वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ-पुनरावृति नोट्स

                                                                    सीबीएसई कक्षा - 11

विषय - भूगोल
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ


महत्त्वपूर्ण तथ्य-

  • वायुमण्डलीय भार= वायुमण्डल के माध्यम से पृथ्वी पर डाले जाने वाले भार को वायुमण्डलीय भार कहते है।
  • दाब प्रवणता= दो समदाब रेखाओ के दो बिन्दुओं के मध्य वायुदाब में परिवर्तन को दाब प्रवणता कहते है।
  • समदाब रेखा= वह काल्पनिक रेखा है जो समुद्रतल के बराबर घटाए हुए समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलती है।
  • पवन = पृथ्वी के धरातल के लगभग समांतर बहने वाली वायु को पवन कहते है।
  • जेटस्ट्रीम= ऊपरी क्षोभमण्डल में पश्चिम से पूर्व की और बड़ी तजे गति से निरतंर चलने वाले संकरे वायुप्रवाह को जेटस्ट्रीम कहते है।
  • महासागरीय सतह पर औसत वायुदाब 1013.25 मिलीबार होता है।
  • मानचित्र पर वायुदाब को समदाब तथा समभार रेखा के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है।
  • वायुमण्डलीय भार या दाब को मिलीबार तथा हैक्टोपास्कल मे मापा जाता है।
  • वायुदाब में बदलाव से वायु गतिशील हो जाती है।
  • पृथ्वी पर सात प्रमुख वायुदाब कटिबन्ध है।
  • पवनों की दिशा और वेग को वायुदाब प्रवणता, कारिओलिस बल, अभिकेन्द्रीय त्वरण और घर्षण बल प्रभावित करते है।
  • पवन मुख्य रूप में तीन प्रकार की होती है : 1.)प्रचालित या भूमंण्डलीय पवन, 2.)सामयिक पवन और 3.)स्थानीय पवन।
  1. वायु गर्म होने पर फैलती है और ठंडी होने पर सिकुड़ती है इस कारण वायुमंडलीय दाब में भिन्नता आती है। इसके परिणामत: वायु गतिमान होकर ज़्यादा दाब वाले क्षेत्रों से न्यून दाब वाले क्षेत्रों में प्रवाहित होती है।
    दाब कटिबंध या पट्टी
    1. विषुवतीय निम्न दाब पट्टी
    2. उपध्रुवीय निम्न दाब पट्टी (उत्तरी गोलार्ध)
    3. उपध्रुवीय निम्न दाब पट्टी (दक्षिणी गोलार्ध)
    4. ध्रुवीय उच्च दाब पट्टी (उत्तरी गोलार्ध)
    5. ध्रुवीय उच्च दाब पट्टी (दक्षिणी गोलार्ध
    6. उपोष्ण उच्च दाब पट्टी (उत्तरी गोलार्ध)
    7. उपोष्ण उच्च दाब पट्टी (दक्षिणी गोलार्ध)
  2. क्षैतिज गतिमान वायु ही पवन है। वायुमंडलीय दाब यह भी निर्धारित करता है कि कब वायु ऊपर उठेगी व कब नीचे बैठेगी।
  3. पवनें पृथ्वी पर तापमान व आर्द्रता का पुनर्वितरण करती हैं, जिससे पूरा तापमान स्थिर बना रहता है। ऊपर उठती हुई आर्द्र वायु का तापमान कम होता जाता है तथा इसके द्वारा बादल बनते हैं और वर्षा होती है।
  4. जैसे-जैसे आप ऊपर ऊँचाई पर चढ़ते  हैं, वायु विरल होती जाती है और साँस लेने में कठिनाई होती है।
  5. वायुदाब को मापने की इकाई मिलीबार व पास्कल है, बड़ी मात्रा में इस्तेमाल की जाने वाली इकाई को किलो पास्कल कहते हैं, जिसे hpa द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
  6. गुरुत्वाकर्षण की वजह से धरातल के निकट वायु सघन होती है और इसी वजह से वायुदाब ज़्यादा होता है।
  7. वायुदाब को मापने के लिए पारद वायुदाबमापी अथवा निर्द्रव बैरोमीटर का इस्तेमाल किया जाता है।
  8. ऊँचाई पर वायुदाब अलग स्थानों पर अलग-अलग होता है तथा यह पृथकता ही वायु में गति का मुख्य स्रोत है अर्थात् पवनें उच्च वायुदाब क्षेत्रों से कम वायुदाब क्षेत्रों की ओर चलती हैं।
  9. वायुमंडल के निचले भाग में वायुदाब ऊँचाई के साथ तीव्रता से घटता है। यह ह्रास दर प्रत्येक 10 मीटर की ऊँचाई पर 1 मिलीबार होता है। वायुदाब सदैव एक ही दर से नहीं घटता।
  10.  पृथकता की वजह से वायु गतिमान होती है। इस क्षैतिज गतिज वायु को पवन कहते हैं। पवनें उच्च दाब से कम दाब की और प्रभावित होती हैं।
  11. धरातल पर घर्षण बहुत ज़्यादा होता है एवं इसका प्रभाव प्रायः धरातल से 1 से 3 कि.मी. की ऊँचाई तक होता है। समुद्र सतह पर घर्षण बहुत कम होता है।
  12. पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन पवनों की दिशा को प्रभावित करता है। सन् 1844 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने इसका विवरण प्रस्तुत किया और इसी पर इस बल को कोरिआलिस बल कहा जाता है।
  13. कोरिऑलिस बल के द्वारा पवनें उत्तरी गोलार्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिने तरफ व दक्षिणी गोलार्ध में बाई तरफ विक्षेपित हो जाती हैं।
  14. कोरिऑलिस बल दाब प्रवणता के समकोण पर काम करता है। दाब प्रवणता बल समदाब रेखाओं के समकोण पर होता है। जितनी दाब प्रवणता ज़्यादा होगी, पवनों का वेग उतना ही ज़्यादा होगा और पवनों की दिशा उतनी ही ज़्यादा विक्षेपित होगी।
  15. पवनों का वेग व उनकी दिशा, पवनों को उत्पन्न करने वाले बलों के परिणाम हैं। पृथ्वी की सतह से 2-3 कि.मी. की ऊँचाई पर ऊपरी वायुमंडल में पवनें धरातलीय घर्षण के प्रभाव से मुक्त होती हैं और दाब प्रवणता तथा कोरिऑलिस बल से नियंत्रित होती हैं।
  16. दिन के दौरान स्थल भाग समुद्र की से ज़्यादा गर्म हो जाते हैं। अतः स्थल पर हवाएँ ऊपर उठती हैं और निम्न दाब क्षेत्र बनता है जबकि समुद्र अपेक्षाकृत ठंडे रहते हैं और उन पर उच्च वायुदाब बना रहता है। इससे समुद्र से स्थल की ओर दाब प्रवणता पैदा होती है एवं पवनें समुद्र से स्थल की ओर समुद्र समीर के रूप में प्रवाहित होती हैं। रात्रि में इसके विपरीत प्रक्रिया होती है। स्थल समुद्र की अपेक्षा जल्दी ठंडा होता है। दाब प्रवणता स्थल से समुद्र की ओर होने पर स्थल समीर प्रवाहित होती है।
  17. दिन के समय पर्वतीय प्रदेशों में ढाल गर्म हो जाते हैं और वायु ढाल के साथ-ही-साथ ऊपर उठती है और इस स्थान को भरने के लिए वायु घाटी से बहती है।