मृदा-प्रश्न-उत्तर
सीबीएसई कक्षा - 11
विषय - भूगोल
एनसीईआरटी प्रश्नोत्तर
पाठ - 6 मृदा
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) मृदा का सर्वाधिक व्यापक और सर्वाधिक उपजाऊ प्रकार कौन-सा है?
(क) जलोढ़ मृदा
(ख) काली मृदा
(ग) लैटेराइट मृदा
(घ) वन मृदा
उत्तर- (क) जलोढ़ मृदा
(ii) रेगर मृदा का दूसरा नाम है-
(क) लवण मृदा
(ख) शुष्क मृदा
(ग) काली मृदा
(घ) लैटेराइट मृदा
उत्तर- (ग) काली मृदा
(iii) भारत में मृदा के ऊपरी पर्त के ह्रास का मुख्य कारण है-
(क) वायु अपरदन
(ख) अत्यधिक निक्षालन
(ग) जल अपरदन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (ग) जल अपरदन
(iv) भारत के सिंचित क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि निम्नलिखित में से किस कारण लवणीय हो रही है?
(क) जिप्सम की बढ़ोतरी
(ख) अति सिंचाई
(ग) अति चारण
(घ) रासायनिक खादों का उपयोग
उत्तर- (ख) अति सिंचाई
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:
(i) मृदा क्या है?
उत्तर- मृदा = यह भूतल आवरण का एक ऐसा पदार्थ है जो द्रवीभूत नहीं हुआ है और उसमें जीवन के पोषण की क्षमता होती है, जैसे-लैटेराइट मृदा, जलोढ़ मृदा, काली मृदा । दूसरे शब्दों में मृदा शैल, मलवा और जैव सामग्री का सम्मिश्रण होती है जो पृथ्वी की सतह पर निर्मित होती है।
(ii) मृदा निर्माण के प्रमुख उत्तरदायी कारक कौन-से हैं?
उत्तर- मृदा निर्माण के प्रमुख उत्तरदायी कारक हैं-जनक सामग्री,वनस्पति, उच्चावच, जलवायु तथा अन्य जीव रूप तथा समय। इनके अतिरिक्त मानवीय क्रियाएँ भी पर्याप्त सीमा तक इसे प्रभावित करती हैं। मृदा के घटक जल, खनिज कण, ह्यूमस तथा वायु होते हैं।इनमे से प्रत्येक की वास्तविक मात्रा मृदा के प्रकार पर निर्भर करती हैI
(iii) मृदा परिच्छेदिका के तीन संस्तरों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- संस्तर : यदि हम भूमि पर गड्ढा खोदें तथा मृदा को देखें तो वहाँ हमें मृदा की तीन परतें दिखाई देती हैं, जिन्हें संस्तर कहा जाता है।
मृदा परिच्छेदिका के तीन संस्तरों के नामों का उल्लेख :
- 'क' संस्तर सबसे ऊपरी खंड होता है, जहाँ पौधों की वृद्धि के लिए अनिवार्य जैव पदार्थों का खनिज पदार्थ, पोषक तत्वों तथा जल से संयोग होता है।
- 'ख' संस्तर 'क' संस्तर तथा 'ग' संस्तर के बीच संक्रमण खंड होता है, जिसे नीचे व ऊपर दोनों से पदार्थ प्राप्त होते हैं। इसमें कुछ जैव पदार्थ होते हैं तथापि खनिज पदाथों का अपक्षय स्पष्ट नजर आता है।
- 'ग' संस्तर की रचना ढीली जनक सामग्री से होती है। यह परत मृदा निर्माण की प्रक्रिया में प्रथम अवस्था होती है और ऊपर की दो परतें इसी से बनती हैं। परतों की इस व्यवस्था को मृदा परिच्छेदिका कहा जाता है।
(iv) मृदा अवकर्षण क्या होता है?
उत्तर- मृदा अवकर्षण = मोटे तौर पर मृदा अवकर्षण को मृदा की उर्वरता के ह्रास के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसमें मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है तथा अपरदन और दुरूपयोग के कारण मृदा की गहराई कम हो जाती है। भारत में मृदा संसाधनों के क्षय का मुख्य कारक मृदा अवकर्षण है। मृदा अवकर्षण की दर भूआकृति, पवनों की गति तथा वर्षा की मात्रा के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होती है।
(v) खादर और बांगर में क्या अंतर है?
उत्तर- खादर और बांगर में अंतर-
खादर | बांगर |
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3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए:
(i) काली मृदाएँ किन्हें कहते हैं? उनके निर्माण और विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- काली मृदाएँ : ये मिट्टियाँ ज्वालामुखी के दरारी विस्फोट से निकले पेठिक लावा से बनी हैं I इस मिट्टी को 'रेगर` भी कहा जाता है तथा इससे कपास वाली काली मिट्टी भी कहा जाता है,जिसका रंग काला होता है।
काली मिट्टी की विशेषताएँ-
- यह मिट्टी कपास के लिए उपयुक्त होती है।
- इसमें सूखने परदरारें पड़ जाती हैं।
- इसमें नमी ग्रहण करने की क्षमता ज़्याद होती है।
- काली मिट्टी में मृदा के कण इकट्ठे हो सकते हैं।
- यह गीली होने पर फूल जाती है और सूखने पर सिकुड़ जाती है।
(ii) मृदा संरक्षण क्या होता है? मृदा संरक्षण के कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर- मृदा संरक्षण : यह एक ऐसी विधि है, जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए, मिट्टी के अपरदन तथा क्षय को रोका जाता है एवं मिट्टी की निम्नीकृत दशाओं को सुधारा जाता है।
मृदा संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए-
- पर्वतीय भागों में सीढ़ीदार खेत बनाकर खेती की जानी चाहिए।
- पशुओं द्वारा कम से कम चराई की जानी चाहिए।
- मरुस्थलीय भागों में वृक्षा रोपण से मृदा को संरक्षित किया जाना चाहिए।
- वनारोपण, विशेष रूप से नहीं द्रोणियों के ऊपरी भागों में की जानी चाहिए।
- समोच्चरेखीय जुताई तथा मेड़बंदी की जानी चाहिए।
- आर्द्र प्रदेशों में अवनालिका अपरदन तथा मरुस्थलीय और अर्ध मरुस्थलीय प्रदेशों में पवन अपरदन रोकने के लिए अवरोधों को निर्मित किया जाना चाहिए।
(iii) आप यह कैसे जानेंगे कि कोई मृदा उर्वर है या नहीं? प्राकृतिक रूप से निर्धारित उर्वरता और मानवकृत उर्वरता में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- महीन कणों वाली लाल और पीली मृदाएँ सामान्यतः उर्वर होती हैं। इसके विपरीत मोटे कणों वाली उच्च भूमियों की मृदाएँ अनुर्वर होती हैं। इनमें सामान्यतःफॉस्फोरस, नाइट्रोजन और ह्यूमस की कमी होती है। जलोढ़क मृदाओं में महीन गाद पाई जाती है जिसके कारण मृदा की उर्वरता बढ़ जाती है इस तरह की मृदा में कैल्सियमी संग्रंथन अर्थात् कंकड़ पाए जाते हैं। काली मृदाओं में नमी के धीमे अवशोषण ओर क्षय की विशेषता के कारण लंबी अवधि तक नमी बनी रहती है। इस वजह से शुष्क ऋतु में भी फसलें फलती-फूलती रहती हैं। लैटेराइट मृदा में लोहे के ऑक्साइड और एल्यूमीनियम के यौगिक तथा पोटाश ज़्यादा मात्रा में होते हैं। ह्यूमस की मात्रा कम होती है। इस मृदा में नाइट्रोजन, फॉस्फेट, जैव पदार्थ और कैल्सियम की कमी होती है। शुष्क मृदा में ह्यूमस तथा जैव पदार्थ कम मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए यह मृदा अनुर्वर होती है। लवण मृदा में पोटैशियम, सोडियम और मैग्नीशियम का अनुपात ज़्यादा होता है। अतः यह अनुर्वर होती है। पीटमय मृदा उर्वर होती है। प्राकृतिक रूप से मृदा की उर्वरता पोषक तत्वों की विद्यमानता पर निर्भर करती है। मृदा की उत्पादकता कई भौतिक गुणों पर निर्भर करती है। जबकि मानवकृत उर्वरता में जब मृदा में विभिन्न तत्वों की कमी हो जाती है तो मानव निर्मित रसायन जैसे पोटाश, फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, गंधक, मैग्नीशियम आदि उचित मात्रा में मिलाकर मृदा की उर्वरता को बढ़ाया जाता है।
परियोजना/क्रियाकलाप
2. भारत के रेखा-मानचित्र पर मृदा के निम्नलिखित प्रकारों से ढके क्षेत्रों को चिह्नित कीजिए-
(i) लाल मृदा
(ii) लैटेराइट मृदा
(iii) जलोढ़ मृदा
उत्तर-