा का उन्मूलन आरक्षण की व्यवस्था तथा कुछ राज्य सरकारों द्वारा उठाये गये भूमि सुधार जैसे कदम है।
रॉल्स का न्याय सिद्धांत:-
  • ‘अज्ञानता के आवरण' द्वारा रॉल्स ने न्याय सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। यदि व्यक्ति को यह अनुमान न हो कि किसी समाज में उसकी क्या स्थिति होगी और उसे समाज को संगटित करने कार्य तथा नीति निर्धारण करने को दिया जाये तो वह अवश्य ही ऐसी सर्वश्रेष्ठ नीति बनायेगा जिसमें 'समाज के प्रत्येक वर्ग को सुविधाएं दी जा सकेगी।
  • सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए अमीर गरीब के दरम्यान गहरी खाई को कम करना समाज के सभी लोगों के लिये जीवन की न्यूनतम बुनियादी स्थितियां आवास, शुद्ध पेयजल, न्यूनतम मजदूरी शिक्षा व भोजन मुहैया कराना आवश्यक है।
मुक्त बाजार बनाम राज्य का हस्तक्षेपः-
  • मुक्त बाजार खुली प्रतियोगिता द्वारा योग्य व सक्षम व्यक्तियों को सीधा फायदा पहुंचाने का व राज्य के हस्तक्षेप के विरोधी है। ऐसे में यह बहस तेज हो जाती है कि क्या अक्षम और सुविधा विहीन वर्गों की जिम्मेदारी सरकार की होनी चाहिये क्योंकि मुक्त बाजार के अनुसार प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते।
भारत में सामाजिक न्याय की स्थापना के लिये उठाये गये कदम:-
  • निशुल्क व अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा
  • पंचवर्षीय योजनाएं
  • अन्तयोदय योजनाएं
  • वंचित वर्गों को आर्थिक सामाजिक सुरक्षा
  • मौलिक अधिकारों में प्रावधान
  • राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में प्रयास
न्याय के तत्व:-
  1. सत्य,
  2. स्वतन्त्रता,
  3. समानता,
  4. प्राकृतिक अनिवार्यतायें
सामाजिक न्याय:- मनुष्य- मनुष्य में भेद न हो, सबको व्यक्तित्व विकास के अवसर प्राप्त हो, कानून के सामने सभी समान हो, तथा वंचित वर्गो को विशेष सुविधाये प्राप्त हो।
अन्याय के प्रकार:-
  1. सामाजिक अन्याय,
  2. राजनीतिक अन्याय
  3. कानूनी अन्याय
  4. आर्थिक अन्याय
आर्थिक न्याय की स्थापना के उपाय:-
  1. न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति
  2. व्यक्ति से सामर्थ्य के अनुसार कार्य
  3. समान काम का समान वेतन
  4. राज्य का हस्तक्षेप
  5. आर्थिक सुरक्षा
राजनीतिक न्याय की स्थापना के उपाय:-
  1. लोकतान्त्रिक शासन
  2. राजनीतिक दलो का निर्माण
  3. स्वतन्त्र और निष्पक्ष प्रेस
  4. राजनीतिक अधिकार
  5. समयान्नतराल चुनाव
भारत में सामाजिक न्याय की स्थापना के कदम:-
  1. निशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिकता शिक्षा
  2. पंचवर्षीय योजनायें
  3. किसान सहायता
  4. अन्तयोदय योजना
  5. वंचित वर्गो को आर्थिक सामाजिक सुरक्षा