अंतराल - आवारा मसीहा - पुनरावृति नोट्स

 CBSE कक्षा 11 हिंदी (ऐच्छिक)

अन्तराल भाग-1
पाठ-3 आवारा मसीहा : दिशाहारा
पुनरावृत्ति नोट्स


विधा- जीवनी
(जीवनी में लेखक किसी व्यक्ति का जीवन चरित्र प्रस्तुत करता है। इनमें प्रायः उस व्यक्ति की जन्म से लेकर मृत्यु तक की सभी घटनाएँ होती है। इसमें व्यक्ति के व्यक्तित्व, कृतित्व तथा उसकी उपलब्धियों का वर्णन रहता है। इसका विषय भी काल्पनिक न होकर यथार्थ होता है।

लेखक- विष्णु प्रभाकर

संदेश- इस रचना के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि व्यक्ति जीवन के हर मोड़ पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करे, यह आवश्यक नहीं, किन्तु किसी विशेष क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन से उसके पूरे व्यक्तित्व का आंकलन हो सकता है। प्रतिभा के विकास को हर चाहिए।

मुख्य स्मरणीय बिन्दु-

  • ‘आवारा मसीहा’ विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित महान कथाकार शरत् चन्द्र की जीवनी है। इसके लिए विष्णु प्रभाकर जी को ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। यह पाठ ‘आवारा मसीहा' के प्रथम पर्व ‘दिशाहारा' का एक अंश है। इसमें लेखक ने शरत् चन्द्र के बचपन से किशोरावस्था तक के जीवन के विविध पहलुओं को इस प्रकार वर्णित किया है, जिससे बचपन की शरारतों में भी शरत् के एक अत्यन्त संवेदनशील और गम्भीर व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं। उनके रचना-संसार के समस्त पात्र वस्तुतः उनके वास्तविक जीवन के ही पात्र हैं।
  • शरत् के पिता यायावर प्रवृत्ति के थे। वे कभी भी एक जगह बँधकर नहीं रहे। उन्होंने कई नौकरियाँ की तथा छोड़ी। वे कहानी, नाटक, उपन्यास इत्यादि रचनाएँ लिखना तो प्रारम्भ करते किन्तु उनका शिल्पी मन किसी दासता को स्वीकार नहीं कर पाता इसलिए रचनाएँ पूर्ण नहीं हो पाती थी। जब पारिवारिक भरण-पोषण असंभव हो गया तब शरत् की माता सपरिवार अपने पिता के घर आ गई।
  • भागलपुर विद्यालय में 'सीता-वनवास', 'चारू-पीठ’, ‘सद्भाव-सद्गुरू’ तथा प्रकांड व्याकरण इत्यादि पढ़ाया जाता था। प्रतिदिन पंडित जी के सामने परीक्षा देनी पड़ती थी और विफल होने पर दण्ड भोगना पड़ता था। तब लेखक को लगता था कि साहित्य का उद्देश्य केवल मनुष्य को दुख पहुँचाना ही है।
  • नाना के घर में शरत् का लालन-पोषण अनुशासित रीति और नियमों के अनुसार होने लगा। घर में बाल-सुलभ शरारतों पर भी कठोर दंड दिया जाता था। फेल होने पर पीठ पर चाबुक पड़ते थे। नाना के विचार से बच्चों को केवल पढ़ने का अधिकार है, प्यार और आदर से उनका जीवन नष्ट हो जाता है। वहाँ सृजनात्मकता के कार्य भी लुक-छिपकर करने पड़ते थे।
  • शरत् को घर में निषिद्ध कार्यों को करने में विशेष आनन्द आता था। निषिद्ध कार्यों को करने में उन्हें स्वतन्त्रता का तथा जीवन में ताजगी का अनुभव होता था। शरत् को पशु-पक्षी पालना, तितली पकड़ना, उपवन लगाना, नदी या तालाब में मछलियाँ पकड़ना, नाव लेकर नदी में सैर करना और बाग में फूल चुराना अतिप्रिय था।
  • शरत् और उनके पिता मोतीलाल दोनों के स्वभाव में काफी समानाताएँ थी। दोनों साहित्य प्रेमी, सौन्दर्य बोधी, प्रकृति प्रेमी, संवेदनशील तथा कल्पनाशील और यायावर (घुमक्कड़) प्रवृति के थे।
  • कभी-2 शरत् किसी को कुछ बताए बिना गायब हो जाता। पूछे जाने पर वह बताता कि तपोवन गया था। वस्तुतः तपोवन लताओं से घिरा, गंगा नदी के तट पर एक स्थान था जहाँ शरत् सौन्दर्य उपासना करता था।
  • अघोरनाथ अधिकारी के साथ गंगाघाट जाते हुए शरत् ने जब अपने अंधे पति की मृत्यु पर एक गरीब स्त्री के रुदन का करुण स्वर सुना तो शरत् ने कहा कि दुखी लोग अमीर आदमियों की तरह दिखावे के लिए जोर-जोर से नहीं रोते। उनका स्वर तो प्राणों तक को भेद जाता है। यह सचमुच का रोना है। छोटे से बालक के मुख से रुदन की ऐसी सूक्ष्म व्याख्या सुनकर अघोरनाथ के एक मित्र ने भविष्यवाणी की थी जो बालक अभी से रुदन के विभिन्न रूपों को पहचानता है, वह भविष्य में अपना नाम ऊँचा करेगा। अघोरनाथ के मित्र की यह भविष्यवाणी सच साबित हुई।
  • शरत् के स्कूल में एक छोटा-सा पुस्तकालय था। शरत् ने पुस्तकालय का सारा साहित्य पढ़ डाला था। व्यक्तियों के मन के भाव जाने में शरत् का महारत हासिल थी पर नाना के घर में उसकी प्रतिभा को पहचानने वाला कोई न था। शरत् छोटे नाना की पत्नी कुसुमकामिनी को अपना गुरु मानते रहे।
  • नाना के परिवार की आर्थिक हालत खराब होने पर शरत् के परिवार को देवानंदपुर लौटकर वापस आना पड़ा।
  • मित्र की बहन धीरू कालांतर में 'देवदास की पारो', 'श्रीकांत की राजलक्ष्मी', ‘बड़ी दीदी’ की माधवी के रूप में उभरी।
  • शरत् को कहानी लिखने की प्रेरणा अपने पिता की अलमारी में रखी ‘हरिदास की गुप्त बातें’ और ‘भवानी पाठ’ जैसी पुस्तकों से मिली। इसी अलमारी में उन्हें पिता द्वारा लिखी अधूरी रचनाएँ भी मिली। जिन्होंने शरत् के लेखन का मार्ग प्रशस्त किया। शरत् ने अपनी रचनाओं में अपने जीवन की कई घटनाओं एवं पात्रों को सजीव किया है।
  • शरत में कहानी गढ़कर सुनाने की जन्मजात प्रतिभा थी। वह पंद्रह वर्ष की आयु में इस कला में पारंगत होकर गाँव में विख्यात हो चुका था। गाँव के जमींदार गोपालदत्त मुंशी के पुत्र अतुलचंद्र ने उसे कहानी लिखने के लिए प्रेरित किया। अतुलचंद्र शरत् को थियेटर दिखाने कलकत्ता ले जाता और शरत् से उसकी कहानी लिखने को कहता। शरत् ऐसी कहानियाँ लिखता कि अतुल चकित रह जाता। अतुल के लिए कहानियाँ लिखते-लिखते शरत् ने मौलिक कहानियाँ लिखना प्रारंभ कर दिया।
  • शरत् का कुछ समय ‘डेहरी आन सोन’ नामक स्थान पर बीता। शरत् ने 'गृहदाह’ उपन्यास में इस स्थान को अमर कर दिया। 'श्रीकांत' उपन्यास का नायक श्रीकांत स्वयं शरत् है। 'काशीनाथ' कहानी का नायक उनका गुरुपुत्र था। जो शरत् का घनिष्ठ मित्र था। लम्बी यात्रा के दौरान परिचय में आई विधवा स्त्री को लेखक ने 'चरित्रहीन’ उपन्यास में जीवंत किया है। 'विलासी' कहानी के सभी पात्र कहीं न कहीं लेखक से जुड़े हैं। ‘शुभदा' में हारुन बाबू के रूप में अपने पिता मोतीलाल की छवि को उकेरा है। 'श्रीकांत' और 'विलासी' रचनाओं में सांपों को वश में करने की घटना शरत् का अपना अनुभव है। तपोवन की घटना ने शरत् को सौन्दर्य का उपासक बना दिया।
  • देवानन्द गाँव में शरत् चन्द का संघर्ष और कल्पना से परिचय हुआ। बातें उनकी साधना की नींव थी। इसलिए शरतचन्द्र कभी भी देवानन्द गाँव के ऋण से मुक्त नहीं हो पाए।