अधिकार - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 11 राजनीति विज्ञान
पाठ - 5 अधिकार
पुनरावृति नोटस

स्मरणीय बिंदु:-
मध्यकाल में यूरोप में मनुष्य को अपने बारे में सोचने व निर्णय लेने की छूट नही थी। वह चर्च और सामन्तों आदेशानुसार ही काम करने के लिए बाध्य था। आधुनिक काल में मानवतावादी तथा उदारवादी विचारधारा के विकास के साथ अधिकारों की अवधारणा विकसित हुई और मनुष्य के साथ गरिमामय बर्ताव (नैतिकता से पेश आना) की बात कहीं जाने लगी और 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को लागू किया जो अधिकार मानव होने के नाते मिलने चाहिए।
अधिकार- अधिकार व्यक्ति के कुछ कार्यो को स्वतंत्रता-पूर्वक करने की मांग है। किसी भी मांग को जब समाज स्वीकार कर लेता है और राज्य मान्यता (लागू) देता है तो वह मांग अधिकार बन जाती है। बस उस मांग को उचित और समाज के लिए कल्याणकारी होना आवश्यक है।
मानव अधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा:-
  • विश्व के समस्त देशों के नागरिकों को अभी पूर्ण अधिकार नहीं मिले हैं। इसी दिशा में 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा ने मानावाधिकरों की सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकार कर लागू किया है गया है।
    मानव अधिकार दिवस - 10 दिसम्बर
अधिकार क्यों आवश्यक?
  • व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा की सुरक्षा के लिए
  • लोकतांत्रिक सरकार को सुचारू रूप से चलाने के लिए
  • व्यक्ति की प्रतिभा व क्षमता को विकसित करने के लिए
  • व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास के लिए
  • अधिकार रहित व्यक्ति, बंद पिंजड़े में पक्षी के समान है।
अधिकारो की उत्पत्तिः
1. प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत- जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति-प्राकृतिक अधिकार (17वीं और 18वीं शताब्दी)
2. आधुनिक युग में- प्राकृतिक अधिकार अस्वीकार्य
मानवाधिकार सामाजिक कल्याण की दृष्टि से महत्वपूर्ण
अधिकारों के तत्व-
  1. अधिकार व्याक्ति की मांग हैं,
  2. समाज में ही सम्भव
  3. समाज की देन
  4. तर्क संगत एवं न्यायोचित
  5. लोकहित
  6. सीमित
  7. सबको समान रूप से प्राप्त
  8. अधिकार के साथ कर्त्तव्य भी
  9. परिवर्तनशील
  10. राज्य द्वारा संरक्षित।
अधिकारों के प्रकार
  1. प्राकृतिक
    1. जीवन
    2. स्वतंत्रता
    3. सम्पत्ति
  2. नैतिक अधिकार
    1. व्यक्ति की नैतिक भावनाओं से जुड़े अधिकार माता-पिता की सेवा करना, शिष्ट व्यव्हार, सच्चा चरित्र, आदर का भाव
  3. कानूनी अधिकार
    1. सामाजिक अधिकार
    2. राजनीतिक अधिकार
    3. मौलिक अधिकार
    4. आर्थिक अधिकार
अधिकारों की दावेदारी
  • सार्वभौम अधिकार – शिक्षा का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
कुछ कार्यकलाप, जिन्हें अधिकार नहीं माना जा सकता:
  • वे कार्यकलाप जो समाज के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए नुकसानदेह हैं।
नशीली या प्रतिबंधित दवाओं का सेवन
अधिकार और राज्य:-
  1. अधिकार एकमात्र राज्य की सृष्टि
  2. किसी अधिकार का कोई अस्तित्व नहीं जब तक उसे राज्य मान्यता न दें
  3. अधिकारों की रक्षा राज्यों का दायित्व
  4. राज्य अधिकारों को शक्तिशाली भी बनाता है और दुरूपयोग होने से भी रोकता है 
अधिकार और शक्तिशाली कैसे हों
  1. संविधान लिखित हो
  2. स्वतंत्र न्यायपालिका अधिकारों की संरक्षक
  3. संघात्मक सरकार और शक्तियों का विभाजन
  4. राज्य का नागरिकों के आंतरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं
  5. जनता की जागरूकता
  6. स्वतंत्र प्रैस
यदि राज्य अधिकारों को सुरक्षित करता हे तो उसे यह अधिकार भी प्राप्त होता है कि वह अधिकारों के दुरूपयोग को रोके इसलिए संविधान के अनुच्छेद 19(2) में मौलिक कर्तव्यों का भी वर्णन किया गया है।
अधिकार और कर्तव्य सिक्के के दो पहलुओं की तरह है। एक पहलू अधिकार है तो दूसरा पहलू कर्तव्य। समाज में हमें जो अधिकार मिलते हैं उनके बदले में हमें कुछ ऋण चुकाने पड़ते है। ये ऋण ही हमारे कर्त्तव्य हैं।
अधिकार के स्रोत-
  1. जन्म से प्राप्त
  2. रीति रिवाज
  3. विधान मण्डल
  4. धर्म
  5. संविधान
अधिकारों का महत्व-
  1. व्यक्ति की स्वतंत्रता को लागू करना
  2. राज्य की निरंकुशता पर रोक
  3. व्यक्ति के जीवन विकास में आवश्यक
  4. समाज व राज्य के लिए उपयोगी
  5. सरकार का सकारात्मक आदेश
  6. व्यक्तियों का जीवन अच्छा और व्यवस्थित बनाना
  7. सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखना।
अधिकारो को शक्तिशाली बनाने के तरीके-
  1. लोकतंत्र
  2. संविधान द्वारा मान्यता
  3. स्वतन्त्र न्यायपालिका
  4. कानून का शासन
  5. शक्तियों का विकेन्द्रीयकरण
  6. स्वतन्त्र प्रेस
  7. सतत् जागरूकता
अधिकारों पर प्रतिबन्ध का आधार-
  1. सामाजिक हित
  2. अन्य व्यक्तियों के हित के लिए
  3. राज्य की सुरक्षा व स्वतंत्रता के लिए।
कर्त्तव्य- कर्त्तव्य का अंग्रेज़ी duty शब्द debt से बना है जिसका अर्थ है ऋण। राज्य नागरिकों को अधिकारों के रूप में अनेक सुविधायें देता है। ये अधिकार नागरिक पर एक प्रकार से नागरिक पर ऋण है। इसको चुकाने के लिए नागरिक कर्त्तव्यों का पालन करते है। मनुष्य के अधिकारों को दूसरे मनुष्य के द्वारा मान्यता देना कर्त्तव्य है।
कर्त्तव्य के प्रकार
  1. नैतिक
    • संविधान का आदर करना
    • अपने परिवेश को स्वच्छ रखने का कर्त्तव्य |
    • बच्चों को उचित शिक्षा
    • माता-पिता व बुजुर्गों की सेवा करना
    • परिवार की आवश्यकताओं को पूर्ण करना |
  2. कानूनी कर्त्तव्य
    1. संविधान का सम्मान करना |
    2. राष्ट्रीय ध्वज व राष्ट्रीय गान का सम्मान करना |
    3. कानून व व्यवस्था बनाए रखना
    4. नियमित रूप से कर देना
    5. देश की एकता तथा अखंडता व सुरक्षा बनाए रखना।
    6. देश की रक्षा करना |
    7. प्राकृतिक संसाधनों का समझदारी पूर्ण उपयोग।
    8. ओजोन परत की हिफाजत करना।
कुछ नए मानवाधिकार:-
देश में नए खातरों और चुनौतियां के उभरने के लिए नए मानवाधिकारों की सूचि |
  1. स्वच्छ वायु सुरक्षित पेयजल तथा टिकाऊ विकास का अधिकार
  2. सूचना के अधिकार का दावा
  3. महिला सुरक्षा का अधिकार
  4. समाज के कमजोर लोगों के लिए शौचालयों की व्यवस्था
  5. बच्चों को खाद्य, संरक्षण शिक्षा का अधिकार
  6. शालीन जीवन यापन के लिए आवश्यक स्थितियाँ
मानवाधिकारों की कीमत:-
  1. मनुष्य की सतत् जागरूकता।
  2. किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से गिरफ्तार नहीं किया जा सकता गिरफ्तारी के लिए उचित कारण जरूरी है।
  3. अपराधी से अपराध की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए उत्पीड़न उचित नहीं।
  4. नागरिक के लिए यह आवश्यक है कि यह सतर्क रहें, अपनी आँखे खुली रखें, अपने अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए हमेशा जागरूक रहें।