अंतरा - ओमप्रकाश वाल्मीकि - पुनरावृति नोट्स

 CBSE कक्षा 11 हिंदी (ऐच्छिक)

अंतरा गद्य-खण्ड
पाठ-6 खानाबदोश
पुनरावृत्ति नोट्स


विधा- कहानी
कहानीकार- ओमप्रकाश वाल्मीकि

जीवन-परिचय-

  • इनका जन्म सन् 1950 में बरला, जिला मुजफ्फरनगर, उत्तरप्रदेश में हुआ। उनका बचपन सामाजिक व आर्थिक कठिनाइयों में गुज़रा। शिक्षा प्राप्त करने में उन्हें आर्थिक, सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलने पड़ें।
    वाल्मीकि जी को डॉ. अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार (1993) और ‘परिवेश सम्मान’ (1995) से सम्मानित किया जा चुका है।

प्रमुख रचनाएँ-

  • कविता संग्रह- ‘सादियों का संताप’, ‘बस! बहुत हो चुका।’
  • कहानी संग्रह- ‘सलाम’, ‘घुसपैठिये’।
  • आत्मकथा- ‘जूठन’, ‘दलित’, ‘साहित्यिक सौन्दर्यशास्त्र’।

साहित्यिक विशेषताएँ-

  • हिन्दी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने अपने लेखन में जातीय-अपमान और उत्पीड़न का वर्णन किया है।

पाठ-परिचय-

  • इस सामाजिक समस्या-प्रधान कहानी के माध्यम से लेखक ने मेहनत मजदूरी करके किसी तरह गुज़र-बसर कर रहे मजदूर वर्ग के शोषण, यातना तथा समाज की जातिवादी मानसिकता का चित्रण किया है। मजदूर वर्ग मेहनत कर इज्जत से जीना चाहता है पर उच्च ताकतवर वर्ग ऐसा होने नहीं देता।

स्मरणीय बिन्दु-

  • सुकिया और उसकी पत्नी कमाने-खाने की इच्छा से गाँव-देहात छोड़कर शहर आए थे। वे असगर ठेकेदार के भट्टे पर ईंट पाथने का काम करते थे। भट्टे पर मोरी का काम सबसे खतरनाक था। ईंटें पकाने के लिए कोयला, बुरादा, लकड़ी और गन्ने की बाली को मोरियों के अंदर डालना होता था। छोटी-सी असावधानी मौत का कारण बन सकती थी। भट्टा मजदूरों को दड़बेनुमा छोटी-छोटी झोपड़ियों में रहना पड़ता था। संध्या के समय दिन-भर के थके-हारे मज़दूर रात को दड़बों में घुस जाते थे। साँप और बिच्छू का डर लगा रहता था तथा वातावरण में जंगल का सा सन्नाटा छा जाता था। मानों भट्टे के माहौल से तालमेल नहीं बिठा पाई थी, इसलिए खाना बनाते समय चूल्हे से आती चिट-पिट की आवाजों में उसे अपने मन की दुश्चिंताओं और आशंकाओं की आवाजें सुनाई देती थी। मानों के मन में शारीरिक शोषण का डर, बात न मानने पर प्रतिकूल व्यवहार की घबराहट थी।
  • एक दिन भट्टा मालिक मुख्तार सिंह कहीं बाहर चला गया तो उसका बेटा सूबे सिंह भट्टे पर आने लगा। सूबेसिंह के भट्टे पर आने से भट्टे का माहौल बदल गया। ठेकेदार असगर उससे डरा-डरा रहने लगा। सूबेसिंह अपनी सेवा-टहल कराने के बहाने एक मजदूर महेश की पत्नी किसनी का यौन-शोषण करने लगा। उसने किसनी को साबुन, कपड़े और ट्रांजिस्टर लाकर दिया। वह किसनी को शहर भी घुमाने ले जाने लगा। किसनी खुश थी, वह सूबेसिंह के साथ अधिक समय व्यतीत करने लगी थी। उसके रंग-ढंग में परिवर्तन आ गया था। उसका पति महेश शराब पीने लगा था। उसे देखकर मजदूरों में फुसफुसाहट शुरू हो गई थी।
  • मानों और सुकिया खुश थे क्योंकि भट्टे पर काम करते हुए उन्होंने कुछ पैसे बचाए थे। भट्टे पर पकती लाल-लाल ईंटों को देखकर मानों खुश थी। वह ज्यादा काम करके, ज्यादा रुपय जोड़कर अपना एक पक्का मकान बनाने का सपना देखने लगी थी। एक दिन किसनी के अस्वस्थ होने पर सूबेसिंह ने ठेकेदार असगर के द्वारा मानों को अपने दफ्तर में बुलवाया। बुलावे की खबर सुनते ही मानों और सुकिया घबरा गए। वे सूबेसिंह की नीयत भाँप गए। मानों इज्जत की जिंदगी जीना चाहती थी। वह किसनी बनना नहीं चाहती थी। उनकी घबराहट देखकर जसदेव मानों के स्थान पर स्वयं सूबेसिंह से मिलने चला गया। सूबेसिंह ने जसदेव को अपशब्द कहे और लात-घूंसों से पिटाई कर दी। सुकिया और मानों उसे झोपड़ी में ले आए। जसदेव के इस अपनेपन के कारण मानों उसके लिए रोटी बनाकर ले गई, लेकिन ब्राह्मण होने के कारण उसने मानो की बनाई रोटी नहीं खाई। असगर ठेकेदार जसदेव को सुकिया और मानों के चक्कर में न पड़ने की सलाह देता है। जसदेव का व्यवहार मानों और सुकिया के प्रति बदलता चला जाता हें जसदेव की पिटाई से भट्टा मजदूरों में भय फैल जाता है।
  • सूबेसिंह की हिदायत पर असगर ठेकेदार सुकिया और मानों को तरह-तरह से परेशान करने लगा। उसने सुकिया से ईंट पाथने का साँचा ले लिया और मोरी का काम दे दिया। एक सुबह मानों ने अपनी ईंट पाथने की जगह पर सारी ईंट टूटी हुई देखीं। वह दहाड़े मारकर रोने लगी। आवाज़ सुनकर सुकिया वहाँ आया और टूटी ईंटे देखकर हक्का-बक्का रह गया। असगर ठेकेदार ने टूटी ईंटों की मजदूरी देने से साफ इन्कार कर दिया।
  • सुकिया सारी बात समझ गया और मानों का हाथ पकड़कर बोला कि ‘ये लोग हमारा घर नहीं बनने देंगे'। वे लोग भट्टे को छोड़कर खानाबदोश की तरह किसी अनजान स्थान की ओर चल पड़े।